नेहरू का सबसे बड़ा राजनीतिक घोटाला: खुद पीएम रहते नहीं होने दिये जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव, 1967 में हुआ था पहला चुनाव
   31-मार्च-2019
 
क्या आप जानते हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य में पहली बार डायरेक्ट लोकसभा चुनाव 1967 में हुआ था। आज़ादी के ठीक 20 साल बाद..। कारण सिर्फ एक है देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू। उनके शासन काल के दौरान पहली 3 टर्म में जम्मू कश्मीर से लोकसभा सदस्य चुने नहीं जाते थे। बल्कि नामित किये जाते थे। कुछ-कुछ राज्य सभा चुनावों की तरह..।
 
 
आप भी हैरान होंगे कि वास्तव में हमें ये तथ्य कभी बताया ही नहीं गया। क्यों इसके बारें में चर्चा नहीं कि गयी आधुनिक इतिहासकारों द्वारा। सवाल कईं हैं, जवाब आप ढूंढियेगा। हम आपको इससे जुड़े तमाम तथ्य बताते हैं।
 
जम्मू कश्मीर देश का इकलौता राज्य है जहां देश के पहले पीएम नेहरू की नीतियों के चलते देश के संविधान का खुलेआम मज़ाक उड़ाया गया। हालांकि 26 नवंबर 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करते ही विलय पूर्ण हो गया था। लेकिन पंडित नेहरू की नीतियों और शेख अब्दुल्ला की चालाकियों के चलते शुरूआत से ही जम्मू कश्मीर को भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था से अलग रखा गया। नतीज़ा आज हम सब भुगत रहे हैं।
 
जम्मू कश्मीर में लोकसभा की कुल 6 सीटें हैं। अब तक कुल 16 लोकसभा चुनावों में से जम्मू कश्मीर में सिर्फ 12 बार चुनाव हुए। इनमें से तीन बार नेहरू राज में चुनाव नहीं हुआ और एक बार आतंकवाद के चलते 1991 में।
 
 

 
 
 
नेहरू, शेख अब्दुल्ला के प्रभाव में पहले ही जम्मू कश्मीर में काफी नुकसान कर चुके थे
 
 
नेहरू राज के दौरान 3 लोकसभा चुनाव-
  
 
देश में पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 के बीच हुआ। उस वक्त 85 फीसदी आबादी निरक्षर थी, फिर भी 21 साल से ऊपर के मतदाताओं ने पहली लोकसभा के लिए वोट किया। लेकिन जम्मू कश्मीर में चुनाव नहीं कराया गया। बल्कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सलाह पर राष्ट्रपति ने 6 सांसदों को नामित किया गया। 
 
उसके बाद 1957 और 1962 के दूसरे और तीसरे आम चुनाव में भी जम्मू कश्मीर में सीधा चुनाव नहीं कराया गया। दोनों ही टर्म के दौरान जम्मू कश्मीर विधानसभा के सलाह पर राष्ट्रपति ने 6 सांसदों को नामित किया। ये साफतौर पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ था ही, बल्कि इसके जरिये जम्मू कश्मीर की जनता के अपने प्रतिनिधि चुनने के हक पर डाका डाला गया। क्यों ऐसा किया गया, जवाब कभी नहीं दिया गया।
 
 
पहले तीन लोकसभा चुनाव में देश की राज्यवार स्थिति, राज्यों की लिस्ट से जम्मू कश्मीर गायब है-
 
 
 


 
 
 
 
 
धारा 370 के बहाने किया लोकतांत्रिक व्यवस्था से खिलवाड़
 
1954 में पीएम नेहरू की सलाह पर देश के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने कॉन्सटीट्यूशन (जम्मू कश्मीर) ऑर्डर 1954 जारी किया। ये ऑर्डर आर्टिकल 370 (1) के शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए निकाला गया। जिसके जरिये जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के कई प्रोविज़न लागू किये गये थे। इनमें से एक था भारतीय संविधान का आर्टिकल 81 । जोकि देश को डायरेक्ट वोट का इस्तेमाल कर लोकसभा सदस्यों के रूप में अपने प्रतिनिधि को चुनने की शक्ति देता है। जम्मू कश्मीर में इस आर्टिकल 81 को कुछ बदलावों के साथ लागू किया गया। इसके तहत जम्मू कश्मीर विधानमंडल को ये शक्ति दी गयी कि वो लोकसभा औऱ राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव करें। नेहरू के इस फैसले ने न सिर्फ जम्मू कश्मीर के लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या की थी। बल्कि राज्य सभा और लोकसभा सदस्यों को चुनने की प्रक्रिया को जम्मू में लगभग एक बना दिया था। जोकि देश के संविधान का ही उल्लंघन था। लेकिन इसके जरिये पंडित नेहरू जम्मू कश्मीर से अपने खास लोगों को चुनने का अधिकार मिल गया था। जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी जीते-जी 3 बार किया।
 
 
 
 
 
President modified Article 81 under Article 370 (1) by Para. 5 (c) of the Constitution (Application of Jammu and Kashmir) Order 1954, to the effect that “the representatives of the State in the House of People shall be appointed by the President on the recommendations of the Legislature of the State”.
 
 
 
1954 प्रेज़िडेंशियल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
 
 
1954 के ऑर्डर के खिलाफ 1961 में पूरणलाल लखनपाल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लखनपाल ने तर्क रखा कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हुए डायरेक्ट इलेक्शन को इन-डायरेक्ट इलेक्शन में तब्दील कर दिया है। पूरे देश की तरह जम्मू कश्मीर की जनता को भी लोकसभा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
 
लेकिन दुर्भाग्यवश सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति के पास असीमित अधिकार हैं, लिहाजा उनके पास आर्टिकल 81 में भी संशोधन का अधिकार हैं। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने लखनपाल की याचिका खारिज कर दी। यानि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर के मामले में लोकतांत्रिक हत्या को जायज ठहरा दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि जम्मू कश्मीर के लोगों को लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया से दूर कर दिया गया। कोई साधारण शख्स चुनाव में हिस्सा नहीं ले पाता था। उससे चुनाव लड़ने का अधिकार भी छीन लिया गया था।
 
पूरणलाल लखनपाल ने अपनी याचिका में कहा कि एक आम नागरिक होने के नाते वो भी चाहता है कि जम्मू कश्मीर से लोकसभा चुनाव लड़े। ये उसका लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन 1954 के कांस्टीट्यूशनल ऑर्डर के चलते वो ऐसा नहीं कर पा रहा। लखनपाल की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक पीठ को सुनवाई के लिए रेफर किया। लेकिन यहां भी पॉलिटिकल-ज्यूडिशरी नेक्सस साफ दिखायी दिया। पीठ ने न सिर्फ मामले को सुनवाई के योग्य न होने की बात कहकर खारिज़ किया। बल्कि सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने की बात कहकर लखनपाल पर फाइन भी लगाया। लेकिन सवाल उठता है कि अगर केस में मेरिट थी ही नहीं, तो उसे तय प्रक्रिया के तहत संवैधानिक पीठ को रेफर ही क्यों किया गया। वजह जो हो सुप्रीम कोर्ट ने भी नेहरू नीति पर मुँह फेर लिया था।
 
 पूरणलाल लखनपाल ने अपनी याचिका में कहा कि एक आम नागरिक होने के नाते वो भी चाहता है कि जम्मू कश्मीर से लोकसभा चुनाव लड़े। ये उसका लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन 1954 के कांस्टीट्यूशनल ऑर्डर के चलते वो ऐसा नहीं कर पा रहा। लखनपाल की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक पीठ को सुनवाई के लिए रेफर किया। लेकिन यहां भी पॉलिटिकल-ज्यूडिशरी नेक्सस साफ दिखायी दिया। पीठ ने न सिर्फ मामले को सुनवाई के योग्य न होने की बात कहकर खारिज़ किया। बल्कि सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने की बात कहकर लखनपाल पर फाइन भी लगाया। लेकिन सवाल उठता है कि अगर केस में मेरिट थी ही नहीं, तो उसे तय प्रक्रिया के तहत संवैधानिक पीठ को रेफर ही क्यों किया गया। वजह जो हो सुप्रीम कोर्ट ने भी नेहरू नीति पर मुँह फेर लिया था।
 
 
 पूरणलाल लखनपाल ने अपनी याचिका में कहा कि एक आम नागरिक होने के नाते वो भी चाहता है कि जम्मू कश्मीर से लोकसभा चुनाव लड़े। ये उसका लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन 1954 के कांस्टीट्यूशनल ऑर्डर के चलते वो ऐसा नहीं कर पा रहा। लखनपाल की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक पीठ को सुनवाई के लिए रेफर किया। लेकिन यहां भी पॉलिटिकल-ज्यूडिशरी नेक्सस साफ दिखायी दिया। पीठ ने न सिर्फ मामले को सुनवाई के योग्य न होने की बात कहकर खारिज़ किया। बल्कि सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने की बात कहकर लखनपाल पर फाइन भी लगाया। लेकिन सवाल उठता है कि अगर केस में मेरिट थी ही नहीं, तो उसे तय प्रक्रिया के तहत संवैधानिक पीठ को रेफर ही क्यों किया गया। वजह जो हो सुप्रीम कोर्ट ने भी नेहरू नीति पर मुँह फेर लिया था।
 
 
1967 में हुआ पहला लोकसभा चुनाव
  
नेहरू की मृत्यू के पश्चात पहला चुनाव 1967 में हुआ, जब पहली बार जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव कराये गये। इससे पहले राष्ट्रपति के आदेश द्वारा आर्टिकल 81 से संबंधित प्रेजिडेंशियल ऑर्डर को वापिस ले लिया गया। जम्मू कश्मीर की कुल 6 सीटों के लिए चुनाव कराया गया। हालांकि तब भी आर्टिकल 370 एक बाधा बना रहा। क्योंकि इन 6 सीटों में से कोई भी सीट आरक्षित नहीं थी।
 
 
 
 
पहले चुनाव में कोई महिला चुनाव मैदान में नहीं उतरी। जम्मू कश्मीर के कुल 53.42 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 6 में से 5 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते औऱ एक सीट पर जम्मू कश्मीर नेशनल काँफ्रेस का उम्मीदवार विजयी हुआ।