3 नवंबर, 1947 भारत-पाकिस्तान युद्ध- महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह की कहानी
   03-नवंबर-2018


 
 
 
 
3 नवंबर 1947 को पाकिस्तानी हमलावर जम्मू कश्मीर के हिस्सों पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहे थे। बड़गाम में पाकिस्तानी हमलावरों का मुकाबला हुआ दीवान सिंह की प्लाटून के साथ। इस प्लाटून में दीवान सिंह एक सिपाही के तौर पर तैनात थे। वो अपनी कंपनी के नंबर 1 ब्रेन गनर थे। हमलावरों ने दीवान सिंह की कंपनी पर 3 तरफ से हमला बोल दिया था। पाकिस्तानी हमलावरों की संख्या इतनी थी, कि प्लाटून कमांडर सोमनाथ शर्मा को पीछे हट जाने के ऑर्डर आ चुके थे। लेकिन दीवान सिंह की कंपनी ने हार नहीं मानी और डटे रहे।
 
 
दीवान सिंह बहादुरी के साथ अपनी ब्रेन गन उठायी और दुश्मनों पर ताबड़तोड़ सटीक निशाना लगाते रहे। दीवान सिंह का निशाना तेज औऱ अचूक था। अकेले दीवान सिंह ने दुश्मनों के 15 जवानों को ढ़ेर कर दिया। इस दौरान दीवान सिंह की कंपनी दुश्मनों का काफी समय तक रोके रखा। इस दौरान दीवान सिंह की कंधे पर गोली लगी। लेकिन वो मैदान में डटे रहे और अपनी गन से दुश्मनों को ढ़ेर करते रहे। अंत में दुश्मन की गोली से दीवान सिंह शहीद हो गये। दीवान सिंह ने एक ऐसी मिसाल कायम की, जहां उन्होनें अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों की जान बचायी। बाद में सिपाही दीवान सिंह के इस अदम्य साहस और वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय सेना के इतिहास में कुमाँऊ रेजीमेंट के इस वीर सपूत की कहानी स्वर्णाक्षरों में लिखी गयी है।