जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना के हमले का मिथक औऱ सच
   27-अक्तूबर-2018

 
 
जम्मू कश्मीर के भारत में अधिमिलन के बाद पिछले 71 सालों में एक ऐसी तस्वीर बना दी गई है। जिसमें जम्मू कश्मीर के अधिमिलन को एक समस्या के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। जाहिर है इसमें सबसे बड़ा हाथ पाकिस्तान का है, लेकिन भारत के बुद्धिजीवियों औऱ कश्मीर के अलगाववादियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, उस मुद्दों पर सवाल उठाने में, जिनसे सिद्ध होता है कि जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन सर्वथा संवैधानिक, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में नियमानुसार हुआ था। ऐसा ही एक मिथक है कि भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर इसको जबरन हथियाया। पाकिस्तान में इस दिन को यौम-ए-स्याह यानि ब्लैक डे के रूप में मनाया जाता है। लेकिन इस मिथक का हर शब्द झूठ है।
 
जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना 27 अक्टूबर को दाखिल हुई। लेकिन इससे पहले 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके थे और अगले दिन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंबेटन ने अधिमिलन स्वीकार कर भी लिय़ा था। यानि इस दिन भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के नियमों के मुताबिक जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बन चुका था। इसीलिए 27 अक्टूबर को जब भारतीय विमान सिख रेजीमेंट के 17 सेनानियों को लेकर श्रीनगर पर उतरा, तो उसका मकसद सिर्फ एक था। कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना को भारत के राज्य जम्मू कश्मीर की भूमि से खदेड़ना।
 

 1947 में श्रीनगर में उतरा पहला एतिहासिक भारतीय विमान डकोटा
 
 
यानि जम्मू कश्मीर में कोई अगर आक्रमणकारी था, तो थी पाकिस्तानी सेना। जिसने कबाइली लड़ाकूओं के साथ मिलकर अधिमिलन से पहले 22 अक्टूबर को ही जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया था। पाकिस्तान की इस आक्रमक रवैये के बावजूद भी भारतीय सेना ने कोई कार्रवाई नहीं की। यथास्थिति कायम रखी। लेकिन 26 अक्टूबर को जब अधिमिलन पत्र साइन हुआ। तब तक पाकिस्तानी लड़ाकू जम्मू कश्मीर का आधे से ज्यादा हिस्सा कब्ज़ा चुके थे। ऐसे में ये भारत सरकार का दायित्व था, कि वो जम्मू कश्मीर में लूटमार कर रहे पाकिस्तानी लड़ाकुओं से जम्मू कश्मीर की रिय़ाया की रक्षा करे औऱ अपनी जमीन को वापिस हासिल करे। लिहाजा यहां पर आक्रमणकारी पाकिस्तान था, न कि भारत। 
 
1948 में भारत की ये बात यूएन में सही साबित हुई जब यूएन ने अधिमिलन पत्र के आधार पर पाकिस्तान को आक्रमणकारी माना और सेना वापसी के लिए कहा।
 

 1965 में कश्मीर मुद्दे पर यूएन में चर्चा की तस्वीर