बड़ी उपलब्धि- 250 किमी लंबा दुर्गम लेह-काराकोरम रोड़ बनकर तैयार, अब 12 महीनों पहुंच सकेगी मिलिट्री रसद
   24-अप्रैल-2019
 
 
लद्दाख क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी इलाके को जोड़ने के लिए सामरिक रणनीति के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण रोड़ लेह-काराकोरम रोड़ बनकर तैयार हो चुकी है। जिसको एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रहा है। साल में बारहों महीने ये इलाका बाकी क्षेत्र के संपर्क में रहेगा। 255 किमी लंबे Darbuk-Shayok-Daulat Beg Oldie (DS-DBO) सेक्शन में 37 ब्रिज बनाये गये हैं। 20 अप्रैल को इस रोड़ पर पहली बार एक एक्पीडिशन मोटरसाइकिल काफिले ने लेह से सफर शुरू कर काराकोरम दर्रा पहुंचकर फिर लेह वापसी करते हुए अपना सफर पूरा किया। डार्बुक से ऊपर काराकोरम पहाड़ी श्रंखला के बीच ये रोड़ 14 हज़ार फीट की ऊंचाई का सफर तय करती है।
 
 
आखिरी 235 किमी के हिस्से में श्योक से काराकोरम पास के बीच कोई आबादी नहीं बसती। सिर्फ श्योक में करीब 25 परिवार रहते हैं। इससे आगे सिविलियन आबादी को रहने की इजाजत नहीं है।
 
 
इस रोड़ के बनने से चीन अधिक्रांत जम्मू कश्मीर यानि सीओजेके और भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत का कंट्रोल और बेहतर हो पायेगा। गौरतलब है कि इसी क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 2013 और 2014 में एलएसी के हद को लेकर आपस में तनातनी हो चुकी हैं। रोड़ बनने से पहले यहां इस एरिया में तैनात भारतीय सेना के लिए भारी रसद पहुंचाना मुमकिन नहीं हो पाता था। लेकिन अब ये इलाका बारहों महीने पहुंच में रहेगा। ऐसे में जाहिर है ये भारत की सामरिक शक्ति के लिए बड़ी उपबल्धि है।
 
 
 
 लेह-काकाकोरम एक्पीडिशन में हिस्सा लेने वाली टीम
 
यूपीए सरकार के दौरान फेल हुआ था रोड़-निर्माण का प्रयास
 
 
2000 से 2012 के दौरान यहां 320 करोड़ की लागत से DS-DBO section पर रोड़ तैयार किया गया था। जोकि खराब डिज़ाइनिंग के चलते श्योक नदी के बहाव में बह गया था। लेकिन इस बार 160 किमी लंबा हिस्सा दोबारा बेहतर डिजाइन के साथ तैयार किया गया और कामयाब रहा।
 
आजादी से पहले चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण ट्रेड रूट था ये मार्ग
 
 
इन दिनों ये रोड़ व्यावसायिक मामलों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता। लेकिन आजादी से दो दशक पहले तक ये रोड़ लद्दाख और चीन के काशगर प्रांत के बीच ट्रेड के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जिसको ज्यादातर पंजाबी मर्चेंट्स इस्तेमाल करते थे।