जम्मू कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद की जड़ है जमात-ए-इस्लामी।
   12-मार्च-2019

 
 
 
28 फरवरी 2019 को केंद्र सरकार के गृहमंत्रालय ने UNLAWFUL ACTIVITIES (PREVENTION) ACT, 1967 - विधि विरुद्ध क्रिया - कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप धारा (1 ) और (3 ) के तहत एक अधिसूचना जारी कर जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर को 5 साल के लिया ग़ैरकानूनी संगठन घोषित कर उस पर प्रतिबन्ध लगा दिया
 
अपनी अधिसूचना में जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर प्रतिबन्ध लगाने के केंद्र सरकार द्वारा दिए गए कारण का सारांश है कि जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर राज्य को भारत से अलग करने की विचारधारा का समर्थन करता है और जो आतंकवादी और अलगाववादी संगठन, देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध काम कर रहे हैं उनको भी समर्थन देता है I
 
यदि इस संगठन पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया तो यह अलगाववाद का प्रचार करता रहेगा और जम्मू कश्मीर राज्य के भारत में विलय पर भी विवाद करता रहेगा I
 
14 फरवरी 2019 को CRPF सीआरपीएफ के काफिले पर फिदायीन हमले में 40 से अधिक जवानों के शहीद होने के बाद ये प्रतिबन्ध लगाया गया I
 
जब जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर के बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूरे राज्य में गिरफ़्तारी की गयी तब पता चला कि इस आतंकी संगठन ने अपना जाल न केवल कश्मीर घाटी पर बल्कि मंदिरों के शहर जम्मू में भी कई जगह फैला दिया था और आशंका है कि ये शांतिपूर्ण लद्दाख तक भी पहुँच गए होंगे I
 
आइये इस प्रतिबंधित संगठन के इतिहास की और देखें I 1945 में विभाजन से पूर्व जमात ए इस्लामी हिन्द की स्थापना हुई थी I 1952 में‘ जम्मूकश्मीर एक विवादित राज्य है’ये कारण बता कर वहाँ के लिए एक अलग शाखा बनायीं गयी जिसे जमात -ए –इस्लामी जम्मू कश्मीर का नाम दिया गया I जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर की स्थापना ही अलगाववाद की जड़ है। सांस्कृतिक रूप से जम्मू कश्मीर भारत का अंग सदियों से रहा है। यदि 1947 के बाद कानूनी रूप से भी देखे तो जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन एक तथ्य है जिसे न स्वीकारना एक साजिश ही है।
 

 
 
 
1975 में शेख अब्दुल्ला ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर पर लगाया था पहला प्रतिबंध
 
जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर पहला प्रतिबन्ध 1975 में आपातकाल के दौरान शैख़ अब्दुल्लाह ने लगाया था I हालांकि आपातकाल के हटते ही ये प्रतिबन्ध भी हट गया था I दूसरी बार इस पर प्रतिबन्ध लगा था 1990 में जब श्री वी पी सिंह प्रधानमंत्री थे और श्री जगमोहन जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे I तब राज्य में बढ़ती हुई आतंकवादी घटनाओं के कारण राज्यपाल का शासन चल रहा था
 
 
वी पी सिंह सरकार ने 1990 में जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर को ग़ैरकानूनी संगठन घोषित किया
 
उस समय ये प्रतिबन्ध केंद्रीय अधिनियम के तहत नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर राज्य के क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंटएक्ट 1983 के तहत 16 अप्रैल 1990 की अधिसूचना SRO 146 द्वारा जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर को ग़ैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया गया था I
 
राज्य के कानून के तहत लगाए गए इस प्रतिबन्ध की जाँच के लिए जस्टिस जी. डी. शर्मा की अध्यक्षता में एक जुडिशियल ट्रिब्युनल का गठन किया गया, जिसमें दो और सदस्य क़ाज़ी मुज़फर-उल–दिन और सरदार हरचरण सिंह बहरी थे I दोनों ही जिला और सत्र न्यायाधीश थे, जिसमें से मुज़फ्फरउलदिन कश्मीर से ही थे I
 
उन्होंने इस ट्रिब्यूनल के जम्मू के मुख्यालय में दो मीटिंग में हिस्सा लिया, लेकिन आतंकवादी संगठन लगातार उनको और उनके परिवार को ख़तम करने की धमकी दे रहे थे I ऐसी विपरीत परिस्तिथि में काम करने में उन्होंने असमर्थता जताई और ट्रिब्यूनल छोड़ दिया I ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस शर्मा को भी धमकियाँ दी जा रही थीं पर वे अपने पद पर बने रहे I जल्द ही मुज़फर -उल –दिन की जगह श्री हरबंसलाल को नियुक्त कर दिया गया I
 
इस मामले में जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर के मुख्य चारअभियुक्त थे : 1. हाकिम ग़ुलाम नबी . 2. मुबारक शाह 3 . मोहम्मद अशरफ सहराई और 4. सय्यद अली शाह गिलानी I जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर के देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के सरकार ने लगभग 48 घटनाओं के सबूत प्रस्तुत किये I
 

 
 
 
जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ जांच कर रहे ट्रिब्यूनल सदस्य काजी मुज़फर-उल–दिन और उनके परिवार को आतंकवादी जान से मारने की धमकी दी थी 
 
 
जमात-ए-इस्लामी एक इस्लामिक राज्य की स्थापना करना चाहता हैI
 
जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर के खिलाफ दिए गए सबूतों की जाँच करने के बाद ट्रिब्यूनल ने यह माना कि – यह संगठन देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध काम कर रहा है I संगठन एक इस्लामिक राज्य की स्थापना करना चाहता हैI जम्मू कश्मीर के भारत में विलय की वैधता पर प्रश्न उठाते हुए, संगठन बार बार राज्य को भारत से अलग करने का प्रचार प्रसार करता हैI
 
साथ ही वहाँ के नवयुवकों को देश के विरूद्ध भड़काकर उन्हें उकसाता है कि राज्य का भविष्य केवल कश्मीरी तय कर सकते हैं और कोई नहीं I संगठन राज्य और केंद्र सरकार पर झूठे आरोप लगाता है कि वे राज्य की मुस्लिम बहुल जनसख्या कम करने का प्रयास कर रहे हैं I यहाँ तक कि यह संगठन जम्मू कश्मीर राज्य के संविधान को भी वैध नहीं मानता I राज्य में धार्मिक हिंसा और अशांति फैलाना इसका काम है I ग़ैर मुस्लिम समुदायों को डराना, उनके खिलाफ हिंसा करना, अराजकता फैलाना इनका ध्येय है I इस सबके कारण गैर मुस्लिम समुदायों में डर व असुरक्षा की भावना है I
 
उपर्युक्त सभी कारणों से ट्रिब्युनल ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर राज्य के कानून के तहत लगाए गए प्रतिबन्ध को वैध माना I