परिचर्चा: जम्मू और कश्मीर पर वार्ताकारों की रिपोर्ट

    29-Dec-2015
Total Views |
Group of Interlocutors for Jammu and Kashmir

 समस्या सुलझाने की बजाय और उलझाने का प्रयास

सन् 2010 में राज्य में पत्थरबाजी की घटना हुई। इसी परिदृश्य में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर में स्थायी शांति, स्थिरता और खुशहाली को सुनिश्चित करने और कश्मीर मुद्दे का व्यापक राजनीतिक समाधान निकालने के लिए तीन वार्ताकारों के एक दल का गठन किया। वार्ताकारों के दल ने ‘जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ एक नया समझौता (ए न्यू कॉम्पैक्ट विद द पीपुल ऑफ जम्मू एंड कश्मीर) नाम से रिपोर्ट बनाई। वार्ताकारों ने कुल 11 बार राज्य का दौरा किया और राज्य के सभी जिलों में प्रवास किया। उन्होंने 22 जिलों में 700 से अधिक प्रतिनिधियों से बात की और तीन गोलमेज़ सम्मेलनों में समूहों के साथ वार्ता की। वार्ताकारों ने राज्यपाल एनएन बोहरा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पत्रकारों और विभिन्न वर्गों के लोगों से व्यापक बातचीत की। जबकि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने इन वार्ताकारों से मिलने तक से इनकार कर दिया।

 

क्या है उद्देश्य ?

केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर के लिए तीन वार्ताकारों के एक दल का गठन। इस दल का उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति, स्थिरता और खुशहाली के लिए समाधान ढूंढ़ना।

कौन-कौन हैं वार्ताकार ?

तीन सदस्यीय वार्ताकार हैं- वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर, शिक्षाविद् राधाकुमार और पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी।

गठन कब हुआ ?

13 अक्टूबर 2010 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पर वार्ताकारों के दल का गठन किया।

रिपोर्ट कब सौंपी ?

12 अक्टूबर 2011 को वार्ताकारों के दल ने केन्द्रीय गृह मंत्री श्री पी. चिदम्बरम को 176 पृष्ठ की रिपोर्ट सौंपी।

रिपोर्ट कब सार्वजनिक हुई ?

सात महीने बाद 24 मई 2012 को यह रिपोर्ट सार्वजनिक हुई।

प्रमुख सिफारिशें

-संविधान के अनुच्छेद 370 के शीर्षक और भाग ग्ग्प् के शीर्षक से ‘अस्थायी’ शब्द हटाना। इसके बजाए अनुच्छेद 371 (महाराष्ट्र और गुजरात), अनुच्छेद 371-ए (नागालैण्ड), अनुच्छेद 371-बी (असम), अनुच्छेद 371-सी (मणिपुर), अनुच्छेद 371-डी और ई (आन्ध्र प्रदेश), अनुच्छेद 371-एफ (सिक्किम), अनुच्छेद 371-जी (मिज़ोरम), अनुच्छेद 371-एच (अरुणाचल प्रदेश), अनुच्छेद 371-आई (गोवा) के अधीन अन्य राज्यों की तर्ज पर ‘विशेष’ शब्द रखा जाए।

-राज्यपाल के चयन के लिए राज्य सरकार विपक्षी पार्टियों से परामर्श करके राष्ट्रपति को तीन नाम भेजेगी। आवश्यक होने पर राष्ट्रपति अधिक सुझाव माँग सकते हैं। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और वह राष्ट्रपति जी की कृपा से पदधारण करेगा।

-अनुच्छेद 356: वर्तमान में राज्यपाल की कार्रवाई को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। वर्तमान व्यवस्था इस परन्तुक के साथ जारी रह सकती है कि राज्यपाल राज्य विधानमण्डल को निलम्बित अवस्था में रखेगा और तीन महीने के भीतर नए चुनाव कराएगा।

-अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाओं से लिए जा रहे अधिकारियों का अनुपात धीरे-धीरे कम किया जाएगा और प्रशासनिक दक्षता में रुकावट बिना राज्य की सिविल सेवा से लिए जाने वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।

-अंग्रेजी में गवर्नर और मुख्यमंत्री के नाम जैसे आज हैं वैसे ही रहेंगे। उर्दू प्रयोग के दौरान उर्दू पर्यायवाची शब्द इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

-तीन क्षेत्रीय परिषदें बनाना , जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लिए अलग-अलग (लद्दाख आगे से कश्मीर का एक मण्डल नहीं रहेगा)। उन्हें कुछ विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां दी जाएं। समग्र पैकेज के भाग के रूप में पंचायती राज संस्थाओं को राज्य के स्तर पर, ग्राम पंचायत, नगर-पालिका परिषद या निगम के स्तर पर कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां भी देनी होंगी। ये सब निकाय निर्वाचित होंगे। महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के लिए प्रावधान होंगे।

-विधायक पदेन सदस्य होंगे, जिन्हें मतदान का अधिकार होगा।

-संसद राज्य के लिए कोई कानून तब तक नहीं बनाएगी जब तक इसका संबंध देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से और इसके महत्वपूर्ण आर्थिक हित, विशेषतः ऊर्जा और जल संसाधनों की उपलब्धि के मामलों से न हो।

-पूर्व शाही रियासत के सब भागों में ये परिर्वतन समान रूप से लागू होने चाहिए। नियंत्रण रेखा के आर-पार सहयोग के लिए सब अवसरों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू और कश्मीर में पर्याप्त सांविधानिक परिवर्तन आवश्यक होंगे।

-दक्षिण और मध्य एशिया के बीच जम्मू और कश्मीर एक सेतु बन जाए इसके लिए सब उचित उपाय करने होंगे।

-सब कश्मीरियों, मुख्यतः पंडितों (हिन्दू अल्पसंख्यक) की राज्य नीति के भाग के तौर पर वापसी सुनिश्चित करना।

– 1953 में दी गई स्वायतत्ता में हस्तक्षेप करने वाले केन्द्रीय कानूनों को वापस लिया जाए और इसके लिए संवैधानिक समिति का गठन हो।

– नियंत्रण रेखा के आरपार लोगों, वस्तुओं व सेवाओं की आवाजाही की खुली छूट मिले।

– सेना व अर्द्धसैनिक बलों की संख्या घटाई जाए और उन्हें मिले विशेषाधिकार वापस लिए जाएं।

– राजनीतिक कैदियों को तत्काल रिहा किया जाए।

– छोटे और पहली बार अपराध करने वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लिए जाएं।

– पाक अधिकृत कश्मीर समेत पूरे जम्मू कश्मीर को एक इकाई के रूप में देखा जाए।

– पाक अधिकृत कश्मीर में बसाए गए दूसरे राज्यों के लोगों को हटाया जाए।

प्रवक्‍ता डॉट कॉम का मानना है कि उपरोक्‍त सिफारिशों के बिंदु पढ़कर इसे खारिज करना ही राष्‍ट्रहित में होगा। अनुच्छेद 370 राष्ट्रीय एकता और अखंडता में बाधक है। शेष भारत में इस अनुच्छेद को लेकर लोगों में गुस्सा है। जबकि इस रिपोर्ट में वार्ताकार इस विशेष दर्जे को बनाए रखने की बात ही नहीं करते अपितु इसके साथ लगे ‘अस्थायी’ शब्द की जगह ‘विशेष’ शब्द लिखने की भी सिफारिश करते हैं। यह रिपोर्ट अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए कश्मीरी हिंदुओं की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेता। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद एक प्रमुख चुनौती है, लेकिन वार्ताकारों ने इसके तह में भी जाने की कोशिश नहीं की है और न ही इसे खत्म करने के लिए कोई कारगर उपाय बताते हैं। यह रिपोर्ट इस आधार पर तैयार की गई है कि पीओके क्षेत्र का प्रशासन पाकिस्तान करता है और करता रहेगा तथा इसमें पीओके को पीएके (पाकिस्तान प्रशासित जम्मू और काश्मीर) के रूप में उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बातचीत में अलगाववादियों, आतंकवादियों व पाकिस्तान समेत सभी पक्षों को शामिल किया जाए, यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है।

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर पर गठित वार्ताकारों के दल ने कांग्रेस की तरह ही ढुलमूल नीतियां बनाने की सिफारिश की है। इसकी चहुंओर आलोचना हो रही है। राष्ट्रवादी राजनैतिक दलों एवं संगठनों की ओर बुलंद होती आवाजों की प्रखरता को देखते हुए गृहमंत्रालय भी अब इसे स्वीकारने से हिचक रहा है।