3 दशकों में इन राष्ट्रवादी नेताओं ने जान गंवाई, लेकिन किश्तवाड़, डोडा और भदरवाह में इस्लामिक आतंकियों के पैर नहीं जमने दिये
   11-अप्रैल-2019

 
 
9 अप्रैल 2019 को किश्तवाड़ में आरएसएस के जम्मू कश्मीर के प्रांत सह सेवा प्रमुख चंद्रकांत शर्मा और उनके सुरक्षाकर्मी राजेंद्र सिंह की आतंकवादियों ने हत्या कर दी । पिछले 6 महीनों में आतंकवादियों ने किश्तवाड़ में 2 बड़े राष्ट्र्वादी नेताओं की हत्या की है । लेकिन इसके पहले भी जम्मू डोडा के भदरवा, किश्तवाड़ में इस तरह की हत्याएँ आतंकवादियों ने की हैं।
 
जम्मू कश्मीर पिछले 30 साल से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का दंश झेल रहा है । आतंकवादियों जम्मू कश्मीर के एक बड़े हिस्से को अपने कब्ज़े में लेने बहुत कोशिश की । जिसमें उनको सफलता नहीं मिली और उन्होंने जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से, साउथ कश्मीर को अपना केंद्र बना लिया । 1989 के बाद आतंकवादियों ने कश्मीर से बाहर निकल कर जम्मू के डोडा, राजौरी, पूंछ, किश्तवाड़ में पैर पसारने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय स्तर पर जो जनता आतंकवाद के खिलाफ थी उसने आतंकवादियों और अलगाववादियों का डटकर मुकाबला किया और इसीलिये आतंकवादी वहाँ अपनी जड़ें नहीं जमा पाए । लेकिन गाहे-बगाहे आतंकवादी कश्मीर से आकर, जम्मू में जो लोग आतंकवाद की राह में रोड़ा बन रहे हैं उनको निशाना बनाते हैं । आतंकवाद को लगातार सबसे बड़ी टक्कर डोडा और किश्तवाड़ में दी गयी है । यानि आतंक फैलाने के लिए ना केवल कश्मीर बल्कि जम्मू मेंभी हिन्दुओं की चुन चुन कर हत्याएँ की गयीं, जैसे –

 
चंद्रकांत शर्मा - किश्तवाड़- 9 अप्रैल 2019
 
9 अप्रैल 2019 को दिन दहाड़े किश्तवाड़ के जिला अस्पताल मेंघुसकर आतंकवादियों ने मेडिकल असिस्टेंट और आरएसएस के प्रांतीयसह सेवा प्रमुख चंद्रकांत शर्मा पर अँधाधुंध गोलियाँ चलाईं, जिसमेंचंद्रकांत शर्मा की सुरक्षा में तैनात एक पीएसओ घटनास्थल पर ही मारा गया और चंद्रकांत शर्मा इलाज के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।
 
चन्द्रकांत जी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और जिला, विभाग कार्यवाह सहित विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए वर्तमान में प्रांत सह सेवा प्रमुख बन गए थे । चंद्रकांत जी ने आतंकवाद के दौर में भी वहाँ के हिन्दुओं को संगठित करने का काम किया । साथ ही वे सेना के सहयोग के लिए दिन रात तत्पर रहते थे। यही बात आतंकवादियों को रास नहीं आयी और उन्होंने चंद्रकांत शर्मा को निशाना बनाया । उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की गई थी और चंद्रकांत जी भी जानते थे कि वो आतंकियों के निशाने पर हैं, लेकिन वे विचलित हुए बिना निर्भीक होकर समाज सेवा का काम करते रहे । उन्हें पद, प्रतिष्ठा से कोई मोह नहीं था और दीन दुखियों की मदद और सेवा उनका जीवन था।
 

 
अजित और अनिल परिहार – किश्तवाड़- 2018
 
1 नवम्बर 2018 की रात पाक समर्थित आतंकवादियों ने बीजेपी(जम्मू कश्मीर) के सचिव अनिल परिहार और उनके भाई अजितपरिहार की हत्या कर दी । किश्तवाड़ की टप्पल गली में अपनी दुकानबंद कर जब वे अपने घर जा रहे थे तब पॉइंट ब्लैंक रेंज सेआतंकवादियों ने दोनों भाइयों कि निर्मम हत्या की । किश्तवाड़ मेंआतंकवाद का सामना और एक तरह से सफाया करने की कीमतपरिहार भाइयों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
 
90 के दशक में जब जम्मू में आतंकवाद कि घटनाएँ बढ़ने लगीं तब अनिल परिहार ने स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG ) और विलेज डिफेन्स समिति (VDC) की माँग की, जिसके फलस्वरूप किश्तवाड़ में आतंकवाद पर काबू पा लिया गया और जो लोग डर के मारे अपने गॉंव घर छोड़ कर चले गए थे वे धीरे धीरे वापस आने लगे । माछली माता के दर्शनों में बाधा पैदा करनेवाले आतंकवाद और देश विरोधी तत्वों का परिहार ने खुलकर विरोध किया ।
 
अनुच्छेद 35 A के विरोधमें धरना प्रदर्शन और बाज़ार बंद का भी अनिल परिहार ने आयोजन किया । इन घटनाओं के बाद से ही अनिल परिहार को जान की धमकियाँ दी जाने लगी थीं, पुलिस प्रशासन ने इसकी जानकारी होते हुए भी कोई ठोस कदम परिहार की सुरक्षा के लिए नहीं उठाए । यह आश्चर्यजनक है कि ख़ुफ़िया सूत्रों से यह पता चल गया था कि उस इलाके में कुछ आतंकवादी आ गए थे फिर भी परिहार कि सुरक्षा नहीं बढ़ाई गयी । आतंकवाद पर शिकंजा कसने वाली SOG को पिछली सरकार ने पहले ही समाप्त कर दिया था, अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों की सुरक्षा घटा दी गयी और सूचनाओं के बाद भी चौक और मुख्य सड़कों पर सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाए गए और ना ही पुलिस चौकियाँ बनायीं गयी। परि हाकी हत्या का सबसे बड़ा मकसद था लोगों को यह बताना की 20 साल की शांति के बाद आतंकवाद ने किश्तवाड़ में फिर एक बार दस्तक दी है।

 
डोडा नरसंहार – 2006
 
30 अप्रैल 2006 के दिन डोडा ज़िले के कुल्हंद में थावा गाँव में 10 -12 आतंकवादियों ने निहत्थे गाँववालों पर हमला कर दिया । रात के अँधेरे में आये आतंकवादी सेना की वर्दी पहने हुए थे, उन्होंने गाँव वालोंको उनके घरों से बाहर निकल कर एक कतार में खड़ा किया और गोलियों से भून डाला । 22 हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले दरिंदों ने 3 साल की मासूम बच्ची तक को नहीं छोड़ा।
 
इसी हमले के साथ उधमपुर ज़िले के बसंतगढ़ क्षेत्र में लालों गाँव में भी आतंकवादियों ने 13 हिन्दू चरवाहों का अपहरण किया और उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया । दोनों ही नरसंहारों के लिए पाकिस्तान समर्थित लश्कर ए तय्यबा ज़िम्मेदार था । माना जाता है कि इस नरसंहार का ध्येय था सरकार और हुर्रियत कॉफ्रेंस के बीच होने वाली वार्ता को रोकना।
 
 
 
किश्तवाड़ नरसंहार – 2001
 
2 अगस्त 2001 को जम्मू के डोडा ज़िले में किश्तवाड़ के लद्दर गाँव में लश्कर ए तैय्यबा के 10 आतंकवादी घुस गए । दिन दहाड़े हिन्दुओं के घरों से 20 पुरुषों को घसीट कर आतंकवादी पास के चट्टानी इलाके में ले गए और उनकी नृशंस हत्या कर दी । साथ ही कई अन्य लोगों को घायल भी कर दिया।
 
 रुचिर कुमार – डोडा- 1994
 
जम्मू कश्मीर के जम्मू में आतंकवादियों को अपनी जड़ें जमानी थीं और साथ ही वहाँ बसे हिन्दुओं को डरा कर भगाना भी था । इसके लिए उन्हें डोडा ज़िले का भदरवाह उपयुक्त लगा क्योंकि यहाँ के लोग राष्ट्रवादी थे और आतंकवादियों ने सोचा कि यदि इन राष्ट्रवादियों को उखाड़ फेंक दिया जाय तो बाकी जगहों से आतंक और अलगाववाद का ज़्यादा विरोध नहीं होगा । इसकी शुरुआत उन्होंने 15 अगस्त 1992 को मासूम लोगों पर ग्रेनेड से हमला और गोलियों की बौछार से की । धीरे धीरे इस तरह की घटनाएँ बढ़ने लगीं और लोगों में आतंक फैलने लगा । आतंकवादियों के बढ़ते दुस्साहस का सामना करने रुचिर कुमार कौल आगे आये । 4 जुलाई 1958 को जन्मे रुचिर कुमार बचपन से ही आरएसएस से जुड़े थे उन्होंने आम नागरिकों में इतनी हिम्मत पैदा करदी कि वे तलवार और कुल्हाड़ों से भी आतंकवादियों का सामने करने तैयार थे । आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं की ओर राज्य और केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए रुचिर कुमार ने एक जनआंदोलन शुरू किया जो 41 दिनों तक चलता रहा।
 
दुकानदार भी हड़ताल में शामिल हो गए और सरकारी कर्मचारी 28 दिनों तक काम पर नहीं गए । फलस्वरूप स्कूल, कॉलेज, बैंक, पोस्ट ऑफिस आदिलगातार बंद रहे । आतंकवादियों को पता चल गया कि उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेरने वाले रुचिर कुमार हैं और अब वे आतंकवादियों की हिट लिस्ट में आ गए । कई बार रुचिर कुमार की हत्या की कोशिश की गयी और अंत में 7 जून 1994 को जब रुचिर कुमार अपने घर के पास, खेत में काम कर रहे थे आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी । अपनेदेश को समर्पित रुचित कुमार वीरगति को प्राप्त हुए । आरएसएस के जिला कार्यवाहक बन चुके रूचि कुमार की जब हत्या की गयी तब वेबीजेपी के मंडल प्रधान थे । उनका जीवन हमेशा लोगों के लिए प्रेरणाका स्तोत्र रहेगा क्योंकि बिना किसी सहायता के उन्होंने आम लोगों कोआतंकवादियों का सामना करना सिखाया और डोडा ज़िले में आतंकवाद को पनपने नहीं दिया।जनता में इन हत्याओं को लेकर बहुत रोष है
 
अजित और अनिल परिहार की हत्या के बाद लोगों ने आक्रोश में तोड़ फोड़ की थी और चंद्रकांत शर्मा के अंतिम संस्कार के बाद भी लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और गुस्साई भीड़ ने एसपी के दफ्तर के बाहर तोड़ फोड़ की लोगों ने इन हत्याओं का ज़बरदस्त विरोध किया है जनता की इस प्रतिक्रिया से पता चलता है कि वे आतंकवाद के सामने पहले भी नहीं झुके और अब भी नहीं झुकेंगे