अंबेडकर के सपनों को चकनाचूर करने वाले अनुच्छेद 370 और 35A का खात्मा देश के एकीकरण के महानायक को सच्ची श्रद्धांजलि
   06-दिसंबर-2019

br ambedkar_1  

 
 
 
संविधान निर्माण के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर का एक ही सपना था, 1. एकीकृत भारत, 2. दलित उद्धार, समता और समानता, 3. धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र, भारत का संविधान सर्वोपरि हो, 4. महिला उत्थान का सपना। आजादी के 71 साल बीत जाने के बाद बाबा साहेब का ये सपना आखिरकार 5 अगस्त को पूरा हुआ, जब संसद ने आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी कर जम्मू कश्मीर के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी की। इससे पहले जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा शुरू होते ही, अंबेडकर की कल्पना के विपरीत एक अलग भारत दिखाई देता था। जहां दलितों दोयम दर्जें के नागरिक थे, जहां महिलाओं के अधिकारों पर डाका डाला गया था। जो सेक्यूलर भारत के सपने का विरोधी था, जहां आज भी एकीकृत भारत के खिलाफ कानून पनप रहे थे। ये वहीं दुःस्वप्न थे जिसके लिए संविधान में आर्टिकल 370 जोड़ते वक्त बाबा भीमराव अंबेडकर ने आगाह किया था। बाबा साहेब जानते थे कि आर्टिकल 370 देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है, हुआ भी वहीं।
 
 
 

एकीकृत भारत और संविधान के विरूद्ध है धारा 370 और 35A

 
 
 

आज भी महबूबा मुफ्ती, अब्दुल्ला परिवार समेत कश्मीरी राजनीतिक पार्टियां जम्मू कश्मीर में घोर अलगाववादी प्रचार करते नज़र आते हैं कि धारा 370 ही वो पुल था जिसके सहारे जम्मू कश्मीर औऱ भारत का रिश्ता टिका हुआ था। जोकि ना सिर्फ सरासर गलतबयानी, भारत के संविधान का मज़ाक से ज्यादा कुछ नहीं था। दरअसल जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद भारत का संविधान वहाँ पूरी तरह से लागू होना चाहिए था I यही संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर की भी इच्छा थी, इसीलिए अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रावधान कहा गया। इतना अस्थायी कि उसे समाप्त करने के लिए संसद में जाने की आवश्यकता भी ना पड़े , भारत का संविधान लागू होने के बाद केवल राष्ट्रपति के आदेश से ही इसे हटाने का प्रावधान किया गया था।

 
 

स्वतंत्रता के बाद जम्मू कश्मीर की जनता भारत में ठीक उसी तरह से रहना चाहती थी, जिस तरह से शेष भारत की जनताI आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन, प्रजा परिषद, ने जम्मू-कश्मीर में यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया था। गले में डा राजेन्द्र प्रसाद जी का चित्र, एक हाथ में तिरंगा, दूसरे हाथ में भारत का संविधान लिए, जम्मू कश्मीर की जनता ने यह अद्भभुत आंदोलन किया था।

 

किंतु 1952 में नेहरु जी ने शेख के अलगाववादी मंसूबों के सामने घुटने टेक दिए I जम्मू कश्मीर के लिए अलग झंडा स्वीकार कर लिया और जम्मू कश्मीर में भारत का पूरा संविधान लागू नहीं हो पाया।

 

जाहिर है ये डॉ अंबेडकर के सपनों के साथ सबसे बड़ा धोखा साबित हुआ है। हम तभी डॉ अंबेडकर के सपनों के साथ न्याय कर पायेंगे जब इसको हटाया जायेगा।

 
 
 
br ambedkar_2  

संविधान सभा में अंतिम भाषण देते हुए डॉ अंबेडकर

 

 
 
दलित उत्थान के खिलाफ है धारा 370 और 35A

जम्मू कश्मीर में धारा 370 के चलते अनुसूचित जनजाति को विधानसभा एवं पंचायती चुनावों में आरक्षण नहीं मिल पाता था। धारा 370 के तहत लागू किया गया अनुच्छेद 35A की शिकार जम्मू कश्मीर की स्थाई निवासी अनुसूचित जातियाँ (S.C) थीं। जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासी S.C भी अनुच्छेद 35A की वजह से अपने अधिकारों से वंचित हो रहे थे क्योंकि राज्य में विधानसभा में अनुचित ढंग से अनुसूचित जाति के लिये सीटें बढ़ाने की प्रक्रिया को साल 2031 तक स्थगित कर दी थी। जब कि साल 1987 के बाद कम से कम २ सीटें बढ़ाने की आवश्कता बन गई थी, लेकिन यहाँ भी आर्टिकल 370 के चलते न्यायलय भी कुछ नहीं कर पाया था।

 
 

35 A का शिकार वाल्मीकि समुदाय

 
 

जम्मू कश्मीर के वाल्मीकि समुदाय के सफाई कर्मचारी जो सबकी गन्दगी साफ करते हैं, वे खुद 70 सालों तक कानूनी गंदगी का शिकार रहे।

 
 

लगभग शरणार्थियों जैसा जीवन जीने को मजबूर वाल्मीकि समुदाय के लोग जिन को सरकार द्वारा पंजाब से 1957 जम्मू कश्मीर में बुलाया गया था, 60 साल के बाद भी मूलभूत स्थानीय अधिकारों से वंचित रहे। इनके बच्चे उच्च स्तर तक शिक्षा प्राप्त तो कर सकते थे, परन्तु अनुच्छेद 35A की आड़ में बनाये गए नियमों की वजह से उनके पास सफाई कर्मचारी बनने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

 
 

गाँधी और अंबेडकर के इस देश में, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी एक सफाईकर्मी का बेटा चाहे कितना भी पढ़ ले, जम्मू कश्मीर राज्य में उसको सरकार सिर्फ झाड़ू उठाकर जम्मू की सड़कें और गन्दगी साफ़ करने की नौकरी ही दे रही थीl बाकी नौकरियों के लिए उनके दरवाज़े बंद थे। ये लोग न तो सरकारी नौकरी कर सकते थे और न ही किसी सरकारी उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स, जैसे मेडिकल या इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन ले सकते थे और न ही विधान सभा में चुनाव लड़ सकते थे और वोट भी नहीं डाल सकते थे।

 
 


br ambedkar_3  

जम्मू कश्मीर में बाल्मीकि समाज के लिए आजादी और संविधान के कोई मायने नहीं थे

 
 
 

महिला अधिकारों के शोषक है धारा 370 और 35A

 
 

देश में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हैं लेकिन विडंबना यह है कि जम्मू कश्मीर में यहाँ की स्थाई निवासी महिला (PRC रखने वाली महिला) चाहे किसी भी धर्म से हो, यदि किसी बिना PRC वाले व्यक्ति से विवाह करती है तो अपने राजनीतिक, शैक्षणिक और सम्पत्ति के अधिकारों से वंचित हो जाती थी । एक तरह से जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासियों की आधी अबादी अपने मानवाधिकारों से भी वंचित थी l

 
 

"बच्चों की सुरक्षा के लिए पोक्सो एक्ट और महिलाओं के रक्षा के लिया बने एंटी रेप कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं हो पा रहे थे

 
 

इनके बच्चे , जम्मू कश्मीर में ही पैदा होने के बावजूद, अपनी माँ की संपत्ति के उत्तराधिकारी नहीं हो सकते थे और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में, जैसे मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ नहीं सकते थे l 5 अगस्त से पहले तक वे राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर नौकरी नहीं कर सकते थे और राज्य में विधानसभा और अन्य स्थानीय चुनाव ना तो लड़ सकते थे और ना ही उनमे वोट कर सकते थे l

 
 
 

संविधान निर्माण के दौरान अंबेडकर ने तमाम प्रिंसली स्टेट को Equal Status और Prestige दिये जाने के पक्ष में थे। भारत के साथ अधिमिलन के बाद किसी भी स्टेट को स्पेशल स्टेट्स देने के एकदम खिलाफ थे। संविधान सभा की डिबेट पढ़ने पर पता चलता है कि डॉ अंबेडकर किसी भी स्टेट को किसी दूसरे स्टेट से ज्यादा अधिकार दिये जाने के विरोधी थे। डॉ अंबेडकर के शब्दों में-

 
 

“The Draft Constitution is criticized for having one sort of constitutional relation between the Centre and the Provinces and another sort of constitutional relations between the Centre and the Indian States. The Indian States are not bound to accept the whole list of subjects included in the Union List but only those which come under Defence, Foreign Affairs and Communications. They are not bound to accept subjects included in the Concurrent List. They are not bound to accept the State List contained in the Draft Constitution. They are free to create their own Constituent Assemblies and to frame their own constitutions. All this, of course, is very unfortunate and, I submit quite indefensible. This disparity may even prove dangerous to the efficiency of the State. So long as the disparity exists, the Centre's authority over all-India matters may lose its efficacy. For, power is no power if it cannot be exercised in all cases and in all places. In a situation such as maybe created by war, such limitations on the exercise of vital powers in some areas may bring the whole life of the State in complete jeopardy. What is worse is that the Indian States under the Draft Constitution are permitted to maintain their own armies. I regard this as a most retrograde and harmful provision which may lead to the break-up of the unity of India and the overthrow of the Central Government. The Drafting Committee, if I am not misrepresenting its mind, was not at all happy over this matter. They wished very much that there was uniformity between the Provinces and the Indian States in their constitutional relationship with the Centre. Unfortunately, they could do nothing to improve matters. They were bound by the decisions of the Constituent Assembly, and the Constituent Assembly in its turn was bound by the agreement arrived at between the two negotiating Committees.” (p. 42, CAD, vol. 2)

 

 
 
भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ था अनुच्छेद 370 और 35A
 
 

14 मई, 1954 को बिना संसद की मंजूरी के भारतीय संविधान में संशोधन कर कथित रूप से, सिर्फ राष्ट्रपति के एक आदेश द्वारा, अनुच्छेद 35A के नाम से एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया गया, जो असंवैधानिक था और जिस का जन्म ही अवैध था l यह अनुच्छेद भारत के मूल संविधान में अनुछेद 35 के बाद नहीं मिलता था, बल्कि यह अनुच्छेद संविधान के साथ जोड़े गए एक अपेंडिक्स / परिशिष्ट में रखा गया थाl

 
 

जम्मू कश्मीर की अब तक की सरकारों ने इस अनुच्छेद का प्रयोग इस राज्य के स्थाई निवासी कहे जाने वाले नागरिकों के हक़ में बहुत कम किया गया, बल्कि इस अनुच्छेद का दुरुपयोग जम्मू कश्मीर राज्य को भारत से भिन्न बताने के लिय कुछ ज्यादा किया जाता रहाl जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासी कहे जाने वाले भारत के नागरिकों के भी मूल अधिकारों का हनन करने वाले कानून इस राज्य में बने हुए थे और सुधार करने के लिए दिए गए सुझावों को भी यहाँ की सरकारें साल 2018 तक लगातार नकारती आई थी l

 
 

अनुच्छेद 35A के कारण जम्मू कश्मीर राज्य में रहने वाले इस राज्य के मूल निवासी की श्रेणी वाले भारत के नागरिकों के साथ दशकों से इस राज्य में रहने वाले कई अन्य समुदाय भी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित थे और वंचित रखे जा रहे थेl

 
 
 

डॉ अंबेडकर ने स्पष्ट किया था कि अगर कोई स्टेट अलग कानून बना रहा है, तो उसे भारतीय संविधान की सर्वोच्चता का ख्याल रखते हुए ही बनाने की इजाजत होगी यानि यानि किसी भी स्टेट का संविधान भारत के संविधान की सर्वोच्चता को चुनौती नहीं दे सकता, उससे अलग नहीं हो सकता। संविधान सभा में डिबेट के दौरान डॉ अंबेडकर ने कहा था-

“This is not true of the proposed Indian Constitution. No States (at any rate those in Part I) have a right to frame its own Constitution. The Constitution of the Union and of the States is a single frame from which neither can get out and within which they must work.” (p. 34, CAD, vol. 2)

 

 
 
5 अगस्त वो ऐतिहासिक दिन था जब एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं, जम्मू कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ाने वाला, विकास के विरोधी आर्टिकल 35 A को समाप्त किया गया और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को सपनों को पूरा किया गया।
 
 

आज जम्मू कश्मीर में भारत का पूरा संविधान लागू हो चुका है, तिरंगा पूरे सम्मान से वहाँ लहरा रहा है, भारत की संसद और संविधान यहां सर्वोपरि है।