राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को 21 वर्ष की आयु में मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
   16-नवंबर-2018
 
 
17 नवंबर 1962- राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, 4 गढ़वाल राइफल्स 
 
1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया थाl अरुणाचल प्रदेश के ऊँचे पहाड़ों पर घमासान युद्ध चल रहा था l भारतीय सिपाही जी जान लगा कर लड़ रहे थी, पर चीन हर दृष्टि से भारत पर हावी था l उनके पास सैनिक संख्या बहुत बड़ी थी, बहुत बड़ी मात्रा में हथियार और वो भी आधुनिक हथियार थे, जिनकी मारक क्षमता अधिक थी l हालाँकि भारत के पास सैन्य बल और हथियार दोनों की ही कमी थी, पर एक बात की कमी नहीं थी और वो था मनोबल l चीन की सेना से लोहा लेने के लिए ४ गढ़वाल राइफल्स को अरुणाचल प्रदेश भेजा गया , इसी ४ गढ़वाल राइफल्स में थे राइफल मैन जसवंत सिंह रावत, जिनकी शूर वीरता के किस्से न केवल सेना के आधिकारिक रिकार्ड्स में बल्कि लोक कथा के रूप में भी आज तक प्रसिद्द हैं l उनका साहस और पराक्रम इतना प्रभावी था की उनका मंदिर और संग्रहालय आज भी अरुणाचल प्रदेश में है .
 
19 अगस्त 1941 को पौड़ी गढ़वाल में जन्म जसवंत सिंह 19 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती हुए, चीन से युद्ध के महज डेढ़ साल पहले , पर युद्ध के मैदान में उनकी सूझ बूझ दुश्मनों पर भरी पड़ी .
 
जसवंत सिंह रावत ने जिस युद्ध में चीन के सैनिकों से लोहा लिया उसे नूरानांग युद्ध के नाम से जाना जाता है l नवम्बर के महीने में भारतीय सेना तवांग से पीछे हट गयी और वहाँ ४ गढ़वाल राइफल्स को सेला इलाके की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया, जिस से सेना की नयी टुकड़ी आकर आगे बढ़ सके .
 
गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिकों ने तीन बार चीन की सुसज्जित सेना को खदेड़ दिया था, अब चौथी बार दुश्मन आगे बढ़ रहा था l भारतीय सेना के पास सैनिकों की संख्या बहुत कम थी , साथ ही गोला बारूद भी ख़त्म हो रहा था l आधुनिक हथियारों से लैस चीनी सैनिकों से लड़ना मुश्किल हो रहा था, इसलिए सैनिकों को वापस आने का आदेश दे दिया गया था, परन्तु २१ वर्षीय इस सिपाही ने पीछे हटने से माना कर दिया l अद्भुत साहस और शूरता के परिचय देते हुए, जसवंत सिंह ने तीन दिनों तक दुश्मनों के मुकाबला किया .
 
17 नवम्बर को चीनी सेना ने फिर नूरानांग पर हमला बोला l M M G यानि मीडियम मशीन गन से लगातार गोलियों की बौछार हो रही थी, जो बहुत घातक थी l राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं, इन तीनों ने मिलकर तय किया कि आग उगलती इस मशीन गन को शांत करना है l सादे कैनवास के जूते और एक हैंड ग्रनेड से लैस,लगभग चौदह हज़ार फ़ीट ऊँची इस युद्ध भूमि में जसवंत सिंह रावत अपने साथियों के साथ बर्फ में रेंगते हुए दुश्मन के बंकर की ओर गए l मशीन गन से करीब 12 मीटर की दूरी से जसवंत सिंह ने एक ग्रेनेड बंकर में फेंका, जिस से कई चीनी सैनिकों की मौत हो गयी l उन्होंने वो मशीन गन उठा ली और रेंगते हुए वापस जाने लगे, अपनी खंदक के पास पहुँच ही गए थे, पर तभी उनके सर पर गोली लगी और वे शहीद हो गए, त्रिलोक सिंह नेगी भी शहीद हो गए, बुरी तरह से ज़ख़्मी गोपाल सिंह गुसाईं, किसी तरह से दुश्मन की मशीन गन अपने खंदक तक ले गए l 15 मिनट के इस अदम्य साहस के नतीजा ये हुआ की भारतीय सेना की नयी टुकड़ी को वहाँ तक पहुँचने के समय मिल गया और हमरो सेना की मशीन गन फिर चलने लगीं l इस घटना के युद्ध में दूरगामी परिणाम हुए l चीनी सेना को भरी नुकसान हुआ, करीब 300 चीनी सैनिक मरे गए, अरुणाचल प्रदेश चीन के कब्ज़े में जाने से बच गया और शीघ्र ही युद्ध विराम घोषित कर दिया गया .
 
जसवंत सिंह रावत को इस साहस, पराक्रम और बलिदान के लिए, मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया , साथ ही वीर त्रिलोक सिंह नेगी को मरणोपरांत वीर चक्र और गोपाल सिंह गुसाईं को वीर चक्र से सम्मानित किया गया l जसवंत सिंह रावत की 4 गढ़वाल राइफल्स को ''बैटल ऑनर नूरानांग''  से सम्मानित किया गया, 1962के युद्ध में एक मात्र सेना की यूनिट को ये सम्मान मिला .
 
राइफल मन जसवंत सिंह रावत को 1962 के इस युद्ध के नायक माना जाता है और जहाँ वे शहीद हुए उस स्थान को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है .
 
इस महा योद्धा के बारे में लोक कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार जसवंत सिंह ने तीन दिनों तक अकेले ही दुश्मन को रोक कर रखा .
 
जब उनकी टुकड़ी को वापस आने के आदेश हुआ तो जसवंत सिंह वापस नहीं गए, वरन दो मोरपा लड़कियों के साथ मोर्चे पर डटे रहे l सेला और नूरा नाम की इन दो मोरपा लड़कियों के साथ मिलकर जसवंत सिंह ने तीन अलग अलग जगह से लगातार गोलाबारी की, जिसके कारण चीनी सेना को रुकना पड़ा, वो आगे नहीं बढ़ पायी l दुश्मन को लगा की कोई बड़ी टुकड़ी उनसे लड़ रही है और वे रुके रहे l जल्दी ही वे बैचैन होने लगे क्योंकि गोलाबारी लगातार चलती जा रही थी l तब दुश्मन के हाथ वो आदमी लग गया जो इन तीनो को खाना देने जाता था l इस आदमी ने सच्चाई दुश्मन को बता दी l हतप्रभ चीनी सैनिकों ने इन तीनों को घेर लिया l नूरा को उन्होंने पकड़ लिया, सेला ग्रनेड के हमले में मरी गयी, जसवंत सिंह को जब विश्वास हो गया की अब दुश्मन से बचने के कोई रास्ता नहीं तो उन्होंने खुद को गोली मार दी l हालाँकि ये भी कहा जाता है की उनको दुश्मन ने ज़िंदा पकड़ लिया था और उन्हें फँसी चढ़ा दिया l जसवंत सिंह के अद्भुत साहस से कुंठित और हैरान दुश्मन ने उनका सर काट लिया और अपने साथ यादगार की तरह ले गए .
 
युद्ध समाप्ति के बाद चीनी सेना के कमांडर ने जसवंत सिंह की बहादुरी से प्रभावित हो, उनका सर वापस भेज दिया साथ ही उनका एक पीतल की मूर्ती भी बनवाकर भेजी जो युद्ध स्थल पर स्थापित की गयी है l जसवंत सिंह के इस अविश्वसनीय शौर्य प्रदर्शन के चलते, उनकी याद में वहाँ एक मंदिर बनाया गया है, साथ ही एक छोटा कमरा है जिसमें उनका बिस्तर है , एक आदमी को वहाँ रहता है, रोज़ उनके जूते पॉलिश लिए जाते हैं, कपडे इस्त्री किया जाते हानि, खाना बनाया जाता है, मनो वो अभी भी जीवित हैं.
 
जसवंत सिंह रावत को लोग बाबा जसवंत सिंह कहते हैं, आज भी सेना के जवान जब भी वहाँ से गुज़रते हैं, वे बाबा जसवंत सिंह से मिलने ज़रूर जाते हैं l वहाँ के निवासियों के लिए जसवंत सिंह भगवlन के सामान है, जिसने अरुणाचल प्रदेश को चीन से बचा लिया .
 
1962 के युद्ध में यही एकमात्र प्रोत्साहित करने वाली घटना थी, जिसका श्रेय राइफल मैन जसवंत सिंह रावत को जाता है l
जसवंत सिंह के ये बलिदान, देशप्रेम और निडरता आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती रहेगी .