'मणिकर्णिका' देखने के बाद जब भी आप लक्ष्मीबाई का नाम सुनेंगे,सिर्फ कंगना को याद करेंगे- Movie Review
   27-Jan-2019
 
 
 
फिल्म मणिकर्णिका फिल्म पिछले शुक्रवार रिलीज़ हुई। फिल्म को देखते हुए दर्शको का उत्साह देखने लायक है। कहानी देश की वीर वीरांगना "लक्ष्मी बाई " पर आधारित है जिसका किरदार रुपहले परदे पर कंगना रनौत ने निभाया है और अपनी शानदार छाप छोड़ी है. फिल्म ख़त्म होने पर आप जब आप थिएटर से बाहर निकलते है तो मणिकर्णिका आपके जेहन पर पूरी तरह से हावी होती है। फिल्म के डायलॉग्स विशेष रूप से सेकंड-हाफ में आपके रोंगटे खड़े कर देती है। अब तक हमारे ज़ेहन में रानी लक्ष्मीबाई की इमेज एक घोड़े पर तलवार थामे, पीठ पर बच्चे को बांधे हुए, जंग के मैदान में लड़ते हुए छपी हुयी है। मणिकर्णिका देखने के बाद हमारे ज़ेहन में कंगना द्वारा अभिनीत किरदार बस जाएगा। यही इस फिल्म की कामयाबी है।
 
 
'मणिकर्णिका' देश के गौरवपूर्ण इतिहास, शौर्य और बलिदान की दास्तान है
 
 
" मैं रहूँ या न रहूँ , भारत ये रहना चाहिए " फिल्म का एक गीत पूरी फिल्म की कहानी को कह देता है। देश सर्वप्रथम और सर्वोपरि है यही मणिकर्णिका का मानस होता है। इसी उद्देश्य को लेकर मणिकर्णिका जिसे इतिहास रानी लक्ष्मी बाई , छबीली या मनु के नाम से जानता है , निरंतर संघर्षरत रही। इसलिए उल्लिखित पंक्ति बार-२ फिल्म में सुनाई देती है।
 
 
अंग्रेजी शासन को बेनकाब किया
 
 
निर्देशक ने आज़ादी से पूर्व अंग्रेजो के बर्बरता पूर्ण कारनामो को उजागर किया है। अंग्रेज रानी लक्ष्मी बाई से इतने डरे हुए है और इतना चिढ़ते है कि एक सीन में अंग्रेज अफसर एक नाबालिग लड़की को सिर्फ फांसी पर इसलिए टांग देता है क्योंक उस बच्ची का नाम " लक्ष्मी " है।
 
 
फिल्म में रानी लक्ष्मी बाई के मानवतावाद और देशप्रेम को बखूबी परदे पर उभरा गया है। झांसी की रानी के चरित्र के उस पक्ष का चित्रण जहाँ वो विधवाओं के अधिकारो की हिमायत करती हैं, बेहद खूबसूरती से किया गया है । वो प्रजा से सीधा संवाद रखने की पक्षधर थी।
 
 
वही दूसरी और फिल्म लक्ष्मी बाई की वीरताको दर्शाती है जो किसी स्थिति में अंग्रेजो के सामने सर झुकाने को तैयार नहीं है। वो अपना महल छोड़ देती है , अंग्रेजो से निरंतर लड़ती है लेकिन उनके सामने झुकती नहीं है। अंत में भी वो अपने आपको आग के हवाले कर देती है किन्तु अंग्रेजो के हाथ गिरफ्तार नहीं होती।
 
 
 
क्यों देखें मणिकर्णिका?
 
 
इंटरवल के बाद का दूसरा भाग फिल्म का शानदार पक्ष है जो दर्शको को बांधे रखता है। लक्ष्मी बाई का ग्वालियर के महाराजा से संवाद जिसमे वो सिंधिया राजघराने को देशद्रोही घोषित कर महल कब्जे में लेकर सेना में देश के लिए लड़ने के लिए प्राणो का संचार कर देती है।
 
 
युद्ध के शानदार दृश्य फिल्माए गए हैं, जो आपको इतिहास के उस काल खंड में ले जाते हैं। कंगना का अभिनय जोरदार है, कंगना रनौत के बोले गए डायलॉग्स अपना प्रभाव छोड़ते है। प्रसून जोशी ने डायलॉग्स लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। संवाद पूरी तरह से देश भक्ति से भरे हुए है फिल्म के सेट्स पर बहुत काम किया गया है. उनमे भव्यता भी है और तात्कालीन समय और काल खंड के अनुसार फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक दिल को छू जाने वाला है , जो दृश्यों में नयी जान फूँक देता है।
यह फिल्म इतिहास के उस पन्ने को प्रमोट करती है जिसे हिंदी फिल्मकार लगभग भूल चुके थे। 1954 में लक्ष्मी बाई पर एक फिल्म बानी थी जो ठीक 24 जनवरी 1954 को रिलीज़ हुई थी।
 
 
फिल्म अभिनेता मनोज कुमार ने की तारीफ़
 
 
फिल्म इंडस्ट्री में भारत कुमार के नाम से विख्यात मनोज कुमार ने कंगना की जमकर तारीफ़ है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि "कंगना रनौत की आज तक की सबसे शानदार प्रस्तुति है। उन्होंने आगे कहा " मुझे लगता है कंगना परदे पर लक्ष्मी बाई का किरदार निभाने के लिए ही पैदा हुई थी ".
 
 
एक टीवी पत्रकार रिचा अनिरूद्ध ने भी अपने ट्वीट में कहा है " काश की ग्वालियर, दतिया और ओरछा के राजाओं ने लक्ष्मी बाई का साथ दिया होता तो हम आज की कहानी कुछ और ही पढ़ रहे होते.''
 

 
 
 
 
 
कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है यदि आप भी अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते है तो मणिकर्णिका जरूर देखें।