14 नवम्बर 1948 को भारतीय सैनिक लाल सिंह ने अकेले 6 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया
   13-नवंबर-2018

 
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया और २६ अक्टूबर १९४७ को इस रियासत के शासक महाराजा हरी सिंह ने अपने अधिकारों के तहत जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत में कर दिया l अधिमिलन के बाद जम्मू कश्मीर की सुरक्षा भारतीय सेना की ज़िम्मेदारी थी क्योंकि अब इस राज्य का अधिमिलन भारत में हो गया था l पाकिस्तान किसी भी नियम कानून के तहत अब जम्मू कश्मीर नहीं हथिया सकता था, तो उसने, अपनी सेना का प्रयोग कर राज्य पर ज़बरदस्ती कब्ज़ा करने की कोशिश शुरू कर दी l
 
भारतीय सेना,नवम्बर के पहले सप्ताह से, पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जाए द्रास और कारगिल को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी, पर पाकिस्तानी सेना ने ऐसे ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया था की भारतीय सेना का इन इलाकों को वापस लेना लगभग असंभव था l जब भारतीय सेना के युद्ध टैंकर ने ज़ोजिला जाने का मार्ग खोल दिया तब सेना की दो कंपनी द्रास की ओर आगे बढ़ने लगीं l
 
14 नवम्बर 1948 की रात, पिन्द्रास में जूनियर कमीशन ऑफिसर लाल सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना की कंपनी के प्लाटून ने ब्राउन हिल पर हमला कर दिया l द्रास की ओर जानेवाले मार्ग पर स्थित ब्राउन हिल में पाकिस्तानी सेना ने अपनी पोस्ट मज़बूत बना ली थी और यहाँ दुश्मन बहुत आक्रामक था l लाल सिंह की टुकड़ी पाकिस्तानी सेना से केवल २० गज की दूरी पर थी जहाँ उन पर अचानक गोलियों की बौछार होने लगीl अपने बुद्धि चातुर्य से लाल सिंह ने तुरंत रेंगना शुरू कर दिया. भारी गोली बारी होने के बावजूद वे रेंगते हुए आगे गए l वहाँ के सैनिकों को नीचे, ज़मीन के नज़दीक रहकर लड़ने की सलाह दी. फिर रेंगते हुए वे सेना के दूसरे सेक्शन तक पहुँचे, वहाँ सैनिकों को मार्गदर्शित किया, साथ ही जवानों का मनोबल भी बढ़ाते रहे l इस दरमियान लाल सिंह पर कई बार गोलियाँ लगीं पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी l गोलीबारी के बीच घिरे लाल सिंह का वायरलेस सेट टूट गया, जिस से उनका कंपनी हेडक्वार्टर से संपर्क भी टूट गया l उनके घावों से खून बहता जा रहा था, पर लाल सिंह को अपने ज़ख्मों की कोई परवाह नहीं थी, क्योंकि उनकी टुकड़ी के कई जवान भी बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थी. बहुत धैर्य और हिम्मत से लाल सिंह मोर्चे पर डटे रहे l
 
लाल सिंह की नेतृत्व में उनके जवानों ने दुश्मनों की गोली बारी का डट कर सामना किया और तब तक मोर्चा सँभाले रखा जब तक कंपनी की दो नयी प्लाटून मौके पर पँहुच नहीं गयीं l नयी प्लाटून आते ही बुरी तरह से घायल लाल सिंह, अपने घावों की मरहम पट्टी की लिए जाने के बजाय, अगली सुबह, १५ नवम्बर को अपनी टुकड़ी लेकर आगे बढ़े और अकेले उन्होंने छ: पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया l अपने अफसर की निडरता और वीरता देखकर सैनिकों में भी नया जोश भर गया और वे तब तक नहीं रुके जब तक उस इलाके को उन्होंने पाकिस्तानी से मुक्त नहीं कर लिया l अपनी वीरता, शौर्य और सक्षम नेतृत्व से लाल सिंह ने दुश्मनों से बहुत विकट ब्राउन हिल पोस्ट जीत ली l
 
जूनियर कमीशन अफसर लाल सिंह के इस विशिष्ट शौर्य प्रदर्शन के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया l