अब्दुल्ला परिवार के कोरे झूठ का पर्दाफ़ाश, जम्मू कश्मीर के अधिमिलन की शर्त नहीं थीं
   01-अप्रैल-2019

 
 
विकिपीडिया पर यदि आप उमर अब्दुलाह को खोजे तो आप पाएंगे वहां लिखा है " उमर अब्दुल्ला एक भारतीय कश्मीरी नेता और कश्मीर के 'प्रथम परिवार' के वंशज हैं" . यह वाक्य ठीक वैसे गलत है जैसे कि उमर अब्दुलाह की इतिहास के बारे में जानकारी। जम्मू कश्मीर से शेख अब्दुलाह की मनमानी अब खत्म हो चुकी है लेकिन उसके वंशजो को अभी तक यह समझ नहीं आ रहा है, इसीलिए कश्मीर के 'प्रथम परिवार' के वंशज हैं" । अपनी इसी नासमझी के चलते राजनितिक मंचो से भी उमर अब्दुलाह विकिपीडिया से उठाया हुआ ज्ञान लोगो को बाँट रहे है.
 
जम्मू जश्मीर राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के राजनितिक दल नॅशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुलाह ने विवादित बयान दिया है. उन्होंने चुनाव प्रचार करते हुए कश्मीर में कहा कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय शर्तो के आधार पर हुआ था और कश्मीर की अपनी एक अलग पहचान थी, उसका अपना एक अलग प्रधानमत्री और राष्ट्रपति था और एक दिन इन दोनों पदों को वे राज्य में वापसी लाएंगे।
 
जम्मू कश्मीर के किसी भी विषय पर बोलने से पहले उमर अब्दुलाह को जम्मू कश्मीर के ऐतिहासिक तथ्यों को ठीक से पढ़ना चाहिए क्योंकि उनके काम पढ़े लिखे होने की वजह से ही वो ऐसी गलत बयानी कर रहे है।
 
आइये जानते है उन तथ्यों के बारे में जो उमर अब्दुलाह को जरूर जानने चाहिए।
 
 
जम्मू कश्मीर का विलय भारत में ठीक वैसे हुआ जैसे अन्य रियासतों का।
 
“ मैं, श्रीमान् ...... महाराजाधिराज श्री हरी सिंह जी ........ जम्मू व कश्मीर का शासक ........ “रियासत पर अपनी संप्रभुता का निर्वाह करते हुए एतद्द्वारा अपने इस विलय के प्रपत्र का निष्पादन करता हूं ....”
यह वही प्रपत्र है जिस पर देश की सभी रियासतों के शासकों ने हस्ताक्षर किये थे। जम्मू कश्मीर के शासक महाराजा हरी सिंह ने भी इस प्रपत्र पर ही हस्ताक्षर किये थे।
 
इस विलय को स्वीकार करते हुए तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने लिखा “..... मैं एतद्द्वारा विलय के इस प्रपत्र को अक्तूबर के सत्ताईसवें दिन सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को स्वीकार करता हूं।“ यह भी वहीं भाषा है जिसे माउंटबेटन ने अन्य सभी रियासतों के विलय को स्वीकार करते हुए लिखा था। जब विलय का प्रपत्र और स्वीकृति, दोनों ही सभी रियासतों के समान थे तो विवाद का विषय ही कहां बचता है ?
 
जम्मू कश्मीर का भारत में विलय 1947 में हुआ था 1952 में नहीं।
 
जम्मू कश्मीर का भारत में विलय बिना किसी शर्त के था। आज उमर अब्दुलाह जिन शर्तो की बात कर रहे है, उनका विलय से कोई समबन्ध नहीं है। विलय 1947 में हुआ जिसमे महाराजा हरी सिंह का रोल था। शेख अब्दुलाह का सम्बन्ध विलय से दूर दूर तक नहीं था।
 
जिन शर्तो को वो स्पीच में गिनवा रहे थे वो 1952 में शेख अब्दुलाह और नेहरू के बीच की एक राजनितिक समझ थी जिसका कोई वैधानिक आधार नहीं है। यहाँ हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते है कि यदि इस राजनितिक समझ की अवहेलना किसी ने सबसे पहले की थी तो वो खुद उमर अब्दुलाह के दादा शेख अब्दुलाह थे.
 
जम्मू कश्मीर का भारत में विलय और उसकी वैधानिकता
 
17 जून 1947 को भारतीय स्वाधीनता अधिनियम-1947 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया। 18 जुलाई को इसे शाही स्वीकृति मिली जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा उसके एक भाग को काट कर नवगठित राज्य पाकिस्तान का उदय हुआ।
 
पाकिस्तान के अधीन पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत एवं सिंध का भाग आया। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहा शेष भू-भाग भारत के साथ रहा।
 
इस अधिनियम से ब्रिटिश भारत की रियासतें अंग्रेजी राज की परमोच्चता से तो मुक्त हो गईं, परन्तु उन्हें राष्ट्र का दर्जा नहीं मिला और उन्हें यह सुझाव दिया गया कि भारत या पाकिस्तान में जुड़ने में ही उनका हित है। इस अधिनियम के लागू होते ही रियासतों की सुरक्षा की अंग्रेजों की जिम्मेदारी भी स्वयमेव समाप्त हो गई।
 
भारत शासन अधिनियम 1935, जिसे भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 में शामिल किया गया, के अनुसार विलय के बारे में nनिर्णय का अधिकार राज्य के राजा को दिया गया। यह भी निश्चित किया गया कि कोई भी भारतीय रियासत उसी स्थिति में दो राष्ट्रों में से किसी एक में मिली मानी जायेगी, जब गवर्नर जनरल उस रियासत के शासन द्वारा निष्पादित विलय पत्र को स्वीकृति प्रदान करें।

भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 में सशर्त विलय के लिये कोई प्रावधान नहीं था।
 
 
 26 अक्तूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारत वर्ष में जम्मू-कश्मीर का विलय उसी वैधानिक विलय पत्र के आधार पर किया, जिसके आधार पर शेष सभी रजवाड़ों का भारत में विलय हुआ था तथा भारत के उस समय के गवर्नर जनरल माउण्टबेटन ने उस पर हस्ताक्षर किये थे.... ''मैं एतद्द्वारा इस विलय पत्र को स्वीकार करता हूं'' दिनांक सत्ताईस अक्तूबर उन्नीस सौ सैंतालीस (27 अक्तूबर-1947)
 
 
महाराजा हरिसिंह द्वारा हस्ताक्षरित जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र से संबंधित अनुच्छेद, जो कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को पूर्ण व अंतिम दर्शाते हैं, इस प्रकार हैं :-
 
अनुच्छेद -1) ''मैं एतद्द्वारा घोषणा करता हूं कि मैं भारतवर्ष में इस उद्देश्य से शामिल होता हूं कि भारत के गवर्नर जनरल, अधिराज्य का विधानमंडल, संघीय न्यायालय, तथा अधिराज्य के उद्देश्यों से स्थापित अन्य कोई भी अधिकरण (Authority), मेरे इस विलय पत्र के आधार पर किन्तु हमेशा इसमें विद्यमान अनुबंधों (Terms) के अनुसार, केवल अधिराज्य के प्रयोजनों से ही, कार्यों का निष्पादन (Execute) करेंगे।''
 
अनुच्छेद-9) ''मैं एतद्द्वारा यह घोषणा करता हूं कि मैं इस राज्य की ओर से इस विलय पत्र का क्रियान्वयन (Execute) करता हूं तथा इस पत्र में मेरे या इस राज्य के शासक के किसी भी उल्लेख में मेरे वारिसों व उतराधिकारियों का उल्लेख भी अभिप्रेत हैं।
 
विलय पत्र में अनुच्छेद-1 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर भारत का स्थायी भाग है।
 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है। भारत संघ कहने के पश्चात दी गई राज्यों की सूची में जम्मू-कश्मीर क्रमांक-15 का राज्य है।
 
 
 
 
महाराजा हरिसिंह ने अपने पत्र में कहा :-
 
''मेरे इस विलय पत्र की शर्तें भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के किसी भी संशोधन द्वारा परिवर्तित नहीं की जायेंगी, जब तक कि मैं इस संशोधन को इस विलय पत्र के पूरक (Instrument Supplementary) में स्वीकार नहीं करता।''
 
भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार शासक द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरान्त आपत्ति करने का अधिकार पंडित नेहरू, लार्ड माउण्टबेटन, मोहम्मद अली जिन्ना, इंग्लैंड की महारानी, इंग्लैंड की संसद तथा संबंधित राज्यों के निवासियों को भी नहीं था।
 
जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को राज्य के भारत में विलय को सत्यापित किया
 
1951 में राज्य संविधानसभा का निर्वाचन हुआ। संविधान सभा में विपक्षी दलों के सभी प्रत्याशियों के नामांकन निरस्त कर दिये गये। सभी 75 सदस्य शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के थे जिनमें से 73 कोई अन्य प्रत्याशी न होने के कारण निर्विरोध निर्वाचित मान लिये गये। मौलाना मसूदी इसके अध्यक्ष बने। इसी संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को राज्य के भारत में विलय की अभिपुष्टि की। 14 मई 1954 को भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 के अंतर्गत संविधान आदेश (जम्मू व कश्मीर पर लागू) जारी किया जिसमें राष्ट्र के संविधान को कुछ अपवादों और सुधारों के साथ जम्मू व कश्मीर राज्य पर लागू किया गया।
 
राज्य का अपना संविधान 26 जनवरी 1957 को लागू किया गया जिसके अनुसार :-
 
 
 धारा-3 : जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इसी संविधान की धारा-147 में यह   स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा- 3 कभी बदला नहीं जा सकता।
 
 
 
14 नवम्बर 1962 को संसद में पारित संकल्प एवं 22 फरवरी 1994 को संसद में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि जो क्षेत्र चीन द्वारा (1962 में) व पाकिस्तान द्वारा (1947 में) हस्तगत कर लिये गये, वह हम वापिस लेकर रहेंगे, और इन क्षेत्रों के बारे में कोई सरकार समझौता नहीं कर सकती।
 
इतने तथ्यों के बावजूद जो लोग भ्रम का वातावरण निर्माण कर रहे हैं अथवा अलगाववादी मांगों का समर्थन कर रहे हैं वे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सहभागी है। समय आ गया है कि केन्द्र व राज्य सरकार ऐसे तत्वों से कड़ाई से निपटे। साथ ही इन तथ्यों को देश की जनता तक स्पष्ट रूप से पहुंचाए जाने के गंभीर प्रयास हों ताकि इस विषय पर गत छः दशक से अधिक से छाया कुहासा छंट सके।