नायक चाँद सिंह ने 22 नवम्बर 1947 को जम्मू कश्मीर के उरी की पहाड़ी पर 600 पाकिस्तानी सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया।
   22-नवंबर-2018

 
 
चाँद सिंह का जन्म 1922 में पंजाब के रामपुराफूल के जैद गाँव में हुआ था l 1939 में उनकी भर्ती सेना में हुई l
 
1947 में विभाजन के समय, पाकिस्तान की इच्छा थी की जम्मू कश्मीर के विलय भारत के बजाय पाकिस्तान में हो, परन्तु जब पाकिस्तान को लगा की महाराजा हरी सिंह अपनी रियासत का विलय पाकिस्तान में नहीं करेंगे तो 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर धावा बोल दिया l 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत के साथ हो गया और भारतीय सेना पाकिस्तान से आये कबाइलियों और पाकिस्तानी फ़ौज से जम्मू कश्मीर की रक्षा करने वहाँ पहुँच गयी । पाकिस्तानी सेना जम्मू कश्मीर के अलग-अलग ठिकानों पर पहुँच चुकी थी और कई जगह उसने कब्ज़ा कर लिया थाl।
 
 
जम्मू का उरी सेक्टर भी पाकिस्तान के कब्ज़े में चला गया था, जिसे भारतीय सेना ने 13 नवम्बर को पाकिस्तानी कब्ज़े से छुड़ा लिया, जिस से पाकिस्तानी सेना श्रीनगर की ओर आगे नहीं बढ़ पायी l पर दुश्मन लगातार इस इलाके को निशाना बनता रहा क्योंकि पाकिस्तानी सेना के लिए श्रीनगर में आगे बढ़ने के लिए उरी पर कब्ज़ा बहुत महत्वपूर्ण था l 22 नवम्बर 1947 को उरी की पहाड़ी पर पाकिस्तान के लगभग 600 सैनिकों ने रात १०.15 बजे हमला कर दिया जहाँ 1 सिख प्लाटून पहरा दे रही थी l नाइक चाँद सिंह इसकी एक टुकड़ी के कमांडर थे l दुश्मनों का सबसे बड़ा हमला इसी टुकड़ी पर हुआ l दुश्मन ने हमला तीन अलग-अलग टुकड़ियों द्वारा किया ।
 
 
 
दुश्मनों की संख्या अधिक थी ये चाँद सिंह जान गए थे, इसलिए वे धीरज से रुके रहे, और तब तक कोई गोली बारी नहीं की जब तक दुश्मन लगभग 25 गज की दूरी तक नहीं पहुँच गया ।
 
 
उनके पास केवल LMG यानि लाइट मशीनगन और ग्रनेड थे l उन्होंने और उनके साथी जवानों ने ताबड़तोड़ दुश्मन पर हमला कर दिया l इतने नज़दीक से होने वाली गोलाबारी से दुश्मन भौचक्के रह गए और उनमें अफरा तफरी मच गयीl पाकिस्तानी सैनिक करीब 20 गज पीछे हट गए और पास के बड़े बड़े पत्थरों और झाड़ियों के पीछे छुप कर वार करने लगे ।   
 
 
 
नाइक चाँद सिंह ने देखा की उनके फेंके हुए हाथ गोले दुश्मन तक नहीं पहुँच रहे हैं, इसलिए गोलियों भारी बौछार होते हुए भी वे खंदक से बाहर आये , खुले में खड़े होकर दुश्मनों पर ग्रनेड फेंकने लगे l तीन बार उन्होंने यही किया, और तीसरी बार उनके बाएँ हाथ पर गंभीर चोट लग गयी l नाइक चाँद सिंह की इस युक्ति से दुश्मन परेशान हो गए और चिल्ला कर कहा ''जमादार साहब, दुश्मन बहुत मज़बूत है, हम मारे गए'' ।
 
 
 
पाकिस्तानी सेना अब अधिक आक्रामक हो गयी और रात 10 .30 बजे तक एक और टुकड़ी ने 3 इंच की मोर्टार के साथ आक्रमण किया l ये मोर्टार भारतीय सेना का भारी नुकसान कर सकती थी, साथ ही इसकी मारक क्षमता अधिक थी और उरी कैंप तक ये मोर्टार नुकसान पहुँचा सकती थी ।
 
 
हाथ पर गंभीर चोट होने के बावजूद चाँद सिंह ने निर्णय लिया कि वे अपने साथ दो जवानों को लेकर उस मोर्टार को ध्वस्त करने जायेंगे । उनकी टीम झाड़ियों में छुपते-छुपाते, रेंगते हुए मोर्टार से कुछ गज दूरी तक पहुँची और दुश्मन पर ग्रनेड फेंके l इस हमले से दुश्मन की मोर्टार ध्वस्त हो गयी l नाइक चाँद सिंह ने एक पाकिस्तानी सैनिक को तो अपनी बन्दूक के बोनट से ही मार गिराया । बाकी पाकिस्तानी सैनिक वहाँ से भाग गए ।
 
 
 
इस तरह दुश्मन की मोर्टार शांत हो गयी और नाइक चाँद सिंह वहाँ से अपनी खंदक वापस आये । वापसी पर उन्होंने देखा कि दुश्मन अभी भी बायीं ओर छुप कर बैठा था, जिसके कारण केवल गोलियाँ चलाकर काम नहीं बन रहा था, इसलिए चाँद सिंह खंदक से बहार आकर फिर ग्रनेड फेंकने लगे । इसी समय वे दुश्मनों की LMG के शिकार बने और शहीद हो गए । मोर्टार के नुकसान से दुश्मन के हौसला टूट गया और उसने दोबारा आक्रमण नहीं किया । नाइक चाँद सिंह के धैर्य, सूझ बूझ और साहस के कारण ये सिख पोस्ट दुश्मन के हाथों से बच गयी ।
  
 
नाइक चाँद सिंह के इस अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया ।