जम्मू कश्मीर अधिमिलन और सरदार पटेल का योगदान
   24-अक्तूबर-2018

 

 
जम्मू कश्मीर को लेकर 1947 के बाद हमारे देश का चिन्तन केवल कश्मीर घाटी तक रहा है जो कि राज्य, का सबसे छोटा हिस्सा है। जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग किलोमीटर है, कश्मीर घाटी का क्षेत्रफल केवल 16,000 वर्ग किलोमीटर है। देश के मीडिया की नज़र हमेशा केवल कश्मीर घाटी के पत्थरबाजों के अधिकारों पर , अलगाववादियों के मानवाधिकारों पर ही गई, लेकिन घाटी से बाहर जम्मू और लद्दाख के हिस्सों में क्या हो रहा है। उनके अधिकार क्या हैं। सुंजवां में हुए आतंकी हमले में भारतीय सेना का कश्मीरी जवान अशरफ मीर की शहादत क्यों हुई। क्यों उसने हिस्दुस्तान पर जान न्यौछावर कर दी। इस पर कभी बात नहीं की गई।
 
चलिए इस गलतबयानी की जड़ तक पहुंचा जाये। दरअसल आज़ादी के बाद देश में इतिहास का लेखन एक एजेंडे के तहत किया गया और इस एजेंडे का शिकार बना जम्मू कश्मीर।
 
पिछले दिनो नरेंद्र मोदी ने लोक सभा में कहा कि यदि आज़ादी के समय देश की बागडोर पटेल के हाथ में होती तो जम्मू कश्मीर का वो हिस्सा जो उस समय पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया वो भारत का हिस्सा होता। इसके बाद तो नेहरू परस्तो के यहाँ भगदड़ मच गयी। इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है और यह कहा जा रहा है कि पटेल जम्मू कश्मीर के भारत में आने के पक्ष में नहीं थे। और इसके लिए तथ्यों की सेलेक्टिव कोटिंग भी की गयी है, आधा सच सामने रखा गया और नेहरू, जिनके कुकृत्यों का शिकार जम्मू कश्मीर आज तक बना हुआ है,उनको बचाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। हम सिलसिलेवार तरीके से सारे तथ्य आपके सामने रखेंगे.
 

 


१. आज़ादी से पहले भारत दो भागो में बॅंटा था। एक ब्रिटिश भारत , जिस पर अंग्रेज़ सीधा राज करते थे और दूसरा देसी रियासते जिन पर अंग्रेज़ों का अप्रत्यक्ष राज था , अर्थात मुख्यतः तीन विषय संचार, रक्षा और विदेश विभाग को छोड़ कर बाकी सब विषय देसी राजे रजवाड़े ही खुद ही सँभालते थे/ देखते थे। उपरोक्त तीनो विषय ब्रिटिश राज के अधिकार क्षेत्र में थे ।
२. जब देश आज़ाद हुआ तो ब्रिटिश भारत को काटकर एक नया हिस्सा बनाया गया जिसे डोमिनियन ऑफ़ पाकिस्तान कहागया, जबकि बचा हुआ हिस्सा डोमिनियन ऑफ़ इंडिया था। अब प्रश्न था देसी रियासतों का , जिनकी संख्या लगभग 565 थी, जम्मू कश्मीर भी इसका हिस्सा था।
३. देसी रियासतों के विषय में ब्रिटिश पार्लिआमेंट की यह नीति थी कि राजे रजवाड़े खुद यह तय करेंगे कि वो दोनों में से किस डोमिनियन का हिस्सा बनना चाहते है। वैधानिक रूप से यह तय करनेका अधिकार केवल और केवल देसी रियासतों के शासकों, यानी महाराजाओं और नवाबो के पास था। यह तय करने में राजाओ को इस बात का ध्यान रखना था की राज्य की सीमाएं उस डोमिनियन के साथ मिलती हो जिसमे वो राज्य का विलय करना चाहते है। इस बात की घोषणा माउंटबेटन ने 25 जुलाई 1947 को नरेन्द्र मण्डल यानि चैम्बर ऑफ़ प्रिंसेस की सभा को सम्बोधित करते हुए भी की थी।
 
 

 

 

४. राज्यों के विलय के लिए एक अधिमिलन पत्र बनाया गया , जिसे अंग्रेजी में- Instrument of Accession कहा गया। यह एक स्टैण्डर्ड पत्र था, यानि सभी रियासतों के लिए एक जैसा पत्र था, जिसपर केवल शासक/राजा को हस्ताक्षर करने थे और राजा के हस्ताक्षर के बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन को केवल इस विलय का सत्यापन करना था वो भी एक स्टैंडर्ड फॉर्मेट पर हस्ताक्षर के रूप में। इस विलय पत्र और उसके सत्यापन में किसी भी प्रकार की कोई शर्त नहीं जोड़ी जा सकती थी, ना तो किसी शासक को और ना ही गवर्नर जनरल को ये अधिकार था।
 

५. जम्मू कश्मीर के विलय में भी अन्य राज्यों की तरह यही प्रक्रिया अपनायी गयी और 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के महाराजा ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये और 27 अक्टूबर को माउंटबेटन ने उसे स्वीकार किया और जम्मू कश्मीर भारत डोमिनियन का हिस्सा बन गया। जिसे आज तक न कभी किसी कोर्ट में चैलेंज किया गया और ना ही इससे चुनौती दी जा सकती है। हालांकि, वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद, झूठ और तथ्यों के विकृतिकरण के साथ कुछ लोग मीडिया ट्रायल में लगे रहे और आम जनता को गुमराह करते रहे. लेकिन लोगो को गुमराह करने के अलावा वो कुछ नहीं कर पाए क्योंकि कानूनन वो कुछ नहीं कर सकते थे। खैर अब आते पटेल और नेहरू के विषय पर।
 
६. सब जानते है देश के एकीकरण में पटेल का सबसे बड़ा योगदान था। यहाँ पर यह बात देखने वाली है कि कानूनन राज्य का विलय महाराजाओ का अधिकार था। उनसे बातचीत की जा सकती थी लेकिन उन पर दबाव नहीं डाला जा सकता था। जम्मू कश्मीर एक ऐसा राज्य था जिसकी सीमा पाकिस्तान और भारत दोनों से मिलती थी. महाराजा हरी सिंह दोनों में से किसी भी डोमिनियन में जा सकते थे। ऐसी परिस्थितियों हरी सिंह के इस वैधानिक अधिकार का सम्मान करना सरदार वल्लभ भाई पटेल की वैधानिक और राजनैतिक दक्षता थी. वो जानते थे ऐसे समय में हम किसी तरह का दबाव यदि महाराज पर डालेंगे तो उनका रवैय्या प्रतिकूल हो सकता है. और ऐसा होने पर भारत के सारे विकल्प खत्म हो जाएंगे।
 
पटेल की यह सोच रणनीतिक रूप से भी सही थी, क्योंकि यदि भारत किसी तरह का दबाव या धमकी वाला रवैय्या रखता तो महाराजा पाकिस्तान भी जा सकते थे। ऐसा होने की सम्भावना थी यह इस बात से और ज्यादा स्पष्ट हो जाएगा जब आप यह समझेंगे कि पाकिस्तान के जम्मू कश्मीर पर हमला करने के बाद महाराजा हरी सिंह ने तुरंत राज्य का अधिमिलन भारत में कर दिया। जबकि पहले महाराजा ने स्टैन्ड्स्टिल एग्रीमेंट पाकिस्तान को भेजा था जिसे पाकिस्तान ने स्वीकार कर लिया था, जिसका मतलब था कि महाराजा भारत या पाकिस्तान से अधिमिलन का निर्णय लें तब तक यथास्तिथि बनी रहे। लेकिन जैसे ही पाकिस्तान ने यह एग्रीमेंट तोड़कर जम्मू कश्मीर पर आक्रमण किया, महाराजा ने राज्य का अधिमिलन भारत में कर दिया क्योंकि महाराजा यह समझ गए थे भारत निति और कानून के अनुरूप चल रहा है जबकी पाकिस्तान उसके ठीक विपरीत चल रहा है, पाकिस्तान की कथनी और करनी में अंतर है।



 
तो यहाँ पर रणनीतिक के रूप में वल्लभ भाई पटेल सही साबित हुए।
अब आइये देखें कि कैसे एक राजनेता या स्टेट्समैन के रूप में भी सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कमाल का काम किया जिसका जिक्र कोई भी वामपंथी लेखक कभी नहीं करता। इस बात का साक्ष्य है , जम्मू कश्मीर के उस समय के प्रधानमन्त्री मेहर चंद महाजन की पुस्तक Looking Back में उनका लिखा फर्स्ट हैंड अकाउंट।
 
अब ये मेहर चंद महाजन कौन थे ? मेहर चंद महाजन उस समय एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे। उन्हें वल्लभ भाई पटेल जम्मू कश्मीर का प्रधानमंत्री बननाचाहते थे क्योंकि वो जानते थे कि ऐसे सम्वेदनशील समय में एक सूझ भूझ वाला व्यक्ति राज्य का प्रधानमंत्री होना चाहिए। पटेल जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री राम चंद्र काक की हरकतों को जान चुके थे , काक, मेहर चंद से पहले राज्य के प्रधानमंत्री थे।
 
काक की पत्नी ब्रिटिश थी जिसने काक को ये सलाह दी कि वो महाराजा को किसी तरह मना ये कि जम्मू कश्मीर का अधिमिलन पाकिस्तान में होना चाहिए। साथ ही वो जिन्ना के प्रभाव में आकर महाराजा हरी सिंह को गलत सलाह दे रहे थे/ दिग्भ्रमित कर रहे थे और लगातार इस बात का दबाव बना रहे थे कि जम्मू कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो जाना चाहिए। ऐसे समय में मेहर चंद जैसे व्यक्ति का महाराजा हरी सिंह के साथ प्रधानमन्त्री के रूप में होना बेहद जरूरी था। किन्तु नेहरू के दबाव में मेहर चंद के जम्मू कश्मीर में जाने को लेकर समस्याएं आ रही थी, उसकी नियुक्ति की फाइल केंद्र से स्वीकृत नहीं हो पा रही थी।
 
 
ऐसे में एक दिन पटेल का महाजन जी से मिलना हुआ और उन्होंने महाजन से पूछाआप अभी तक जम्मू कश्मीर क्यों नहीं गए। तब उन्होंने बताया कि उनकी फाइल्स क्लियर नहीं हो रही है। ऐसे में पटेल नेअपनेप्रभाव का प्रयोग करते हुए मेहर चंद महाजन की फाइल्स तुरंत क्लियर करवाई और उनको जल्दी से जल्दी जम्मू कश्मीर भेजा गया। इस बात का पूरा ब्यौरा आप मेहर चंद महाजन द्वारा लिखी गयी आत्म कथा “ Looking back” में आप पढ़ सकते है। यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है की यदि पटेल जम्मू कश्मीर को लेकर नकारात्मक थे तो वे मेहर चंद महाजन को जम्मू कश्मीर भेजने के लिए प्रयत्नक्यों करते? पटेल जानते थे कि महाराजा के पास राज्य का अधिमिलन करने का वैधानिक अधिकार है ऐसे समय में उनको धमकी देने की बजाय एक अच्छे सलाहाकार की जरुरत है और मेहरचंद महाजन से अच्छा सलाहकार कौन हो सकता है। परिणाम आज पूरे देश के सामने है। जम्मू कश्मीर भारत का अंग है ।