क्या देश आज एक स्वर में कहेगा ,पहले जम्मू कश्मीर बाद में कुछ और .
   18-Feb-2019
 
विनोद मिश्रा
वरिष्ठ पत्रकार
 
चौकिये नहीं ,जिस कश्मीर के हुर्रियत के लीडरस की सुरक्षा घेरा हटाने पर आप इतना उत्साहित हैं, उसे 90 के दशक में दिल्ली में ऑफिस देकर भारत सरकार के प्रधानमंत्री आई के गुजराल ने कश्मीर के प्रतिनिधि की मान्यता दी थी। पाकिस्तान ने उस हुर्रियत कॉन्फेंस को दहशतगर्द तंजीमो का पोलिटिकल फेस बना लिया और कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को फ्रीडम स्ट्रगल करार दिया।
 
हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मौलाना अब्बास अंसारी की पी एम ओ के कश्मीर प्रभारी ए एस दुल्लत से बार बार मुलाकात पर मैंने उनसे पूछा था क्या पॉकेट मनी यहीं से मिलती है तो वह हंस पड़े थे ।मैंने भी हँस के कहा था ‘ आर पार दोनों मुल्कों को आप लोग बेवकूफ बना रहे हैं’ । हैरानी की बात यह है जम्मू कश्मीर के असेम्बली से निर्वाचित70 सदस्य और मुख्यमंत्री और लोकल बॉडी ,पंचायत के 50000 निर्वाचित लीडर सिर्फ बिजली, पानी, सड़क ,शिक्षा की व्यवस्था में क्लर्क की भूमिका में आ गए और पाकिस्तान के एजेंट के रूप में सक्रिय हुर्रियत कॉन्फ्रेंस राजनीतिक नुमाइंदा बन गयी।

 
इसे देश की नॉकरशाही ने कश्मीर समाधान का फॉर्मूला मान लिया था। एक बार राजनीतिक इच्छाशक्ति इंदिरा जी ने दिखाई थी लेकिन शिमला समझौते में नौकरशाही के कारण फेल हुई ,ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति वाजपेयी जी ने भी दिखाई लेकिन तब भी गुज़राल डॉक्ट्रिन को लेकर यही नॉकरशाही खड़ी रही। ऐसी ही हिम्मत प्रधानमंत्री मोदी ने भी सर्जीकल स्ट्राइक करके दिखाया था,लेकिन भारत की सोफ्त डिप्लोमेसी की जाल को तोड़ नहीं पाए।49 शहीदों के कॉफिन से उद्वेलित यह देश अपने जवानों की गिनती भी अब भूल गया है।

 
पिछले 30 वर्षों से खंडित जनादेश कश्मीर को स्टेटस को की हालत में रखा , सर्वोच्च न्यायालय ने भी 35A जैसे संवैधानिक धोखे को भी व्यख्या करने की हिम्मत नही जुटाई।क्योंकि कश्मीर कभी देश का मुद्दा नहीं रहा।क्योकि इस देश के नॉकरशाही को पता है मिलीजुली सरकार के सामने कश्मीर एजेंडा नहीं होगी और जात धर्म मे विभाजित समाज के सामने सरकार बनाने को लेकर नेशनल एजेंडा नही होगा।

 
जिस दिन इस देश मे कश्मीर मुद्दा बनेगा उस दिन के बाद हमारे एक भी जवान का कॉफिन कश्मीर से नहीं आएगा। पाकिस्तान की नॉकरशाही फौज के गिरफ्त में है जिसके लिए निर्वाचित प्रधानमंत्री का कोई वजूद नहीं है और इस देश की नॉकरशाही इतनी हावी है जिसके सामने राजनीतिक इच्छाशक्ति कानूनी दाव पेंच में फसी है। 130 करोड़ की आबादी और पराक्रम वाले सैन्यशक्ति के वावजूद यह देश अगर अपने जवानों की मौत से उद्वेलित है तो उन्हें यह बताना जरूरी है कि भावना का ज्वार बहुत ही अस्थायी होता है । समर्थवान देश होने का परिचय इस देश ने शास्त्रीजी के आह्वान पर एक शाम का भोजन तयाग कर दिया था क्या वही समर्थवान देश आज एक स्वर में कहेगा ,पहले कश्मीर बाद में कुछ और .....