ऐसा भी था एक वीर जवान जो अपने साथियों की जान बचाने के लिए निहत्थे ही भिड़ गया हथियारबंद मुस्लिम आतंकियों से
   25-फ़रवरी-2019

 
 
26 फरवरी 2010 का काबुल में भारतीय दूतावास पर हमला, जिसमे निहत्थे मेजर लैशराम ज्योतिन सिंह ने आतंकियों से मुठभेड़ की और अपने साथियों के अलावा 8 लोगों की जान बचाई
 
अशोक चक्र से सम्मानित लैशराम ज्योतिन सिंह का जन्म 14 मई ,1972 को मणिपुर में हुआ। उन्हें फरवरी 2003 में भारतीय सेना चिकित्सा कोर में नियुक्त किया गया था। 3 फरवरी 2010 को, मेजर लैशराम ज्योतिन सिंह अफगानिस्तान के काबुल में भारतीय चिकित्सा मिशन में नियुक्त किये गए। काबुल में उतरने के तेरह दिन बाद, 26 फरवरी 2010 को 06.30 बजे, काबुल में नूर गेस्ट हाउस, जहां वो रह रहे थे, वहां भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों ने हमला किया। आतंकवादियों के हमले शुरू करने से पहले गेस्ट हाउस के बाहर एक कार बम के धमाके से वहां तैनात तीन सुरक्षा गार्ड मारे गए और गेस्ट हाउस के आगे की तरफ के कुछ कमरे ढह गए थे जिनमे से एक में मेजर लैशराम का कमरा। आतंकवादीयों ने एके -47 से अलग-अलग कमरों में घुसकर गोलियां चलाना और हैंड ग्रेनेड से लोगों को मारना शुरू कर दिया।
 
 
 
 
हर जगह से गोलियों की और ग्रेनेड फटने की आवाज़ें आ रही थी। मेजर सिंह अपने कमरे के मलबे में से निकले और आतंकवादी पर टूट पड़े, जो की उनके सामने ही गोलियों से लोगों को भून रहा था। वह आतंकवादी के साथ बिना किसी हथियार के ही भीड़ गए, उन्होंने आतंकी के हाथ से पहले बंदूक छुड़वाई और उससे हाथापाई करते रहे, इसी दौरान मेजर सिंह ने आतंकवादी को जकड़ लिया और जब आतंकवादी को लगा की उसका बचना अब मुमकिन नहीं है, तो उसने अपने शरीर पर बंधी आत्मघाती(सुसाइड) बम के बटन को दबा दिया, जिससे उसकी मौत हो गई और साथ में "मेजर लैशराम ज्योतिन सिंह भी वही शहीद हो गए।
 
मेजर लैशराम ज्योतिन सिंह ने अपने पांच सहयोगियों की जान तो बचाई ही और तो और उनके बलिदान ने, परिसर के भीतर दो अधिकारियों, चार पैरामेडिक्स और दो अफगान नागरिकों के जीवन को भी बचाया। 26 जनवरी 2011 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मेजर सिंह को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था