आखिर राष्ट्रवादी चंद्रकांत शर्मा आतंकियों की आंख में क्यों खटक रहे थे, जानिए किश्तवाड़ के बलिदानी आरएसएस नेता के प्रेरक जीवन की कहानी...
   09-अप्रैल-2019
 
 
किश्तवाड़ में आतंकी हमले में गंभीर रूप से घायल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जम्मू कश्मीर के प्रांत सह सेवा प्रमुख चंद्रकांत शर्मा का निधन हो गया। किश्तवाड़ जिला अस्पताल में चिकित्सा सहायक के पद पर कार्यरत चंद्रकांत शर्मा पर मंगलवार को अस्पताल परिसर में ही आतंकियों ने घात लगाकर गोलियों से हमला कर दिया था। जिसमें वे 2 सुरक्षाकर्मी समेत गंभीर रूप से घायल हो गए। इनमें एक सुरक्षाकर्मी की मौके पर ही मौत हो गयी। चंद्रकांत जी को बचाने की कोशिश की गईं, लेकिन वो भी वीरगति को प्राप्त कर गए।
 
किश्तवाड़ में 6 महीनों में दूसरे राष्ट्रवादी नेता की हत्या के बाद एक बार फिर ये सवाल खड़ा होता है कि आखिर जनसेवा के लिए समर्पित चंद्रकांत जी से आतंकियों को क्या खतरा हो सकता था। जवाब सीधा सा है जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक मूल्यों रक्षा करना और बेखौफ राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करना ही आतंकियों को डराने के लिए काफी था।
 
चन्द्रकांत जी बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जुड़े थे. जिला, विभाग कार्यवाह सहित विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए वर्तमान में प्रांत सह सेवा प्रमुख थे. उन्होंने संघ का प्रथम, द्वितीय, तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूरा किया था। उनका परिवार प्रारंभ से ही धार्मिक गतिविधियों व समाज सेवा के कार्यों में सक्रिय था। उनके परिवार में पत्नी व दो बेटे हैं, बड़ा बेटा दसवीं तथा छोटा बेटा सातवीं कक्षा में पढ़ता है।
 
चंद्रकांत जी ने आतंकवाद के दौर में भी वहां के स्थानीय समाज का मनोबल बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने हिन्दुओं को संगठित करने का काम, सेना के साथ सहायता का कार्य बड़ी तन्मयता से किया। सेना के सहयोग के लिए दिन रात तत्पर रहते थे। जिस कारण आतंकियों के निशाने पर थे, उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की गई थी। चंद्रकांत जी भी जानते थे कि वो आतंकियों के निशाने पर हैं, लेकिन वो अपने पथ पर अग्रसर होने से एक इंच भी नही हिले।
 
वे युवाओं के प्रेरणास्रोत थे, लेकिन अपने लिए कठोर थे। पद, प्रतिष्ठा से अलिप्त रहते हुए भी वंचितों, शोषितों, असहायों के लिए वे निरंतर कार्य करते रहे. उन्होंने समाज को साथ लेकर किश्तवाड़ में मंदिर का निर्माण करवाया था और हर साल बैसाखी पर मेले का आयोजन करते थे। उनका अधिकांश समय संघ व समाज के कार्यों में ही लगता था। आतंकवाद के समय हिन्दू रक्षा समिति में भी सक्रिय रहे. डोडा विभाग में निरंतर प्रवास होता था तथा क्षेत्र में धार्मिक, सामाजिक संगठनों से अच्छा संपर्क-संबंध था।
 
हिन्दू समाज के मनोबल को कम करने के आतंकवादियों के मन्सूबे कभी पूरे नहीं होंगे। संघ ने एक निर्भीक, जुझारू और कर्व्यनिष्ठ स्वयंसेवक खो दिया है। उनके जाने से क्षेत्र व समाज को अपूरणीय क्षति हुई है।