उरी हमले की एक अनसुनी कहानी

    27-सितंबर-2018
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वंश सलोत्रा उरी के आतंकवादी हमले में मारे गए हवलदार रवि पॉल का 10 साल का बेटा है ,वो इस बात को जानता है कि उसके पापा उरी में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हो चुके हैं और अब कभी वापस लौटेंगे नहीं आएगें , पर उसकी आंखों में दर्द और हताशा की बजाए निडरता ही झलकती है। वंश कहता है कि वो अपने पापा की मौत का बदला लेने के लिए आर्मी ज्वाइन करना चाहता है, लेकिन डॉक्टर के तौर पर क्यों की उसके पापा चाहते थे कि वो डॉक्टर बने।
 
रवि पॉल 10 डोगरा रेजिमेंट के उन 18 जवानों में से एक थे जो उरी के आतंकवादी हमले में शहीद हुए थे। रवि ने 23 साल तक भारतीय सेना में रहते हुए देश की सेवा की पर 18 सितंबर 2016 को पाकिस्तानी आतंकियां ने जम्मू कश्मीर के उरी में सेना कैंप पर सुबह 5.30 बजे कैंप में सो रहे जवानों पर ग्रेनेड और ऑटोमेटिक हथियारों से हमला कर दिया। उन्होंने हमारे निहत्थे जवानो पर 17 ग्रेनेट फेंके और लगभग तीन मिनटों तक अंधाधंुध फायर किया। जिसमें हमारे 19 जवान शहीद हो गए और लगभग 35 से 40 जवान घायल हो गये। इस घटना के 6 घंटे के अंदर सेना के कमांडांे ने चारो आतंकियों को मार गिराया।
 
 
 
इस घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश था हर कोई सैनिकों की मौत का बदला चाहता था। उरी हमले के कुछ दिनों बाद 29 दिसंबर 2016 को रात के 2 बजे भारतीय सेना ने पीओजेके में घुस कर आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया।
भारत के इस हमले में पाक अधिक्रंात जम्मू कश्मीर में बने पाकिस्तानी आतंकियों के 7 लौंचिंग पैड़ ध्वस्त हो गए और 36 आतंकियों की मौत हो गयी। भारतीय सेना कुछ ही घंटों में पीओजेके में घुस कर वहां बने आतंकी ठिकानों को तबाह कर सही सलामत वापस आ गयी। इसी के साथ भारत ने उरी हमलें में शहीद हुए 18 जवानों की मौत का बदला पूरा किया। रवि पाॅल को भले ही दुश्मनों से लड़ने का मौका नहीं मिला पर उनकी इस शहादत को पूरा देश याद रखेगा।