फिल्मों की रेटिंग का बाज़ार या देश के दुश्मनों के हाथों में एक औज़ार
   28-अप्रैल-2019
 
 
पूरे देश में अपनी कला के दम पर बॉलीवुड ने अपना एक स्थान बनाया है I बॉलीवुड की फिल्मों का अवलोकन कर उनकी समीक्षा करने वाले आलोचक और समीक्षक भी बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं I इन समीक्षकों के विचार, उनके अवलोकन और उनकी राय फिल्म का भविष्य तय करती हैं I सभी समाचार पत्र, ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल फिल्मों को अपनी रेटिंग्स देते हैं I दुर्भाग्यवश अब ऐसा चलन बन गया है कि जो फ़िल्में , सच्चाई से दूर, देश के विरुद्ध होती हैं, सेना के विरुद्ध होती हैं, देश के नेताओं को, भारत को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करती हैं, ऐसी फिल्मों का एक विशेष वर्ग या कैटेगरी बन गयी है और ऐसी फिल्मों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका हमारी मीडिया की रही है I बाकायदा ऐसी फिल्मों को बहुत अच्छे रिव्युस और रेटिंग्स दी जाती हैं, हर फिल्म महोत्सव में इन फिल्मों को प्रोमोट किया जाता है, इनको अवार्ड्स दिए जाते हैं I उदहारण के लिए ''हैदर'' जैसी फिल्म बनती है, जिसमें कश्मीर की बारे में सही जानकारी नहीं दिखाई गयी है / जो कश्मीर की सच्चाई नही है, पर एक प्रोपेगंडा को ध्यान में रख कर बनाई गयी है, जिसमें सेना की बुराई की गयी है उसको बहुत अच्छी रेटिंग मिलती है I ''नो फादर्स इन कश्मीर'' - जैसी फिल्म जिसमें देश की सेना को बिलकुल नकारात्मक छवि में दर्शाया है , उसकी रेटिंग बहुत अच्छी होती है I
 
 
 
कमाल की बात यह है, सेना और देश विरोधी फिल्मों को बढ़ावा दिया जाता है और देशभक्ति को बढ़ावा देने वाली, सेना के शौर्य और बलिदान को उजागर करती या देश की छवि को सकारात्मक दिखने वाली फिल्मों को बाकायदा बहुत बुरी रेटिंग्स और बुरी समीक्षा दी जाती है , ताकि जो लोग फिल्मो की समीक्षा पढ़ने के बाद फिल्म देखने जाते है वो देखने न जाए I
 
 

 
 
 
 
हाल ही में एक फिल्म आयी है ''ताशकंद फाइल्स'', जो हमारे राजनितिक इतिहास से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बनी है I इस फिल्म में दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र के प्रधानमंत्री, श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की विदेश में रहस्यमय परिस्तिथियों में हुई मौत पर प्रश्न उठाये हैंI यह ऐसी फिल्म है जो हमारे प्रधानमंत्री की मौत से जुड़े सच जनता के सामने लाती है, परन्तु ऐसी फिल्म को बहुत बुरी रेटिंग दी जाती है I कारण ?? कारण है एक वर्ग विशेष जिसे इस रहस्य से जुड़े सवाल विचलित करते हैं, वे प्रश्न जो यह फिल्म उठाती है जिनसे फिल्म जगत की एक लॉबी असहज हो जाती है, कारण कांग्रेस की राजनीति से जुड़े वे पहलू जो दर्शकों के सामने नहीं आने चाहिए I आज तक कांग्रेस की छत्रछाया में पनपी और समृद्ध हुई इस लॉबी को किसी ने ललकारा नहीं था, और इस लॉबी का और कांग्रेस का एजेंडा आसानी से चलता रहा I बॉलिवुड में इतनी मज़बूत पकड़ होने के बाद भी अब देश के हितों की बात करने वाले, सच बोलने और झूठ का पर्दाफाश करने की हिम्मत रखने वाले अपने सर उठाने लगे हैं I और ऐसे देशप्रेमियों से निपटने का उनको ख़त्म करने का सबसे आसान तरीका है उनके खिलाफ झूठा प्रोपगेंडा चलना I ऐसा ही कुछ पिछले कुछ समय से आ रही सकारात्मक फिल्मों के साथ किया गया I दूसरों को 'इन्टॉलरेंट' या असहिष्णु बोलने वाले खुद इतने ''इन्टॉलरेंट'' हैं की सकारात्मक फ़िल्में जैसे ही रिलीस होती हैं, वे उनकी इतनी बुरी रेटिंग देते हैं की दर्शक फ़िल्में देखने से कतराते हैं I
 
 
 
 
भला हो इंटरनेट का जहाँ कुछ ऐसे प्लेटफार्म बने हैं जो इन लॉबीज़ से परे स्वतंत्र हैं, वहाँ इन सकारात्मक फिल्मों के रेटिंग बड़े बड़े फिल्म समीक्षकों के बिलकुल विपरीत होती हैं I आइये आपको दिखाते है कैसे फिल्मो को लेकर कैसे तथाकथित समाचारपत्र कैसे फिल्मो की रेटिंग में घपला कर एक विशेष वर्ग को लाभ प्रदान करने का काम करते है. जम्मू कश्मीर नाव आपके समक्ष विभिन्न समाचार पत्र और IMDB ( एक स्वतंत्र मंच है, जिसमें लोग अपनी रेटिंग देते हैं), की रेटिंग प्रस्तुत कर रहे है . इन रेटिंग्स को देखकर आप आसानी से समझ सकते है रेटिंग के नाम पर कैसे आम जनता को भ्रमित किया जाता है
 
 
 
ताशकंद फाइल्स
 
 
 

 
 
आप इस फिल्म की रेटिंग देखिये, IMDB जो एक स्वतंत्र मंच है, जिसमें लोग अपनी रेटिंग देते हैं वहाँ ''ताशकंद फाइल्स'' को 8.6 /10 रेटिंग मिली है I
 
 
परन्तु देश के जाने माने न्यूज़ पोर्टल्स की राय जनता की राय से बिकुल विपरीत है I इनकी रेटिंग्स देखिये टाइम्स ऑफ़ इंडिया 2 .5 /5, एनडीटीवी 1 /5 , हिंदुस्तान टाइम्स 1 /5 . इंडियन एक्सप्रेस - कोई स्टार नहीं यानि 0 रेटिंग!!!!कभी सुना है आपने किसी फिल्म को ज़ीरो रेटिंग मिली हो??
 
 
जहाँ तक 'ताशकंद फाइल्स'' का सवाल है , इस फिल्म की रेटिंग्स बुरी होने का सबसे बड़ा कारण है फिल्म के दिग्दर्शक विवेक अग्निहोत्री , जो अपनी फिल्म 'बुद्धा इन ट्रैफिक जैम ' द्वारा अर्बन नक्सल्स की पोल खोल चुके हैं, जो इस लॉबी से डरे बिना, बेबाक अपनी बात हर मंच से बोलते हैं और देश की सकारात्मक छवि बनाना चाहते हैं I
 
 
उरी
 


 
इसी तरह कुछ और उदहारण देखें - देशभक्ति की मिसाल और सेना के शौर्य का परिचय देनेवाली ''उरी'' फिल्म की रेटिंग कुछ इस प्रकार थी- टाइम्स ऑफ़ इंडिया - 3 .5 /5 , एनडीटीवी 2 /5, इंडियन एक्सप्रेस 2 /5 , हिंदुस्तान टाइम्स 2 /5 , IMBD 8 .7 /10
हैदर
 
 
लेकिन झूठा प्रोपेगंडा चलनेवाली ''हैदर'' की रेटिंग्स देखिये - टाइम्स ऑफ़ इंडिया 4 /5 , एनडीटीवी 5 /5 , हिंदुस्तान टाइम्स 4 /5 , IMDB 8 .1 /10
 
 

'नो फादर्स इन कश्मीर'
 
 
 
सेना को बिलकुल खलनायक के रूप में दिखने वाली फिल्म 'नो फादर्स इन कश्मीर' की रेटिंग्स थी- टाइम्स ऑफ़ इंडिया 3 .5 /5 , एनडीटीवी 3 .5 /5, हिंदुस्तान टाइम्स 2 .5 /5, इंडियन एक्सप्रेस 2 .5 /5, IMDB 6 .8 /10
 
 
परमाणु
 
 
 
 
 
देश को न्यूक्लियर शक्ति बनाने की कहानी 'परमाणु ' की रेटिंग्स कुछ ऐसी थीं- टाइम्स ऑफ़ इंडिया
3 .5 /5 , एनडीटीवी 1 .5 /5 , हिन्दुस्तान टाइम्स 3 .5 , इंडियन एक्सप्रेस 1 .5 /5 , IMDB 7 .8
 
 
''एक पहेली लीला''
 
 
आइये इन फिल्म समीक्षकों की राय और जनता की राय कुछ और फिल्मों के बारे में जान लें - सनी लेओनी की फिल्म -''एक पहेली लीला'' को दी गयी रेटिंग्स देखें - टाइम्स ऑफ़ इंडिया 3 /5, एनडीटीवी 1 /5 , हिंदुस्तान टाइम्स 1 .5 /5, IMDB 3 .8
अब आप ही इन बुद्धिजीवी फिल्म समीक्षकों की बुद्धि और बैखौफ चल रहे अजेंडा का अंदाज़ा लगाइये, जिस फिल्म को जनता 10 में से 1 रेटिंग देती है उसे ये 5 में से 3 .5 या 2 .5 भी दे देते हैं , लेकिन जिन फिल्मों को जनता 10 में से 8 .6 रेटिंग देती है उसको सबसे अधिक रेटिंग मिलती है 5 में से 2 .5 और 5 में से शून्य !!!!
 
ये है हमारे फिल्म समीक्षकों की और आलोचकों की असलियत!!! ये मीडिया की माफिया हैं, इन्होने अपना साम्राज्य बना लिया है जिसमें किसी प्रकार का विरोध या बदलाव बेरहमी से कुचल दिया जाता है I खुले आम चल रहे इस पक्षपात को समाप्त करने का एक ही रास्ता है - इनकी रेटिंग और समीक्षा को अस्वीकृत कर, सकारात्मक फिल्मों को सफल बनाना I