नेहरू की सबसे बड़ी भूल, न सिर्फ 2 बार सुरक्षा परिषद् सदस्य बनने का सोवियत और अमेरिका का ऑफर ठुकराया, बल्कि लड़कर चीन की सीट पक्की करवायी
   14-मार्च-2019
 
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में जैश को बचाने की चीन की मक्कारी बाद एक बार फिर भारत की नीतियों पर चौतरफा सवाल उठ रहे हैं। सवाल इतिहास की उन नीतिगत गलतियों को लेकर भी उठ रहे हैं, जिस गलती की सजा 70 सालों से पीढी-दर-पीढी भोगते आ रहे हैं। उनमें से एक है देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा सुरक्षा परिषद् की सदस्यता ठुकराना। वो भी 2 बार... पहली बार 1950 में अमेरिका ने भारत को छठे सदस्य के तौर पर नामित करवाने चाहा, दूसरी बार 1955 में सोवियत संघ द्वारा। दोनों ही बार पीएम नेहरू ने न सिर्फ ऑफर ठुकराया, बल्कि सालों तक लगातार चीन की सदस्यता पक्की करने के लिए तमाम देशों से गुहार लगाते रहे हैं। हालांकि 1955 में संसद में एक सवाल के जवाब में नेहरू ने सदस्यता के ऑफर की बात को झुठलाया, लेकिन ऐसे ढेरों सबूत हैं जो ये साबित करते हैं कि अमेरिका और सोवियत संघ ने सीधे तौर पर भारत को चीन की जगह सुरक्षा परिषद् का सदस्य बनने का ऑफर किया था।
 
 
 
1950 में अमेरिका का ऑफर
 
 
1950 के दशक में, भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में चीन को शामिल किए जाने का एक बड़ा समर्थक था। तब यह सीट ताइवान के पास थी।
 

 
 UNSC during 1950s
 
 
1949 में संयुक्त राष्ट्र ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को यह सीट देने से इनकार कर दिया था। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ही थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्य बनाए जाने को लेकर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की वकालत की। इसको लेकर तमाम तथ्य मौजूद हैं। अगस्त 1950 में नेहरू की बहन और डिप्लोमैट विजया लक्ष्मी पंडित ने वाशिंगटन से उनको एक पत्र लिखा, जिसमें विजया लक्ष्मी ने अमेरिका के सुरक्षा परिषद् के सदस्य बनने के ऑफर का जिक्र किया। पढ़िए-
 

 
 
लेकिन जवाब में पीएम नेहरू ने जो लिखा वो वाकई चौंकाने वाला है, नेहरू ने न सिर्फ सदस्यता के ऑफर को सिरे से ठुकरा दिया। बल्कि चीन की वकालत करने का फैसला किया। पढिए नेहरू का जवाब-
 
 

 
 
 
1955 में सोवियत संघ का ऑफर
 
 
सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा लिखी गयी बायोग्राफी ऑफ नेहरू में भी इस तथ्य को लिखा गया है कि नेहरू को 1955 में सोवियत संघ ने सुरक्षा परिषद् की सदस्यता का ऑफर किया था।
 

 
इसको 2002 में नेहरू प्रशंसक इतिहासकार ए.जी. नूरानी ने भी अपनी पुस्तक सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहर लाल नेहरू में भी लिखा है। नूरानी ने सोवियत संघ के तत्कालीन प्रीमीयर निकोलई बुल्गैनिन और नेहरू की बातचीत को quote किया है। जिसमें निकोलई नेहरू को सीधे तौर पर सदस्यता ऑफर कर रहे हैं। लेकिन यहां भी नेहरू न सिर्फ सदस्यता को नकारते हैं। बल्कि चीन की वकालत करते हैं..। पढिए-
 

साफ है कि नेहरू को उस वक्त के 2 बड़े देशों ने सयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सदस्यता ऑफर हुई थी, लेकिन नेहरू ने चीन से दोस्ती बढाने की भूल में लगातार इसको नकारा, जिसका पहला नतीजा 1962 के युद्ध में देखने को मिला। जिसके बाद चीन ने हमेशा हरेक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की मुखालफत करता रहा है।