J&K: सरकारी विज्ञापन बंद होने से तिलमिलाये अलगाववादियों के चहेते अखबार, विरोध में पहला पेज़ छोड़ा खाली
   10-मार्च-2019
 
पुलवामा हमले के बाद जम्मू कश्मीर सरकार ने उन अखबारों को सरकारी विज्ञापन न देने का फैसला किया, जोकि अलगाववादियों औऱ आतंकवादियों का पक्ष धडल्ले से छापते हैं। इनमें ग्रेटर कश्मीर और कश्मीर रीडर, कश्मीर घाटी के 2 बड़े अखबार हैं। सरकार के इस फैसले से इन अखबारों की करोड़ों की आमदनी बंद हो गयी है। इससे घबराये द कश्मीर एडिटर्स गिल्ड ने सरकार के इस फैसले का विरोध जताया जिस कड़ी में कईं कश्मीरी अखबारों ने आज अपने पहले पेज को खाली छोड़ कर विरोध जताया।

 
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दरअसल अब दूसरे अखबारों को भी ड़र है कि उनके विज्ञापन भी बंद हो सकते हैं। जिनकी भाषा और एजेंडे को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। लगभग हाशिये पर जा चुके अलगाववादियों को ये अखबार खास तरजीह देते हैं। भारत और पाकिस्तान के मुद्दे पर भी इन दोनों अखबारों की भाषा पाकिस्तान के पक्ष में दिखाई देती है। लेकिन पुलवामा हमले के अलगाववाद और आतंकवाद से निबटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई पॉलिसी डिसीज़न लिये। सरकार ने उनकी आवाज़ उठाने वाले ऐसे अखबारों पर भी कार्रवाई की और ग्रेटर कश्मीर और कश्मीर रीडर को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगा दी। ग्रेटर कश्मीर ग्रुप के अखबार अंग्रेजी और उर्दू में छपते हैं। जिनमें इंग्लिश डेली, ग्रेटर कश्मीर, इंग्लिश वीकली कश्मीर इंक और उर्दू में छपने वाला कश्मीर उज़्मा शामिल है। जिनको साल में करोड़ों के सरकारी विज्ञापन दिये जाते हैं।
 
 
 
 
 पुलवामा हमले के बाद अखबारों की हेडलाइन
 
 
एक अनुमान के मुताबिक अकेले ग्रेटर कश्मीर को दिेये जाने वाले विज्ञापनों का हिस्सा लगभग 40 फीसदी होता है। देखिए साल 2016-17 में सालाना आवंटित विज्ञापन राशि में से ग्रेटर कश्मीर का हिस्सा भी सबसे ग्रेटर है। जबकि कश्मीर रीडर का हिस्सा भी अच्छा खासा है।