1962 में चीन के साथ युद्ध में मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पदक परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
   17-नवंबर-2018
 
 
 
18  नवम्बर 1962- मेजर शैतान सिंह
 
1 दिसम्बर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में जन्मे मेजर शैतान सिंह भाटी के पिता हेम सिंह भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे l 1949 में मेजर शैतान सिंह कुमाऊँ रेजिमेंट में आये l
 
1962 में चीन के साथ युद्ध में उनकी रेजिमेंट, चीन की सीमा से महज 15 कि. मी. दूर, लद्दाख के चुशुल सेक्टर में, 17,000 फ़ीट की ऊँचाई पर, रोज़ांगला में तैनात की गयी. यहाँ एक हवाई पट्टी थी, जिसकी सुरक्षा के ज़िम्मा 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की इस टुकड़ी को दिया गया था. रोज़ांगला की गिनती दुनिया के कठिनतम युद्धे क्षेत्रों में होती है. भारत के अक्साई चीन को लेकर चीन के साथ विवाद चल रहा था, और इसलिए इस इलाके की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण थी. लद्दाख को चीन से बचने के लिए चुशुल को बचाना सामरिक दृष्टि से बहुत ज़रूरी था l
 
18 नवम्बर को तड़के लगभग 5000 चीनी सैनिकों ने आक्रमण कर दिया, उनका सामने करने के लिए वहाँ 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के केवल 120 भारतीय सैनिक थे l
 
चीनी सैनिकों के पास अत्याधुनिक हथियार थे जब की भारतीय सैनिकों के पास हथियार भी कम थे और चीनी सेना के मुकाबले उनकी मारक शक्ति भी कम थी l जल्दी ही रोज़ांगला में घमासान युद्ध छिड़ गया. भारतीय सैनिकों को इस इलाके के महत्व पता था, इसलिए वे जी जान लगा कर लड़ते रहे l
 
इस विकट ऊँचाई पर तोप इस्तेमाल नहीं की जा सकती थीं इसलिए ग्रनेड और मशीनगन से ही लड़ना पड़ा l जब गोलियाँ लगभग समाप्त हो गयीं तो बन्दूक के बोनट से या खाली बन्दूक से वार करके भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों के मुकाबले करते रहे l ये सारा युद्ध मेजर शैतान सिंह के काबिल नेतृत्व में हो रहा था l वे न सिर्फ खुद भी लड़ रहे थे, वे अपने सैनिकों के हौसला भी बढ़ा रहे थे. समुद्रतल से १७,००० फ़ीट की ऊँचाई पर, जहाँ साँस लेना भी मुश्किल होता है, वहाँ, मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक भाग-भाग कर सैनिकों में जोश भर रहे थे l
 
120 जवानों में से 114 युद्ध भूमि में शहीद हो गए, पर इन 114 वीरों ने 1300  दुश्मनों को मार गिराया l इतनी बड़ी क्षति से दुश्मन को पीछे हटना पड़ा l बाकी 6 जवानों में से एक को शैतान सिंह ने वापस भेजा ताकि वो भारतीय सेना के अदम्य साहस और बलिदान के बारे में दुनिया को बता सके, पाँच जवान युद्ध बंदी बना लिए गए थे, पर वे चालाकी से दुश्मन के चुंगल से भाग निकले l
 
114 शहीदों में से एक मेजर शैतान सिंह भी थे, जो बुरी तरह घायल होने के बावजूद अपने सैनिकों को निर्देश देते रहे, और लड़ते रहे l गंभीर रूप से घायल अपने मेजर को दुश्मनों की गोलियों की बौछार से बचने के लिए, एक सिपाही ने मेजर शैतान सिंह को अपनी पीठ पर बाँध दिया और चट्टान से लुढ़कते हुए नीचे आकर, बड़े पत्थरों के बीच शैतान सिंह को छुपा दिया l यहीं, शैतान सिंह ने अंतिम साँस ली l युद्ध समाप्त होने के बाद, फ़रवरी 1963 में शहीद मेजर शैतान सिंह की मृत देह वहीं मिली जहाँ उन्हें घायल अवस्था में छोड़ा था, बर्फ से ढँकी देह ठण्ड से अकड़ चुकी थी, पर हाथों ने मशीनगन अभी भी कस कर पकड़ रखी थी l
 
मातृ-भूमि की रक्षा के लिए अविश्वसनीय साहस और पराक्रम का प्रदर्शन कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले मेजर शैतान सिंह भाटी को मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया, और उनकी बटालियन के पाँच जवानों को वीर चक्र और चार जवानों को सेना मैडल प्रदान किया गया l