जम्मू कश्मीर में दोयम दर्ज़े की नागरिक क्यों हैं महिलाएं! कब मिलेगा उनको बराबरी का हक़...?
   08-मार्च-2019
 

 
 
आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, भारत में भी महिला दिवस बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। महिलाओं के सामान अधिकारों पर संगोष्ठियाँ होती हैं, महिला सशक्तिकरण के लिए नए प्रावधानों के प्रारूप तैयार किये जाते हैं, और उनपर कानून बना कर उन्हें अमल में भी लाया जाता है । पर हमारे ही देश में एक ऐसा राज्य है जहाँ महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है, वो भी बाकायदा कानून बना कर । जी हाँ आपने सही पढ़ा, भारत के संविधान में राज्यों की फेहरिस्त में 15 वे स्थान पर है जम्मू कश्मीर । इस राज्य में अनुच्छेद 35 A लागू किया गया है, जो समाज के कई समुदायों के साथ कानूनन भेद भाव करता है । 35 A के शिकार, पश्चिम पाकिस्तान से विभाजन के समय आये हिन्दू और सिख (जिनकी संख्या अब लगभग २ लाख के करीब है), 1957 में पंजाब से लाये गए सफाई कर्मचारी, गोरखा समाज, जम्मू कश्मीर की जनसंख्या के 16 प्रतिशत एसटी, और 50 प्रतिशत महिलाएँ शामिल हैं । आज हम 35 A के भेद भाव की शिकार जम्मू कश्मीर की 50 फीसदी जनसंख्या की बात करेंगे । महिला सशक्तिकरण के बारे में महिलाओं के सामान अधिकारों के बारे में आज हमारे देश में बहुत जागरूकता आयी है । चाहे शहर हो या गाँव, सभी जगह महिला और पुरुषों को सामान अधिकार देने के प्रावधान हैं , परन्तु जम्मू कश्मीर मानो इस प्रगतिशील विचारधारा से अछूता है।
 
 
क्या है अनुच्छेद 35 A ?
 
अनुच्छेद 35 A के तहत, जम्मू कश्मीर में रहनेवाले हर व्यक्ति के पास परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट यानि पीआरसी होना चाहिए, दूसरे शब्दों में कहें तो ‘’स्थानीय निवासी प्रमाणपत्र’’ होना चाहिए । राज्य की सरकार ये प्रमाणपत्र वहाँ के निवासियों को देती है । पीआरसी धारक व्यक्ति जम्मू कश्मीर में संपत्ति खरीद और बेच सकता है, चल अचल संपत्ति का वारिस बन सकता है, व्यापार शुरू कर सकता है, सरकारी नौकरी कर सकता है, सरकार द्वारा संचालित शिक्षा संस्थान में पढ़ सकता है, बैंक से लोन ले सकता है, सभी प्रकार की स्कॉलरशिप प्राप्त कर सकता है, सभी चुनावों में वोट डाल सकता है और चुनाव लड़ भी सकता है, राज्य और केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ उठा सकता है । संक्षेप में कहें तो वो हर सुविधा और हर अधिकार पाता है, जो एक आम नागरिक को हमारा संविधान प्रदान करता है । परन्तु जिसके पास पीआररसी नहीं वह व्यक्ति ऊपर लिखे सभी अधिकारों से वंचित रह जाता है।
 
35 A और महिलाएँ :
 

 
 
आइये समझें 35 A किस प्रकार महिलाओं से भेद भाव कर उन्हें अपने अधिकारों से भी वंचित कर देता है । इस प्रावधान के अनुसार जम्मू कश्मीर की पीआरसी धारक कोई भी महिला, चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान, सिख हो या बौद्ध, यदि किसी गैर पीआरसी धारक व्यक्ति से या राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करती है तो उसे बतौर पीआरसी धारक जितने अधिकार मिलते हैं वो सभी छोड़ देने पड़ते थे I
 
और सरकार से कहीं कोई ग़लती न हो जाये इसलिए महिलाओं के पीआरसी पर "वैलिड टिल मैरिज’’ अर्थात “विवाह तक वैध" ये लिख दिया जाता था । इसका मतलब है की यदि कोई पीआरसी धारक महिला जो जम्मू कश्मीर में पली- बढ़ी हो, उसके माता पिता, पुरखे भी पीढ़ी दर पीढ़ी वहीं रह रहे हों, अगर बिना पीआरसी धारक से या राज्य से बाहर के किसी आदमी से शादी करे, तो शादी के बाद, ना तो ये महिला राज्य में सरकारी नौकरी कर सकती है, न पढ़ सकती है, न वोट डाल सकती है, यहाँ तक की संपत्ति खरीद और बेच भी नहीं सकती है । अत्याचार की पराकाष्ठा तब होती जब इस महिला को अपने ही माता पिता से मिलने वाली संपत्ति से बेदखल कर दिया जाता । क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं, की जब माता पिता की इकलौती संतान यदि बेटी हो, जो बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करने की ग़लती कर दे, तो उस लड़की को अपनी पैतृक संपत्ति के सारे अधिकार छोड़ने पड़ते । कहने का तात्पर्य ये की नए भारत की इस महिला को किस से शादी करनी चाहिए, किस से प्रेम करना चाहिए यह भी तय करने का अधिकार नहीं । सरकार निश्चित करेगी की आप किस से प्रेम करें और किस से शादी करें।
 
समस्या और गंभीर तब हो जाती है जब ऐसी माहिला या तो विधवा हो जाती है या उसका तलाक़ हो जाता है । ऐसी परिस्तिथि में ज़ाहिर है की ये महिला अपने माता पिता, या भाई के पास वापस आएगी । पर गैर पीआरसी से शादी करने की सजा तो उससे भुगतनी ही पड़ती, वो वापस आकर रह सकती लेकिन बाकी कोई अधिकार उसे नहीं मिलते।
 
यहाँ आपको यह बताना ज़रूरी है की इसके ठीक विपरीत यदि कोई पीआरसी धारक पुरुष गैर पीआरसी धारक महिला से या राज्य ही नहीं देश से भी बाहर की महिला से विवाह करे तो न केवल पुरुष के सभी अधिकार सुरक्षित रहते हैं, बल्कि उस से विवाह करनेवाली महिला को भी पीआरसी मिल जाता है, और सारे अधिकार भी मिल जाते हैं। ऐसी शादी में यदि पति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी विधवा को संपत्ति के सारे अधिकार भी मिल जाते हैं । जैसे की जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्लाह की पत्नी ब्रिटेन से थीं, पर फारूख अब्दुल्लाह से शादी के बाद वे भी पीआरसी धारक बन गयीं और उन्हें सारे अधिकार मिल गए । वे चाहें तो राज्य के चुनाव भी लड़ सकती हैं । इसी प्रकार उनके बेटे उमर अब्दुल्लाह ने भी राज्य से बाहर की महिला से शादी की हुए उनको भी पीआरसी मिल गया।
 
वहीं दूसरी ओर फारुख अब्दुल्ला की बेटी सारा का विवाह सचिन पायलट से हुआ जो कि राजस्थान के रहने वाले हैं। भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। इन दोनों की संताने यदि चाहें तो जम्मू कश्मीर में पढ़ाई नहीं कर सकते वहां कोई नौकरी नहीं कर सकते ,वहां पर जमीन नहीं खरीद सकते।फारूक अब्दुल्लाह की संपत्ति में सारा अब्दुल्ला को हिस्सा मिल भी जाए तो भी वह वह अपने इस हिस्से को अपने पति अपने बच्चे को ट्रांसफर भी नहीं कर सकती।
 
महिलाओं के साथ हो रहा भेद भाव तब और बढ़ जाता है जब महिला दलित हो । 1957 में पंजाब से लाये गए वाल्मीकि समाज को जम्मू कश्मीर में केवल सफाई कर्मचारी के नौकरी मिल सकती है I और इस वाल्मीकि समाज की महिलाओं के स्तिथि और भी भयानक है । पीआरसी न होने के कारण आज यदि इस समाज की लड़की पढ़ लिख कर कोई नौकरी करना चाहे तो वो नहीं कर पाती है । उदाहरण के तौर पर आप राधिका गिल को देखिये, राधिका खेल कूद में अव्वल नंबर पर रहती, एक बहुत अच्छी धाविका है और कई पदक और पुरस्कार जीत चुकी है । 12 वीं पास कर राधिका बीएसएफ में भर्ती होना चाहती थी । भर्ती होने के लिए सभी परीक्षाएँ उत्तीर्ण करने के बाद राधिका को इस केंद्र सरकार की नौकरी में जगह इसलिए नहीं मिली क्योंकि वो वाल्मीकि समाज से है और उसके पास पीआरसी नहीं है । ऐसे सामाजिक और लैंगिक भेदभाव का उदहारण आपको देश में कहीं नहीं मिलेगा।
 
संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का ये अच्छा मज़ाक है। एक ओर हम हर स्तर पर महिला और पुरुष के सामान अधिकार की बात करते हैं और दूसरी ओर 35 A कानून के नाम पर सारे आम महिलाओं से भेदभाव किया जा रहा है।

2002 में आया बदलाव:
 
महिलों से दुय्यम दर्ज़े के नागरिकों जैसे व्यवहार का ये सिलसिला वर्ष 2002 तक चलता रहा । सौभाग्य से वर्ष 2002 में सुशीला सावहनी का मामला जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में आया , जिसमें “गैर पीआरसी व्यक्ति से विवाह करने पर क्या पीआरसी धारक महिला के अधिकार समाप्त हो जाते हैं” इस मुद्दे पर बहस हुई । माननीय न्यायालय ने "विवाह तक वैध" लिखने वाले नियम को समाप्त करने का आदेश देते हुए ये स्पंष्ट कर दिया की राज्य से बाहर या गैर पीआरसी धारक व्यक्ति से विवाह करने पर महिलाओं के किसी भी अधिकार को समाप्त या निरस्त नहीं किया जा सकता है।
 
पर बच्चों का क्या?

 
 
2002 के बाद महिलाओं की स्तिथि में बदलाव आया है पर अभी भी उनके अधिकार पुरुषों के सामान नहीं हैं । उदहारण के तौर पर सुनंदा पुष्कर को ही ले लीजिये । सुनंदा जम्मू कश्मीर से थीं, पर उन्होंने शादी राज्य से बाहर के व्यक्ति से की थी । बावजूद इसके की उनके पति शशि थरूर सांसद थे, केंद्र सरकार में मंत्री थे, फिर भी जम्मू कश्मीर में सुनंदा की जो पैतृक संपत्ति थी वो उस संपत्ति को अपने बेटे के नाम नहीं कर सकती थीं । इसका कारण फिर 35 A है I 2002 के केस के बाद जब की महिलाओं के पीआरसी से "विवाह तक वैध " लिखना भले ही बंद कर दिया हो, पर अभी भी उनके बच्चो को पीआरसी नहीं दिया जाता है । नतीजतन, इन् महिलाओं के बच्चे अपनी माँ की संपत्ति से वंचित रह जाते हैं । माँ का पीआरसी होने बाद भी ये जम्मू कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद और ना ही बेच सकते है, और ना ही चल अचल संपत्ति का वारिस बन सकते है। वो व्यापार शुरू नहीं कर सकते है, और राज्य सरकार में नौकरी भी नहीं कर सकते है, ना तो सरकार द्वारा संचालित शिक्षा संस्थान में पढ़ सकते है, ना ही किसी बैंक से लोन ले सकते है, न वो किसी प्रकार की स्कॉलरशिप प्राप्त कर सकते है, ना ही राज्य में चुनावों में वोट डाल सकते है और चुनाव लड़ भी नहीं सकते है, वो राज्य और केंद्र सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकते है । यहाँ तक की यदि वे केंद्रीय सुरक्षाबल में या भारतीय सेना में भर्ती होना चाहें तो वो भी नहीं कर सकते हैं । संक्षेप में कहें तो वो हर सुविधा और हर अधिकार से खुद को वंचित पाते है, जो एक आम नागरिक को हमारा संविधान प्रदान करता है।
 
आपको राज्य में ऐसे परिवार भी मिलेंगे जहाँ सास और बहू के पास पीआरसी है लेकिन ससुर और बेटे के पास पीआरसी नहीं । परिवार की दोनों महिलाओं के पास पीआरसी होने के बाद भी उनके बच्चों को पीआरसी नहीं मिलता । ऐसे ही एक परिवार में जब तीसरी पीढ़ी का बेटा इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने गया तो मेरिट में होने के बावजूद उसे खली हाथ लौटा दिया गया क्योंकि उसकी दादी और माँ तो पीआरसी वाले हैं पर उसके दादा और पिता के पास पीआरसी नहीं । अपने भविष्य के सपने ताक पर रख ये लड़का अब लॉ की पढ़ाई कर रहा है । पर ये पढ़ाई भी कुछ ख़ास काम नहीं आएगी क्योंकि पीआरसी न होते की वजह से उसे जम्मू कश्मीर बार एसोसिएशन की सदस्यता नहीं मिलेगी, यानी वो उच्च न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता है । एक तरह से उसकी वकालत का काम भी 35 A की बलि चढ़ गया।

राजनेताओं की कुटिल चाल :
 
2002 कोर्ट ने तो ये आदेश दे दिया की गैर पीआरसी वाले व्यक्ति से या राज्य ऐसे बाहर शादी करने से महिलाओं के पीआरसी को समाप्त नहीं किया जा सकता है । परन्तु असुरक्षित मानसिकता वाले राजनेताओं को ये महिला पपुरुष समानता की बात रास नहीं आयी । कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए 2004 में तत्कालीन पी डी पी सरकार एक नया बिल विधान सभा में लेकर आयी, यह था ""दडिसक्वॉलिफिकेशन बिल ", अर्थात अयोग्यता बिल , जिसका ध्येय था उन सभी महिलाओं को, जो राज्य से बाहर शादी करती हैं, उन्हें अयोग्य पीआरसी के लिए घोषित करना । इस बिल को नॅशनल कॉन्फ्रेंस का भी पूरा समर्थन प्राप्त था I इस बिल को दोनों पार्टियों ने मिलकर विधान सभा में तो पारित करवा लिया पर विधान परिषद् में ये बिल पास नहीं हो पाया।
 
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है की पीडीपी में मेहबूबा मुफ़्ती जैसी नेता हैं, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाईं । साथ ही अब्दुल्लाह पिता पुत्र शामिल थे, जिनमें दोनों ने राज्य से बाहर की महिलाओं से शादी की, और फारूख अब्दुल्लाह की बेटी ने भी राज्य से बाहर शादी की।
 
समस्या का हल:
 
एक ही देश में एक ही संविधान होते हुए इस तरह के कानून देश और समाज की सेहत के लिए हानिकारक हैं । महिलों को सशक्त बनाने के बजाय ये उनको निर्बल बनाते है । दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी असंवैधानिक कानून के तहत महिलाओं के अधिकारों का हनन करना उनके ऊपर अत्याचार है । हमारा संविधान सभी को सामान अधिकार के गारंटी देता है , ये हर स्त्री और पुरुष का मूलभूत अधिकार है , जिसकी रक्षा करना सभी का कर्त्तव्य है । जम्मू कश्मीर में महिलाओं को उनके सभी अधिकार और सामान अधिकार दिलाने के लिए 35 A को हटाना बहुत ज़रूरी है । ये ना सिर्फ महिलाओं का अधिकार है बल्कि एक सभ्य समाज के लिए आवश्यक भी है।