21 नवम्बर 1971 - भारत-पाकिस्तान युद्ध: अतग्राम विजय और गोरखा शोर्य की कहानी
   21-नवंबर-2018

 
1971 में पूर्वी पाकिस्तान या ईस्ट पाकिस्तान से युद्ध के समय भारतीय सेना ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास एक घमासान युद्ध लड़ा जिसे अतग्राम युद्ध के नाम से जाना जाता है l
 
 
1971 में शुरुवाती जंग में से एक ये लड़ाई भारत की 4/5 गोरखा राइफल्स और पाकिस्तान की 31 पंजाब रेजिमेंट के बीच भारत पाकिस्तान सीमा के पास अतग्राम में हुई l ये गाँव सीलहेत कस्बे से करीब 35 कि. मी. पर स्थित है , पास में सुरमा नदी थी जो भारत के आसाम के कचर जिले और पूर्वी पाकिस्तान के बीच एक प्राकृतिक विभाजन करती हैl
 
 
पूर्वी पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में ये इलाका सबसे अधिक सुरक्षित था, पाकिस्तानी सेना ने यहाँ किलेबंदी की हुई थी, पाकिस्तान की इस आउट पोस्ट में बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना की उपस्तिथि थी l 31 पंजाब रेजिमेंट की B कंपनी साथ में मुजाहिद , थल /तोचि स्काउट्स और मेजर अज़हर अल्वी के नेतृत्व में पाकिस्तानी रेंजर्स यहाँ तैनात थे l उनके पास आधुनिक हथियार थे, जैसे, मीडियम मशीन गन्स (MMGs), रेकिल्लेस गन्स (RCLs), चीनी राकेट लॉन्चर्स और 81 मिलीमीटर मोरटर्स l
 
 
भारतीय सेना का लक्ष्य था अंतर्राष्ट्रीय सीम के 2 कि. मी. भीतर अतग्राम काम्प्लेक्स, इस इलाके के चारों ओर दलदल था, जिसके कारण यहाँ पहुँचना बहुत मुश्किल था l
 
 
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने ये तय किया की पाकिस्तानी सेना पर खुकरी से हमला किया जायेगा l 21नवम्बर को 4/5 गोरखा राइफल्स की दोनों कंपनी, सुरमा नदी पार कर, अतग्राम में पाकिस्तानी पोस्ट तक पहुँच गयीं l दुश्मन को इनके आने की आहट तक नहीं हुई, दलदल को पार कर गोरखा राइफल्स के जांबाज़ सैनिकों ने अल सुबह ४.३० बजे बेखबर दुश्मन पर खुकरियों से हमला बोल दिया l
 
 
पाकिस्तानी सैनिकों के लिए ये खुकरी से किया गया हमला बिलकुल नया था, उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी l खुकरी से किया गया ये हमला इतना भयंकर हमला था की दुश्मन का मनोबल बिलकुल टूट गया l पर जल्दी ही दुश्मन सँभल गया और जवाबी कारवाही करने लगा, हालाँकि दुश्मन को गोरखा राइफल्स के सामने मुँह की खानी पड़ी और अतग्राम की महत्वपूर्ण पोस्ट भारतीय सेना ने जीत ली l पर ये जीत आसानी से नहीं हासिल हुई, भारतीय सेना के दो अफसर, एक जूनियर कमांडिंग अफसर और ३ जवान शहीद हो गए l
 
 
4/5 गोरखा राइफल्स की वीरता, दृढ संकल्प और दुश्मन की किलेबंदी तोड़कर, अपनी जान हथेली पर लेकर खुकरी से लड़ने का साहस रखने वाले हौसले को सलाम करते हुए इस यूनिट को दो महावीर चक्र, दो परमवीर चक्र और दो सेवा मैडल से सम्मानित किया गया l
 
 
अपनी जान पर खेल कर दुश्मनो से लोहा लेने वाले भारतीय सेना के जांबाज़ सिपाहियों में मुख्य थे - लेफ्टिनेंट ए बी हरोलिकर, सेकेण्ड लेफ्टिनेंट हवा सिंह, मेजर वीरू रावत, मेजर रतन कॉल, कप्तान पी के जोहरी, मेजर दिनेश राणा, राइफल मैन दिलबहादुर छेत्री l
 
 
जो साहसी जवान वीर गति को प्राप्त हुए वे थे- कप्तान जौहरी, सेकण्ड लेफ्टिनेंट हवा सिंह, मेजर दिनेश राणा, राइफल मैन दिलबहादुर छेत्री l
 
राइफलमैन दिलबहादुर छेत्री को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जिन्होंने निडरता से दुश्मनों के आठ सैनिकों को मौत के घात उतार दिया l
 
वीरता और दूरदर्शिता के लिया लेफ्टिनेंट हरोलिकर को महावीर चक्र से सम्मानित लिया गया साथ ही युद्ध के मैदान में अद्भुत शौर्य के परिचय देने वाले सेकेण्ड लेफ्टिनेंट हवा सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र और कप्तान जोहरी को मरणोपरांत सेना मैडल से सम्मानित किया गया l