25 नवम्बर 1987 LTTE उग्रवादियों के काल थे मेजर रामास्वामी परमेस्वरन
   25-नवंबर-2018
 
 
मेजर रामास्वामी परमेस्वरन को १९८७ में मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया l
मेजर रामास्वामी का जन्म १३ सितम्बर १९४६ को मुंबई में हुआ था l १९७२ को मेजर रामास्वामी ने महार रेजिमेंट में शामिल हो गए l उनकी विशेषता थी की उन्होंने सेना के कई सुरक्षा अभियानों में भाग लिया था और हमेशा वे आगे रहकर सबका नेतृत्व करते थे l
 
१९८७ में भारत- श्री लंका समझौते के तहत भारतीय शांति सेना को श्री लंका शांति स्थापना के लिए और कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए भेजा गया l इस समझौते के अनुसार लिट्टे या LTTE के सदस्य भारतीय सेना की देख रेख में आत्मसमर्पण करने वाले थे और मेजर रामास्वामी श्री लंका इसीलिए जाफना गए थे l दुर्भाग्यवश लिट्टे ने समर्पण से माना कर दिया और सेना के खिलाफ छेड़ दिया l
 
 
२५ नवम्बर को जाफना में उडविल के पास कंठरोडे में मेजर रामास्वामी अपने ३० जवानों के साथ लिट्टे के हथियारों के बड़े जखीरे को ढूँढने के लिए सर्च ऑपरेशन के दौरान अनजाने में लिट्टे के छुपने के ठिकाने तक पहुँच गए l रात काफी हो चुकी थी, तभी लिट्टे ने इस टुकड़ी को चारों तरफ से घेर कर उनपर धावा बोल दिया l
 
लिट्टे के पास स्वचालित गन AK-47 , ग्रनेड, HMG यानि हैवी मशीन गन थीं, साथ ही उन्होंने सुरंगें भी बिछाई थीं जिससे भारतीय सेना फँस गयी l इस अचानक हमले से मेजर रामास्वामी विचलित नहीं हुए, बल्कि उन्होंने तुरंत एक योजना बनायी l अंधाधुंध गोलीबारी के बीच, अपनी जान हथेली पर रख कर वे रेंगते हुए आगे बढ़ने लगे और उन्होंने अपने १० जवानों के साथ लिट्टे पर पीछे से हमला कर दिया l इस तरह पीछे से हुए हमले से उग्रवादी चौंक गए, महार रेजिमेंट के जवान और लिट्टे के उग्रवादी आपस में भिड़ गए l
 
एक उग्रवादी ने मेजर रामास्वामी के हाथ पर गोली मार दी, जिसके कारण उनका हाथ शरीर से लगभग अलग कट गया पर अपने इरादे पर अडिग मेजर रामास्वामी ने उसके हाथ से बन्दूक छीन कर उसे मार डाला, घायल होते हुए भी वे लगातार अपने जवानों को निर्देश देते रहे और उग्रवादियों को मारने के लिए अपने जवानों का हौसला बढ़ाते रहे l तभी एक और गोली उनके सीने में लगी, बावजूद इसके उन्होंने दो और उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया और फिर खुद शहीद हो गए l
 
इस मुढभेड़ के अंत में ५ उग्रवादी ढेर हो गए और हथियारों के बड़ा जखीरा भी पकड़ा गया l मेजर रामास्वामी की सूझ बूझ, साहसी नेतृत्व और शूरता के कारण ही ये उग्रवादी मरे गए l
 
मेजर रामास्वामी परमेस्वरन के इस बलिदान और शौर्य के प्रदर्शन पर उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया l