शहीद लेफिटनेंट उमर फ़ैयाज़ के गांव में तयार हो रहें हैं अनेकों फ़ैयाज़

    27-सितंबर-2018
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कहते हैं कि बहादुरी उम्र की मोहताज नहीं होती और ये बात पूरी तरह से लागू होता है जम्मू कश्मीर के लाल उमर फै़याज़ पर। जी हां आज की कहानी हैं 22 साल की छोटी सी उम्र में ही देश के लिए कुरबान हुए शहीद लेफिटनेंट उमर फै़याज़ की।
 
उमर जम्मू कश्मीर की मिट्टी में पैदा हुआ सेना का वो बहादुर अफसर था जिसपर सिर्फ घाटी में बैठै उनके मां बाप को ही नही बल्कि पूरे देश को गर्व है। एक सामान्य से किसान के घर पैदा हुए फै़याज़ बचपन से ही बेहद मेधावी थे वो पढाई में तो अच्छे थे ही साथ ही साथ खेल कूद में भी अव्वल थे।
 
जम्मू कश्मीर के कुलगाम जिले के रहने वाले फै़याज़ ने अपनी स्कूली शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय से पूरी करने के बाद एन डी ए की परीक्षा पास की। फै़याज़ बचपन से ही आर्मी आॅफिसर बनना चाहते थे इसी लिए 12 वीं के बाद जब उन्होने अपने घर वालों को अपनी ये इच्छा बताई तो वो तुरंत मान गए। जिसके बाद 2012 में फै़याज़ एन डी ए के लिए चयनित हुए। वो भारतीय सेना के राजपूताना राईफल्स के अफसर थे
 

 
 
छोटी सी उम्र से ही देश के लिए मर मिटने का जज्बा फै़याज़ में कूट कूट कर भरा हुआ था। फै़याज़ अपने गांव के हीरो थे उनके गांव के बच्चे उन्हे अपना रोल माॅडल मानते थे। फैयाज जम्मू कश्मीर के रहने वाले वो सैनिक थे जो लगतार पाकिस्तान द्वारा फै़याज़ जा रहे आतंकवाद से लड़ रहे थे, और शायद यही बात घाटी में बैठे आतंकियों को अच्छी नहीं लगी। वो नहीं चाहते थें कि जम्मू कश्मीर का युवा फै़याज़ को अपना रोल माॅडेल माने और देश की मुख्य घारा से जुडे़ इसी लिए इन आतंकियों ने फै़याज़ को नौकरी छोड देने के लिए धमकी देना शुरू कर दिया पर देश भक्त फै़याज़ पर उन आतंकियो की धमकी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वो अपने इरादे पर डटै रहें। जिससे परेशान होकर आतंकियों ने 9 मई 2017 को छुट्टी पर अपने चाचा की लड़की की शादी में आए फै़याज़ को अगवा कर गोली मार दी। पोस्मार्टम की रिपोर्ट से पता चलता है कि फैयाज ने उन आतंकियों के साथ अंतिम समय तक संघर्ष किया पर निहत्थे फै़याज़ को आतंकियों ने गोली मार दी।
 
 
फै़याज की मौत पर उनके सीनियर्स का कहना था कि अगर फै़याज के हाथों में बंदूक होती तो उन आतंकियों की औकात नहीं थी कि वो फै़याज का बाल भी बाका कर पाते। मात्र 22 साल की छोटी सी उम्र में अपने बूढे़ मां बाप और दो बहनों को बिलखता हुआ छोड़कर चले गए उमर फै़याज पर फैयाज की ये कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। वो अपने गांव के युवाओं के हीरो थे और हमेशा रहेंगे। उमर की शहादत के बाद उनके गांव में सेना द्वारा चलाए जा रहें स्कूल का नाम बदल कर उनके नाम पर रखा गया है और उसमें पढ़ने वाले बच्चे अब फै़याज की तरह ही देश सेवा करना चाहते हैं।