जानिए, क्या-क्या ट्रेनिंग दी जाती थी जेहादियों को जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट कैंप में
   03-मार्च-2019
 
 
पुलवामा हमले का बदला लेने के बाद भारत ने जब पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की तो बालाकोट का जिक्र सबसे आगे आया। दरअसल ये वो जगह थी जहां खैबर पख्तूख्वां प्रोविंस के नौशेरा जिले में न्यू बालाकोट के पूर्वोत्तर में जाबा हिल टॉप पर जैश-ए-मोहम्मद का सबसे बड़ा फियादीन आतंकी कैंप था। 1998 में विमान हाईजैक के बाद मसूद अजहर ने छूटने के बाद यहां सबसे बड़ा कैंप बनाया था। ये वो जगह थी, जहां आत्मघाती जेहादियों को हथियार चलाने, बम बनाने जैसी तमाम खतरनाक ट्रेनिंग दी जाती थी। आसपास के लोगों के लिए ये कैंप सिर्फ एक मरकज़-ओ-मदरसा था, जहां कि कुरान की तालीम दी जाती थी। दरअसल यहां फिदायीन बनाने के लिए 5 अलग-अलग कोर्स कराये जाते थे। पहले से लेकर पांचवें तक हर कोर्स का लेवल बढ़ता जाता था। भारतीय खुफिया एंजेसियों के पास इसकी तमाम पुख्ता जानकारी थी। वो तमाम जानकारी सबूतों के साथ भारत ने पाकिस्तान को एक डोज़ियर के रूप में दी है।
इस डोज़ियर में न सिर्फ बालाकोट कैंप के नक्शे, जेहादी कोर्स की तमाम जानकारी, यहां के जेहादी लीडर्स की जानकारी के साथ उनकी पहचान के तमाम सबूतों के दस्तावेज़ पाकिस्तान को सौंपे गये हैं।
 

 
बालाकोट कैंप मौलाना अम्मार की देखरेख में चल रहा था 
 
 
इन्हीं दस्तावेज में बालाकोट कैंप में जैश के आतंकी अड्डों में चलने वाले फिदायीन कोर्स की तफ्सीली जानकारी भी है। देखिए जैश द्वारा चलाये जा रहे 5 अलग-अलग फिदायीन कोर्स की जानकारी। पहले 4 कोर्स पाकिस्तान के अलग-अलग कैंपों में चलाये जाते हैं। 
 

पहला कोर्स एक बेसिक कोर्स है। जोकि आठवीं क्लास के बच्चों के सिखाया जाता है। इसमें फिदायीन और जिहाद के इस्लामी मायने सिखाये जाते हैं।
 
 
 
दूसरा कोर्स फिदायीन जिहादी बनने वाले टीनएजर बच्चों के लिए है। जिनको कुरान की आयतों के जरिये जिहाद करना और फिदायीन बनने के फर्ज के बारे में सिखाया जाता है। यहीं पर जेहादियों के मन में इस्लामी कट्टरपंथ का जहर बोया जाता है।
 
 
दूसरे कोर्स को पास करने के बाद कुछ सेलेक्टेड बच्चों को तीसरे कोर्स से जेहादी तालिबान के हथियारों की ट्रेनिंग शुरू कर दी जाती है। आमतौर पर ये कोर्स 8 महीने से एक साल का होता है। साथ ही इसमें एलएमजी चलाना, रॉकेट लॉन्चर इस्तेमार करना, ग्रेनेड इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।
 

 
इसके बाद चौथे कोर्स में कम्यूनिकेशन टेक्नॉलिजी की ट्रेनिंग दी जाती है।
 

 
 
इसके बाद इन जेहादी ट्रेनिंग पाने वालों में से कुछ को जिहादी आतंकवाद की अंतिम ट्रेनिंग या पांचवें कोर्स की ट्रेनिंग बालाकोट कैंप में दी जाती थी। जहां स्वीमिंग पूल जैसी तमाम सुविधाएं मौजूद थी। यहीं पर तैयार होकर फिदायीन जिहादी कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए निकलते थे। बताया जाता है कि पुलवामा हमले के आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार ने भी यहीं से ट्रेनिंग ली थी।