दरबार मूव पर हर साल खर्च होते हैं 200 करोड़ रू, कब खत्म होगी 147 साल पुरानी ये राजसी प्रथा, जम्मू को राजधानी बनाने में छिपा है अचूक हल
   04-अक्तूबर-2019
 
 
 
जम्मू कश्मीर में सर्दियों की आहट से पहले एक बार फिर दरबार यानि सचिवायल को श्रीनगर से जम्मू शिफ्ट करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। 25 अक्टूबर को श्रीनगर में तमाम सरकारी ऑफिस बंद कर दिये जायेंगे। जोकि जम्मू में 4 नवंबर में खुलेंगे। जम्मू कश्मीर स्टेट रोड़ ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन को स्टाफ के बसें और फाइलों को जम्मू शिफ्ट कराने के लिए ट्रकों के इंतजाम का आदेश दे दिया गया है।
 
 
इसके लिए बार फिर 100 करोड़ का अतिरिक्त बोझ सरकारी खजाने को उठाना होगा। दरअसल सिविल सचिवालय और हाईकोर्ट के करीब 35 विभागों के 5 हज़ार कर्मचारियों, उनके परिवारों और उनके दस्तावेजों-फाइलों को भी स्थानांतरित किया जाता है। जिसका सारा खर्च सरकार वहन करती है।
 
 
 
तमाम फाइलों-दस्तावेजों को मूव करने में सैंकड़ों मजदूर, 250 ट्रक और बसें इस्तेमाल की जाती हैं।
 
 
इसके अलावा कर्मचारियों को 15 हजार तक महंगाई भत्ता अतिरिक्त दिया जाता है।
 
 
सरकारी अफसरों और उनके परिवार आवास की व्यवस्था और साल में आवास की साज-सजावट का खर्च भी सरकारी खजाने को उठाना पड़ता है।
 
 
 
दरअसल ये करीब 147 साल पुरानी राजसी प्रथा है, जोकि साल में 2 बार निभायी जाती है। गर्मियों में श्रीनगर 6 महीने के लिए राजधानी होती है, सर्दियों में 6 महीनों के लिए जम्मू। यानि सर्दियों में जब श्रीनगर में बर्फबारी होती है तो नवंबर-मई के बीच सचिवालय विंटर कैपिटल में और फिर गर्मियों मई से अक्टूबर के बीच समर कैपिटल श्रीनगर में सचिवालय काम करता है। इसके लिए राज्य सरकार के 40 विभागों के पूरे अमले को इधर से उधर शिफ्ट किया जाता है।
 
 
इस प्रथा को 1872 में डोगरा महाराजा रणबीर सिंह ने शुरू किया था। लेकिन इसके बाद से ये प्रथा लगातार जारी है।
 
 
 
 
 
 
इसके अलावा सिविल सचिवालयों और हाईकोर्ट के साथ काम करने वाले प्राइवेट वेंडर्स, कंसलटेंट कंपनियों और संबद्ध प्राइवेट छोटे-मोटे ऑफिस-दुकानों को भी इससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
 
 
  
साल में दो बार दरबार मूव करने से कामकाम में देरी होती है। जिसका असर विकास कार्यों और आम लोगों क जनजीवन पर पड़ता है।
 
 
इसके अलावा सर्दियों में कश्मीर घाटी और गर्मियों में जम्मू के लोगों को सरकारी कामकाज के लिए सैंकड़ों किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है। जिसमें समय की बर्बादी अलग से होती है।
 
 
देश के किसी अन्य राज्य में इस तरह की परपंरा नहीं है। ऐसे में जम्मू कश्मीर में भी सरकारी खज़ाने पर बोझ कम करने के लिए इस प्रथा को खत्म करने की मांग हमेशा उठती रही है। लेकिन सत्ताधारी कश्मीरी नेताओं की क्षेत्रवादी राजनीति के चलते इसको खत्म नहीं किया जा सका।
 

 
 
 
 
जानकार मानते हैं कि सर्दियों में श्रीनगर की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए पूरे वर्ष के लिए सचिवालय बनाये रखने के लिए संभव नहीं है। इससे पहले 1987 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला श्रीनगर में ही सचिवालय बनाये रखने का एक्सपेरीमेंट कर चुके हैं। जोकि भारी बर्फबारी के चलते असफल रहा...।
 
 
 
लेकिन जम्मू में हमेशा के लिए स्थायी सचिवालय बनाये रखना एक कारगर और अचूक हल साबित हो सकता है। लेकिन इससे पहले सत्ताधारी कश्मीरी नेताओं की क्षेत्रीय राजनीति के चलते इस पर सोचना भी संभव नहीं था। जम्मू में पूरे वर्ष मौसम सरकारी कामकाज में किसी तरह की कोई बाधा उत्पन्न नहीं करता।
 
 
 
ऐसे में जब राज्य से संबंधित आर्टिकल 370 को हटाकर राज्य को पुनर्गठित कर दिया गया है, तब दरबार मूब की राजसी प्रथा की समीक्षा बेहद जरूरी हो जाती है।