14 नवम्बर 1947- लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया
   14-नवंबर-2019
 

 
जम्मू कश्मीर के ज़ोजिला ऑपरेशन में १/५ गोरखा राइफल्स की पहली टुकड़ी ने जीत हासिल की l गोरखा राइफल्स की इस टुकड़ी की उपलब्धियों का श्रेय लेफ्टिनेंट कर्नल ए. एस. पठानिया को जाता है l उनके अदम्य साहस और सक्षम नेतृत्व ने इस टुकड़ी को जीत दिलाई l
 
 
1947 में भारत आज़ाद हुआ और साथ ही देश का विभाजन भी हुआ l एक तरफ साम्रदायिक दंगे हो रहे थे और दूसरी ओर पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया l ऐसे समय में लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया १/५ गोरखा राइफल्स में पहले भारतीय कमांडिंग ऑफिसर नियुक्त हुए l बतौर कमांडिंग ऑफिसर उन्होंने दिल्ली में दंगा ग्रस्त इलाकों के लोगों की और विभाजन के बाद भारत आये शरणार्थियों की मदद करने की जिम्मेदारी निभाई l लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया के परिवार में सेना में भर्ती होना गर्व की बात थी l उनके दादा, नाना, पिता सभी सेना में थे l अनंत सिंह पठानिया ने भी परिवार की परंपरा जारी रखी और सेना में भर्ती हो गए l
 
 
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया था, क्योंकि पाकिस्तान को ये डर था की महाराजा हरी सिंह जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल कर देंगे l महाराजा हरी सिंह पाकिस्तानी आक्रमण से ये समझ गए की जम्मू कश्मीर की रक्षा करने के लिए उन्हें अपने राज्य का अधिमिलन भारत में करना चाहिए और 26 अक्टूबर 1947को महाराजा हरी सिंह ने अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर कर, जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत में कर दिया l एक बार महाराजा के अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर हो जाने पर अब जम्मू कश्मीर के भारत में शामिल होने को पाकिस्तान चुनौती नहीं दे सकता था, क्योंकि अधिमिलन तय करने का अधिकार केवल रियासतों के शासकों को था I अब पाकिस्तान और बौखला गया और के साथ मिलकर लूट पाट और नरसंहार करती पाकिस्तानी सेना और भी उग्र हो गयी l
 
 
जम्मू कश्मीर में 1947 से 1949 के बीच भारत पाकिस्तान का युद्ध चलता रहा और लेफ्टिनेंट कर्नल पठानिया की बटालियन को भी वहाँ युद्ध करने भेजे गया l नवम्बर 1948 में द्रास और कारगिल की ओर बढ़ रही भारतीय सेना को पिन्द्रास गोर्ज में रुकना पड़ा क्योंकि वहाँ पाकिस्तानी सेना भरी संख्या में मौजूद थी l
 
 
भारतीय सेना ने ये तय किया की गुमरी नाला के उत्तर की ओर, पिन्द्रास के पहले की चोटी पर कब्ज़ा किया जाना चाहिए और इस ऑपरेशन को नाम दिया गया ऑपरेशन बाइसन l
 
 
इस चोटी पर कब्ज़ा करने की ज़िम्मेदारी दी गयी १/५ गोरखा राइफल्स को, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया कर रहे थे l जम्मू कश्मीर में हुई लड़ाई में ऑपरेशन बाइसन को सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण माना जाता है lइस चोटी पर कब्ज़ा करने के बाद ही भारतीय सेना के आगे बढ़ना संभव था, क्योंकि वहाँ से दुश्मन पर हमला कर उसे हराया जा सकता था लेफ्टिनेंट कर्नल पठानिया ने अपनी सूझ बूझ से दुश्मन की रणनीति का पहले सैनिक निरिक्षण किया l दुश्मनों की सेना की क्षमता, उसकी रणक्षेत्र में स्तिथि, संभावित आक्रमण के स्थान आदि का आँकलन किया l इस सबकी टोह लेने के बाद उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ 14 नवम्बर, 1948 को दुश्मन पर धावा बोला l पाकिस्तानी सेना की ओर से भरी गोला बारी की गयी, उसके बावजूद १/५ गोरखा राइफल्स ने दुश्मनों को मुँह तोड़ जवाब दिया और जीत हासिल की l ये इस युद्ध का निर्णायक मोड़ था l यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की लेफ्टिनेंट कर्नल पठानिया ने दुश्मन के ठिकानों का निरिक्षण हो या उस आक्रमण, सभी जगह खुद अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया l अपने सैनिकों के लिए वे बहुत बड़ी प्रेरणा थे, उनके प्रोत्साहन से सैनिकों का मनोबल और भी बढ़ गया l
 
 
लेफ्टिनैंट कर्नल पठानिया ने अपनी दृढ़ता, रणनीति और वीरता से सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस चोटी को जीता, इसलिए उनके सम्मान में इस चोटी को अनंत हिल्स के नाम से जाना जाता है l
 
 
लेफ्टिनेंट कर्नल पठानिया की वीरता, दूरदर्शिता, प्रेरणादायक नेतृत्व और अदम्य साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया l