3 नवंबर 1947, भारत-पाकिस्तान युद्ध- बडगाम के हीरो परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा की कहानी
   02-नवंबर-2019

 
मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। मेजर सोमनाथ शर्मा अपने साथियों के साथ कश्मीर घाटी के बड़गाम में तैनात थे। पाकिस्तानी हमलावर जम्मू कश्मीर के बारामुला होते हुए बड़गाम तक आ पहुंचे थे। मेजर सोमनाथ के सामने थी 700 दुश्मनों की सेना, जो मोर्टार, रायफल औऱ लाइट मशीनगनों से हमला शुरू कर दिया। दुशमनों की संख्या बहुत ज्यादा थी औऱ उन्होंने मेजर सोमनाथ की कंपनी को 3 तरफ से घेर लिया था।
 
सिपाही अपना आत्मविश्वास न खो दें इसलिए वह स्वयं खुले मैदान में आ गए। सिपाही मारे जा रहे थे। मेजर का बायां हाथ जख्मी था उन्होंने एक हाथ से लाइट मशीनगन लोड की और मोर्चा संभाल लिया। वह सिपाहियों को भी मशीनगन लोड करके देते और दुश्मन पर लगातार खुद भी फायर करते। इधर मारो, उधर मारो, वह लगातार अपने जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। 3 नवंबर दोपहर की बात है उनका गोला बारूद खत्म होने के कगार पर था। उन्होंने ब्रिगेड मुख्यालय को इसकी सूचना दी। सीनियर अधिकारियों ने उन्हें सलाह देते हुए कहा कि वह पीछे हट जाएं। लेकिन उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि दुश्मन हम से बस 100 गज की दूरी पर है। हम घिरे हुए हैं संख्या में कम हैं लेकिन मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटूंगा। जब तक हमारे पास एक भी गोली और एक भी सांस है मैं अपने जवानों के साथ मोर्च से पीछे नहीं हटूंगा और मरते दम तक लड़ूंगा। आर्मी हेडक्वार्टर को दिया यह मेजर सोमनाथ शर्मा का यह अंतिम संदेश था।


 
कुमांऊ रेजीमेंट का प्रवेश द्वार
 
एक सैन्य अधिकारी होने के नाते वह जानते थे कि दुश्मन ज्यादा है और उनके सैनिकों की संख्या कम इसलिए दुश्मन को बहुत देर तक नहीं रोका जाता सकता, लेकिन वह यह भी जानते थे कि जब तक और मदद नहीं आ जाती पीछे हटना मुनासिब नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो कबाइली बिना किसी रुकावट के एयरफील्ड पर पहुंच जाएंगे और श्रीनगर पर कब्जा कर लेंगे।
 
 
उन्होंने वहीं टिकने का फैसला किया। जवानों की हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने उन्हें अंतिम समय तक लड़ने का हुक्म दिया। उनके बाएं हाथ में प्लास्टर था लेकिन वह लगातार मोर्च पर डटे रहे। इस बीच अचानक एक मोर्टार उनके पास आकर फटा, और मेजर सोमनाथ शहीद हो गये। मेजर सोमनाथ शर्मा को इस अदम्य साहस के लिए देश के प्रथम परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
 
बाद में 5 नवंबर की सुबह बडगाम पर हमला बोलकर भारतीय सेना ने वहां कब्जा कर लिया। सभी हमलावर मारे गए और भारतीय सेना ने मेजर सोमनाथ शर्मा, सुबेदार प्रेम सिंह मेहता और शहीद हुए 20 जवानों का बदला लिया। 3 नवंबर 1947 का वो दिन आज भी भारतीय सेना औऱ नौजवानों के दिलों में जोश भर देता है, जिसके हीरो थे...मेजर सोमनाथ शर्मा।