'Accidental Prime minister' फिल्म समीक्षा
Jammu Kashmir Now Hindi   13-Jan-2019
 
 
संत शर्मा  
 
एक दशक होने आया थिएटर जाकर फिल्म देखना लगभग छूट गया . ऐसा नहीं की इस बीच मैंने फ़िल्में नहीं देखीं, अधिकतर फ़िल्में घर बैठकर टेलीविजन पर देखीं, कुछ इंटरनेट से डाउनलोड कर लैपटॉप पर देखीं. चूँकि नयी फिल्म एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर घर बैठे टेलीविज़न पर देखना संभव नहीं था इसलिए थिएटर जाने के अलावा दूसरा कोई चारा न था. पर सच मानिये शनिवार की शाम कुछ दिलचस्प और मनोरंजक देखने में गुज़री
 
भारत की राजनीति समझने, राजनीति में जो कुटिलता और छल कपट है, वो जानने के लिए एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर देखना एक अच्छा आईडिया है. फिल्म में काफी हद तक राजनीति की सच्चाई दिखाई गयी है और सत्ता के गलियारों में, सरकार के सबसे ऊँचे ओहदों में बैठे हमारे नेता किस तरह काम करते हैं ये भी बखूबी दिखाया है. अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह के किरदार में जान डाल दी है, और फिल्म देखते समय लगता है की हमारे प्रधानमंत्री कोई मशीन नहीं बल्कि सच में इंसान थे. मनमोहन सिंह के चरित्र के कई पहलू इस अनुपम खेर दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं. ''जब जब जो जो होना है तब तब सो सो होता है' / 'हुई है वही जो राम रची रखा 'इस कहावत पर मनमोहन सिंह की प्रतिक्रिया इस फिल्म में बहुत दिलचस्प तरीके से दिखाई है.
 
कांग्रेस तो विरोध करेगी ही !
 
हालाँकि कांग्रेस का इस फिल्म के प्रति जो रोष और विरोध है वो जायज़ है, क्योंकि फिल्म आनेवाले आम चुनावों के ठीक पहले रिलीज़ की गयी है. निश्चित रूप से फिल्म में सोनिया गाँधी और अहमद पटेल को बहुत ही धूर्त और शातिर राजनेता बताया गया है और साथ ही ये भी दिखाया है की किस प्रकार वे प्रधानमंत्री की अनदेखी करते थे. संजय बारू की इसी नाम से लिखी किताब में से ये सब कुछ लिया गया हो.
 
Accidental Prime minister समकालीन इतिहास है
 
दरअसल ये समकालीन इतिहास है, और फिल्म बनाने वालों की मंशा पर कांग्रेस प्रश्चिन्ह लगा रही है . उनका आरोप है ये फिल्म सोनिया गाँधी और अहमद पटेल की छवि ख़राब करने के लिए बनायीं गयी है? क्या सच में सारे काम इसी तरह होते हैं जैसे फिल्म में दिखाए गए हैं? ज़ाहिर है की फिल्म के निर्माता और निर्देशक की मंशा पर शक किया जायेगा क्योंकि ये फिल्म चुनावों के बहुत नज़दीक रिलीज़ की गयी है, ठीक वैसे ही जैसे पिछले आम चुनावों के ठीक पहले संजय बारू की किताब रिलीज़ की गयी थी.
 
 
 
संभव है की कांग्रेस इस फिल्म को ये कह कर ख़ारिज कर दे की इसका उद्देश्य सोनिया, पटेल और राहुल गाँधी की छवि ख़राब कर उन्हें बदनाम करना है. फिल्म में कुछ दृश्य ऐसे हैं जिनसे दर्शकों की इन तीनों के खिलाफ ही राय बनती है. फिल्म एक राजनितिक बयान है, इन तीनों के खिलाफ एक बयान है जिसे फिल्म जैसे सशक्त माध्यम से आम जनता तक पहुँचाया गया है.
 
एक सप्ताह बाद फिल्म का प्रदर्शन कैसा रहेगा ये नहीं कहा जा सकता है, परन्तु लोगों की जिज्ञासा उन्हें थिएटर तक खींच लाएगी. हो सकता है की अगर कांग्रेस ने शोर कम मचाया होता तो फिल्म की पब्लिसिटी से मदद भी कम होती !!
 
ये एक दिलचस्प फिल्म है जो मनमोहन सिंह को एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में दिखती है जो फँसा हुआ है, ग़लत जगह बंधा हुआ है, पर उनकी कमज़ोरी को कई जगह उनकी ताकत की तरह भी दिखाया है.
 
कहीं ये फिल्म मनमोहन सिंह को सारे इल्ज़ामों से बरी करते हुए भी लगती है क्योंकि उनकी तुलना भीष्म पितामह से की गयी है- सही व्यक्ति लेकिन ग़लत तरफ !!