लेखक- विनोद मिश्रा, सीनियर जर्नलिस्ट
कश्मीर में तीन दशक के दहशतगर्दी में पुलवामा आतंकवादी हमला सबसे खतरनाक और भयावह हमला था। चाक चौवंद सुरक्षा के वाबजूद हवाई जहाज बम से अमेरिका में 9 /11 के हमले से अलकायदा ने अपनी वजूद का एहसास कराया था। पुलवामा फिदायीन हमले ने पुरे देश को स्तब्ध करके दुनिया को जैश के वजूद को ख़तम होने की बात को चुनौती दी है । 21 साल का स्थनीय नौजवान आदिल अहमद डार जैश ए मोहम्मद का जिन्दा बम बनकर पाकिस्तान और मौलान मसूद अज़हर के मंसूबे को अंजाम दिया है । इस बार सिर्फ आरडीएक्स पाकिस्तान का था लेकिन फिदायीन कश्मीरी नौजवान निकला। हालाँकि आदिल के वालिद कहते हैं 2016 में सुरक्षावलों ने उसे पीटा था इसी वजह से वह आतंकवादी बन गया था । लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके ही खानदान का शमीर अहमद जो कश्मीर यूनिवर्सिटी में पढता था, वो क्यों जैश ए मोहम्मद का दहशतगर्द बन गया और आदिल को जैश में शामिल होने के लिए क्यों उकसाया था ?उन्होंने यह नहीं बताया कि पथरवाज से अपनी हुनर दिखाने के बाद उनके गाँव के दर्जनों गरीब परिवार के बच्चे दहशतगर्दों की जाल में कैसे फस गए। आदिल अहमद डार बुरहान वानी से प्रभावित था और उसे अपना आदर्श मानता था और बुरहान वानी तालिबान/अलक़ायदा को अपना आदर्श मानता था जिसने अमेरिका और रूस जैसे शक्तिशाली मुल्कों को थका दिया था। कश्मीर के इन गुमराह ड्रॉपआउट और पढ़े लिखे नौजवानो का जिहाद आज कश्मीर के लिए नहीं है बल्कि वे खिलाफत के लिए लड़ रहे हैं। जैसा कि धमाके से पहले अपने रिकॉर्डिंग में आदिल कहता है "वह इस्लाम का सच्चा प्रचारक है और अपना टास्क पूरा करके मैं अब जन्नत जा रहा हूँ।"
शायद आदिल के वालिद को भी नहीं पता होगा कि वह जिस खतरनाक खेल में उनका बेटा फसा था वह इसी मुल्क के 49 खानदानो को तबाह कर देगा जो उन्ही की तरह साधारण परिवार से थे ,उनका गुनाह सिर्फ यह था क़ि वे अपने मुल्क से प्यार करते थे । मरने वाले शहीदों में मुसलमान भी था ,हिन्दू भी थे ,सिख भी थे और दूसरे मजहब के भी नौजवान थे। शायद आदिल के वालिद को यह भी नहीं पता कि उनके बच्चे बच्चे कौन सा इस्लाम पढ़ रहे हैं जो उन्हें दूसरे मजहबो की खुशियाँ रोंदने के लिए उकसा रहा है। सूफी रिवायत वाली इस कश्मीर में इन दिनों कैसा इस्लाम पढ़ाया और बताया जा रहा है जिसमे कुछ नौजवान अपने मजहब के अलावा सभी को काफिर और दुश्मन समझ रहे हैं। याद रहे आई एस टॉपर शाह फैज़ल जब कहते हैं कि कश्मीर में मुसलमानो के साथ सही सलूक नहीं हो रहा है और रिजाइन कर देते हैं। तो उनसे पूछा जाना चाहिए कि रियासत के प्राइमरी शिक्षा की जिम्मेदारी को लेकर उन्होंने बच्चो को मुख्यधारा में लाने की क्या पहल की ? तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता है। कश्मीर की चिंता करना उनके लिए उचित है लेकिन रियासत एक बड़े अधिकारी को शायद यह चिंता कभी नहीं हुई उनके पड़ोस के पंडित परिवार पिछले 30 साल से वापस अपने घर क्यों नहीं आ पाए हैं ? क्यों 3 लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित परिवार मुल्क के अलग हिस्से में शरणार्थी बने हुए हैं और अपने गाँव अपने समाज में वापस नहीं हो पा रहे हैं ?
प्रेस-क्लब ऑफ इंडिया पुलवामा हमले पर विचार रखते वरिष्ठ पत्रकार
शहीदों को नमन करने आये प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में आये पत्रकारों ने मना कि विकृत सोच को हथियार बनाकर मुल्क को तोड़ने की साजिश को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। मुल्क के सबसे खूबसूरत और संपन्न रियासत में वहां के समाज ने अपने बच्चों के साथ सबसे ज्यादा ज्यादती की है। गांधी पीस फाउंडेशन ने इस समस्या को समझा। कश्मीर के अधिकांश बच्चे एक नरेटिव के शिकार हैं। समाज में दूसरे कम्युनिटी न होने के कारण इन बच्चो ने धर्म की विविधता को समझने में नादानी की है। उन्हें एक ही तरह की इस्लामिक व्याख्या घर से लेकर सार्वजानिक जगहों पर बताया जाता है। गाँधी पीस फाउंडेशन ने कई बच्चों को देश के दूसरे हिस्से में बसे शरणर्थी पंडित परिवारों में रहने और उन्हें समझने का मौका दिया ,उनकी सोच में एक नयी तबदीली सामने आयी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि हुर्रियत से लेकर जेहाद कौंसिल के सरबरा और आतंकवादी सरगना सयैद सलाहुद्दीन के बच्चे कभी न तो पथरवाज बने और न ही दहशतगर्द। सिर्फ गरीब और सामान्य परिवार के आदिल क्यों फिदायीन दहशतगर्द बन गया । क्यों फुलवामा के आसपास के गाँव के दर्जनों नौजवान आतंकवादी बन गए हैं। तो माना जायेगा कि बच्चो को रैडिकल बनाने में समाज ने काफी योगदान दिया है। सोशल मीडिया के दौर में पाकिस्तान ने कश्मीर के नौजवानो को सॉफ्ट टारगेट बनाकर ब्लीडिंग इंडिया बाय थाउजेंड कट्स की पुरानी पालिसी को लागू किया है। देश में तेजी से फ़ैल रही नरेटिव ने सच और झूठ के बीच दीवार को कमजोर कर दिया है। पाकिस्तान को सबक सिखाने की आज जोरशोर से चर्चा चल रही है ,लेकिन मूल समस्या पर आज भी हम चर्चा नहीं कर पा रहे हैं कि सोशल मीडिया दौर में जो नेरेटिव चलाए जा रहे हैं उसे कैसे रोका जाय ? सरकार और फ़ौज पाकिस्तान को सबक सिखाने का माद्दा रखती है लेकिन समाज और मीडिया की भी अहम् भूमिका है कि अपने नौजवानो को फेक न्यूज़ और नेरेटिव का शिकार न होने दे।