देश विरोधी कश्मीरी अखबारों को सरकार नहीं देगी विज्ञापन, बंद होगी Greater Kashmir और Kashmir Reader की सालाना करोड़ों की कमाई
   23-फ़रवरी-2019
 
 
ग्रेटर कश्मीर और कश्मीर रीडर, कश्मीर घाटी के 2 बड़े अखबार हैं। जिनकी भाषा और एजेंडे को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। लगभग हाशिये पर जा चुके अलगाववादियों को ये अखबार खास तरजीह देते हैं। भारत और पाकिस्तान के मुद्दे पर भी इन दोनों अखबारों की भाषा पाकिस्तान के पक्ष में दिखाई देती है। लेकिन पुलवामा हमले के अलगाववाद और आतंकवाद से निबटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई पॉलिसी डिसीज़न लिये हैं। अब सरकार ने उनकी आवाज़ उठाने वाले ऐसे अखबारों पर भी कार्रवाई करने के मन बना लिया है लिहाजा ग्रेटर कश्मीर और कश्मीर रीडर को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई जाने की खबर है। ग्रेटर कश्मीर ग्रुप के अखबार अंग्रेजी और उर्दू में छपते हैं। जिनमें इंग्लिश डेली, ग्रेटर कश्मीर, इंग्लिश वीकली कश्मीर इंक और उर्दू में छपने वाला कश्मीर उज़्मा शामिल है। जिनको साल में करोड़ों के सरकारी विज्ञापन दिये जाते हैं।
 
एक अनुमान के मुताबिक अकेले ग्रेटर कश्मीर को दिेये जाने वाले विज्ञापनों का हिस्सा लगभग 40 फीसदी होता है। देखिए साल 2016-17 में सालाना आवंटित विज्ञापन राशि में से ग्रेटर कश्मीर का हिस्सा भी सबसे ग्रेटर है। जबकि कश्मीर रीडर का हिस्सा भी अच्छा खासा है।
 
 

 
 
ग्रेटर कश्मीर के विज्ञापन बंद होने की खबर मिलते ही नेशनल कांफ्रेंस के लीडर उमर अब्दुल्ला ने तुरंत सरकार पर निशाना साधा। इसके बाद तुरंत बाद पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने भी अब्दुल्ला की ताल में ताल मिलाई।
 
 
 

 
 
दोनों ने तर्क दिया कि ये अखबारों की आजादी पर हमला है। लेकिन एक तर्क ये भी है कि अब ये अखबार और निष्पक्ष होकर लिखा पायेंगे। क्योंकि उनको अब विज्ञापनों के बहाने दबाया नहीं जा सकता है।
 
 
हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि इन दो अखबारों के अलावा किन-किन अखबारों के विज्ञापन बंद होने वाले हैं। फिलहाल ये देखिए जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों के तमाम अखबारों को मिलने वाले विज्ञापनों के भुगतान की 2016-17 की लिस्ट-