9 फरवरी’13 जब टुकड़े-टुकड़े गैंग के चहेते आंतकी अफज़ल गुरु को फांसी पर लटकाया गया था, जानिए संसद हमले के दोषी अफजल के सारे राज़
   09-Feb-2019
 
 
 
9 फरवरी एक ऐसा दिन है जोकि कश्मीर घाटी में अलगाववादी और दिल्ली में बैठे टुकड़े-टुकड़े गैंग के गुर्गे काला दिन मनाते हैं, क्योंकि आज ही के दिन भारतीय न्यायिक दंड संहिता के तहत 2001 में संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गयी थी।  मोहम्मद अफजल गुरु 13 दिसंबर 2001 को भारतीय लोकतंत्र के पवित्र मंदिर संसद पर हमले का मास्टरमाइंड था। 11 साल एक महीने 26 दिन बाद, 9 फरवरी 2013 शनिवार की सुबह 8.00 बजे अफजल को जब तिहाड़ जेल में फांसी दी गई तो नींद की खुमारी गुम देशवासियों के लिए ये एक सुखद खबर थी, नैसर्गिक न्यायिक व्यवस्था में विश्वास बढाने वाली खबर थी लेकिन कश्मीर घाटी में अलगाववादियों और दिल्ली के मुठ्ठीभर कथित बुद्धिजीवियों पर अचानक मानों पहाड़ टूट पड़ा हो। उस दिन से लेकर आज तक अफजल गुरु को मासूम साबित की साजिशें की जा रही हैं। सेमिनार किये जाते हैं, विश्वविद्यालयों में अफजल की फांसी का बदला लेने के नारे लगाये जाते हैं। लेकिन क्या था अफजल गुरु का सच-
 
 
संसद हमले का मास्टरमाइंड 
जैश-ए-मोहम्‍मद के आतंकवादी मोहम्‍मद अफजल गुरु को भारत की उच्चतम अदालत ने भारतीय संसद पर हमले का दोषी माना था और 13 दिसंबर 2001 में भारतीय संसद में हमले के मास्‍टरमाइंड अफजल को सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में ही फांसी की सजा सुना दी थी। 
 

 
संसद हमले में 8 सुरक्षाकर्मियों समेत 9 लोग शहीद हुए थे
 
 
आतंकी बनने का सफर 
 
अफज़ल जम्‍मू और कश्‍मीर के बारामूला जिले का रहने वाला था। आईएएस की परीक्षा की तैयारी करने वाला अफजल 1990 के दशक की शुरूआत में आतंकी संगठन जम्‍मू कश्‍मीर लिबरेशन फ्रंट का सदस्‍य बना और पाकिस्तान जाकर आतंकी कैंप में उसने आतंकी ट्रेनिंग भी ली थी।
उत्तर कश्मीर के सोपोर निवासी अफजल ट्रांसपोर्ट और लकड़ी का व्यवसाय करने वाले हबीबुल्ला गुरु का बेटा अफजल गुरु अपनी पिता की मौत के समय बहुत छोटा था। एक साधारण परिवार में पैदा हुए अफजल का बचपन सामान्य था। रीज़नल स्कूल से अफजल ने 1986 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। हायर सेकेंड्री के लिए जब गुरु ने सोपोर के मुस्लिम एजुकेशन ट्रस्ट में दाखिला लिया तो वहां उसकी मुलाकात नवीद हकीम से हुई जो शांतिपूर्ण भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय था, लेकिन उस समय अफजल ने अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी और 12वीं पास कर मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेकर पिता के ख्वाब को पूरा करने में जुट गया। जब कश्मीर में 1990 के आसपास हथियारबंद चरमपंथ का दौर शुरू हुआ तो अफजल एमबीबीएस के तीसरे साल में था और तब तक उसका दोस्त नवीद हकीम चरमपंथी बन चुका था।
 
 
इसी दौरान श्रीनगर के पास छानपुरा में सेना की कार्रवाई के दौरान कथित महिला उत्पीड़न को लेकर अफजल काफी दुखी हुआ था। बताते हैं कि इस घटना के बाद अफजल के मन में आतंकी बनने का ख्वाब पलने लगा और उसने अपने साथियों के साथ हकीम से संपर्क स्थापित किया और फिर वह भारत विरोधी आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट में शामिल हो गया। अफजल ने पाकिस्तान जाकर हथियारों का प्रशिक्षण लिया और फिर जब लौटकर आया तो उसने सोपोर में करीब 300 कश्मीरी युवकों को भारत के खिलाफ तैयार भी किया।
 
 
 
कश्मीरी युवाओं में पाकिस्तान आज भी जहर भर रहा है
 
 
संसद हमले की तैयारी 
इसके बाद अफज़ल संसद पर हमले का मिशन लेकर वह दिल्ली आ गया और मिशन का किसी को पता न चल पाए इसलिए अपने चचेरे भाई शौकत गुरु की मदद से दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन में दाखिला ले लिया था। अपने खर्च निकालने के लिए अफजल दिल्ली में ट्यूशन भी पढ़ाने लगा और थोड़े समय के लिए बैंक ऑफ अमेरिका में नौकरी की।
 
 
वर्ष 2001 में जिस वक्त उसे संसद पर हमले के मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब वह फल कारोबार में कमीशन एजेंट के तौर पर काम कर रहा था। अफजल की भूमिका में जल्दी-जल्दी बदलाव इस बात को ओर साफ इशारा करता है कि वह दिल्ली प्रवास के दौरान भी आतंकी गतिविधियों में संलग्न था। दिल्ली में करीब सात साल का समय गुजारने के बाद अफजल 1998 में कश्मीर लौटा और बारामूला की लड़की तबस्सुम से शादी की। कुछ समय बाद अफजल ने दिल्ली की एक दवा बनाने वाली कंपनी में एरिया मैनेजर की नौकरी भी की और साथ-साथ खुद भी दवाइयों का कारोबार करने लगा। कुछ समय बाद अफजल सोपोर को छोड़ श्रीनगर आ गया और यहां से उसका ज्यादातर समय दिल्ली और श्रीनगर में बीतने लगा। अफजल का श्रीनगर आना और दिल्ली-श्रीनगर के बीच आवाजाही कुछ और नहीं बल्कि आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचाने कवायद का हिस्सा ही था।
 
 
2001,  संसद पर हमला और सज़ा
 
13 दिसंबर 2001 को सुबह करीब 11.40 बजे पांच आतंकवादी गृह मंत्रालय की स्टीकर लगी एक अंबेसडर कार में सवार होकर संसद परिसर में दाखिल हुए। सुरक्षाकर्मियों के ललकारे जाने पर इन आतंकियों ने उन पर गोलीबारी की जिसमें नौ लोगों की मौत हुई। मुठभेड़ में सभी पांचों आतंकवादी भी ढेर हो गए। जांच शुरू हुई और दिल्ली पुलिस की विशेष इकाई ने तथ्यों और सबूतों के आधार पर चार शख्स मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, अफसान गुरु और दिल्ली विवि. के लेक्चरर एस.ए.आर. गिलानी को गिरफ्तार किया।
 
  
 आतंकी अफजल का इकबालिया बयान एक टीवी इंटरव्यू में
 
 
 
 
सुनवाई के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के लेक्चरर गिलानी और शौकत हुसैन के साथ गुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी जबकि हुसैन की पत्नी अफसान को छोड़ दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने गिलानी को 2003 में बरी कर दिया जबकि गुरु और हुसैन की सजा बरकरार रखी। फिर सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में गुरु को सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखा और हुसैन को दस साल कैद की सजा सुनाई। जब यह तय हो गया कि अफजल गुरु को फांसी की सजा होगी तो गुरु की पत्नी तबस्सुम ने राष्ट्रपति के पास अफजल की फांसी के खिलाफ दया याचिका दायर की। इस बीच कई साल निकल गए और अफजल को लगने लगा कि उसकी दया याचिका मंजूर हो जाएगी। उसकी जान बच जाएगी।
 
 
इसी अहसास के बीच जब मुंबई हमले के दोषी आमिर अजमल कसाब को अचानक फांसी दे दी गई तो अफजल गुरु को भी फांसी के लिए जनमानस का सरकार पर दबाव बढ़ा। फिर क्या था, राष्ट्रपति ने अफजल की दया याचिका ठुकरा दी और 9 फरवरी को अफजल को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
 

 
 अफजल को फांसी पर लटकाने के बाद जेएनयू में प्रदर्शन करते कथित छात्र
 
इस बीच अलगाववादियों और दिल्ली में बैठे बुद्धिजीवियों ने अफजल की इमेज चमकाने की भरपूर कोशिश की। ह्यूमन एंगल की स्टोरीज़ लिखी-बनायी-गढ़ी गयी। उन्हें सेमिनार के जरिये लोगों के बीच प्रोपैगैंडा के तहत पहुंचाया। फांसी में जितनी देरी हुई, इन अफजल प्रेमियों के देश विरोधी आग भड़काने की उतनी ही ऑक्सीज़न मिलती। लेकिन एक दिन 9 फरवरी को जब केंद्र सरकार ने अफजल को उसकी करतूतों की सज़ा दे दी। इन बुद्धिजीवियों के मानों बरसों से खड़े किये झूठ के महलों पर बुल्डोज़र चला दिया गया हो। जगह-जगह प्रदर्शन किये गये, आज भी किये जा रहे हैं। लेकिन इस बहाने वो खुद का असली चेहरा एक्सपोज़ कर रहे हैं। जिनसे हमें बचकर रहना है, इन पर नज़र रखनी है। ताकि एक और संसद हमला न हो, एक और अफज़ल पैदा न हो।