अयोध्या केस में ‘’मध्यस्थता’’ के जरिये सुलझाने का फैसला रिजर्व, हिंदू संगठनों ने किया था विरोध- जानिए सुप्रीम कोर्ट की आज की पूरी प्रक्रिया
   06-मार्च-2019

 

 
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ ने अयोध्या मामले को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने के फैसले को रिजर्व रखा है। दरअसल आज ये फैसला होना था कि क्या अयोध्या मामला मध्यस्थता के जरिये सुलझाया जाये या नहीं। जिसपर आज बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस पर फैसला नहीं सुनाया और रिजर्व रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम पक्षों को अपने मध्यस्थों के नाम देने को कहा है, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता के मामले में अपना फैसला सुनायेगी।
 
 
 
कुछ ऐसे हुई आज की बहस की सुनवाई--
 
 
जस्टिस एसए बोबडे ने प्रस्ताव रखा था कि क्यों न इस केस को मध्यस्थता के जरिये सुलझाया जाये। इस पर श्री रामलला विराजमान, महंस सुरेश दास और हिंदू सभा के एडवोकेट सी एस वैद्यानाथन ने इसका विरोध किया और कहा कि मामला न सिर्फ से जुड़ा है बल्कि संवेदनशील भी है, ये सिर्फ प्रॉपर्टी का मामला नहीं है। लिहाजा मध्यस्थता का फैसला करने से पहले पब्लिक नोटिस जारी करना चाहिए।
 
 
जिस पर जस्टिस बोबडे ने कहा मध्यस्थता के लिए भेजने पर क्या होता है, इस पर कोर्ट चिंतित नहीं है। हम मामले की गंभीरता और उसके राजनीतिक असर को समझते हैं। लेकिन पास्ट (बीता हुआ समय) बदला नहीं जा सकता, हमें वर्तमान की सोचनी है।
 
 
इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कहा कि मध्यस्थता के लिए तमाम पार्टियों का राजी होना ज़रूरी नही है। (आपको बता दें कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, एम सादिक, एम हाशिम और निर्मोही अखाड़ा पहले ही मध्यस्थता के लिए राजी हो चुके हैं।)
 
 
 
 अयोध्या केस की सुनवाई कर रही 5 जजों की खंडपीठ, स्रोत- लाइव-लॉ
 
 
इस पर जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि मध्यस्थता की प्राइवेसी का पूरा ख्याल रखा जायेगा। मीडिया रिपोर्टिंग बैन की जा सकती है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड ने थोड़ा अलग रूख जाहिर करते हुए कहा कि मध्यस्थता कैसे लाखों लोगों से छिपाई जा सकती है। ये सिर्फ 2 पार्टियों का निजी मामला नहीं है। फिर भी मध्यस्थता एक रास्ता हो सकता है।
 
 
मध्यस्थता को देखते हुए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि मध्यस्थता के नियम तय होने चाहिए।
 
 
जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि जैसे कोर्ट का फैसला सभी पार्टियों को मान्य होता है, उसी तरह मध्यस्थता के बाद तय होने वाला निर्णय भी सभी पार्टियों को मानना होगा। साथ ही जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम मध्यस्थता के कानूनी पहलूओं पर गौर कर रहे हैं जो सबको मान्य हों।
 
 
हिंदू संगठनों के एडवोकेट सीएस वैद्यानाथन ने कहा आस्था और विश्वास में समझौता कैसे हो सकता है। ये आस्था कि ये जगह भगवान राम की जन्मभूमि है, इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।
 
बहरहाल तमाम बहस को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसले को सुरक्षित रख लिया है।  अब तमाम पक्षों को सुप्रीम कोर्ट को अपने मध्यस्थों के नाम देने हैं। इसके बाद ही कोर्ट अपना फैसला सुनायेगी।