ऐसा सगा नहीं, जिसे पाकिस्तान ने ठगा नहीं, जानिए पाकिस्तान का नामकरण करने वाले चौधरी रहमत अली के साथ पाकिस्तान ने क्या किया..!
   11-मई-2019
 
 
घाटी में कश्मीर बनेगा पाकिस्तान के नारे लगाने के पत्थरबाज़ों ने अगर पाकिस्तान का इतिहास ठीक से पढ़ा होता तो वो जान पाते कि पाकिस्तान तो उस “रहमत अली चौधरी “ का भी नहीं हुआ था, जिसने पाकिस्तान का नामकरण किया था। फिर भला वो कश्मीर के कैसे हो सकते हैं। पाकिस्तान की फितरत को करीब से समझने के उसके कईं किस्सों में से रहमत अली का किस्सा जानना बेहद जरूरी है।
 
 
 
रहमत अली चौधरी अविभाजित पंजाब के होशियापुर के रहने वाले थे। दोस्त मीर मोहम्मद खान मजारी, ''मज़ारी'' के मुखिया थे और रहमत अली चौधरी इनके निजी सचिव थे। रहमत अली ने दोस्त खान की एक केस में बहुत मदद की थी जिसके चलते दोस्त खान ने उन्हें ठीक ठाक फीस दी थी । इसी फीस के पैसे से वो कैम्ब्रिज पढ़ने गए । वो होशियार थे, 1930 -31 में राउंड टेबल कांफ्रेंस के दौरान रहमत अली ने भारतीय दल से सम्पर्क साधा और अपनी बात रखी । पूरा दल रहमत अली से प्रभावित हुआ ।
 
 
 
1933 में रहमत अली ने अपने तीन दोस्तों के साथ मिल कर एक पैम्फ्लेट निकाला “NOW OR NEVER” 'अभी नहीं तो कभी नहीं'। इसी पैम्फ्लेट में पहली बार पाकिस्तान शब्द का प्रयोग किया गया था । उस समय लोगों ने इस पैम्फ्लेट को लोगो ने बहुत संजीदगी से नहीं लिया । तथाकथित पाकिस्तान के जनक जिन्ना ने तो रहमत अली की अधीरता और काबिलियत को देखते हुए, उन्हें धीरज रखने का सुझाव देते हुए कहा था “ My dear boy , don’t be in a hurry , let the waters flow and they will find their own level. “
 
 
 
रहमत अली चौधरी की बेकदरी
 
 
 
लगभग दस साल के बाद पाकिस्तान बनाने की कवायद शुरू हुई और रहमत अली की कल्पना पूरी हुई । लेकिन कमाल अभी बाकी था और कमाल भी ऐसा जिसकी कल्पना खुद रहमत अली ने भी नहीं की थी । 1948 में रहमत अली इस उम्मीद में कि अपने सपने के देश में आकर रहेगा, पाकिस्तान आ गया । लेकिन वो गलत था। उसके सपने का देश जिसे उसने पाकिस्तान का नाम दिया था अब पूरी तरह से नापाक हाथों में था। लियाकत अली खान नहीं चाहता था कि रहमत अली पाकिस्तान में रहे । उसे वह अपने लिए खतरा मानता था। उसने अपनी एजेंसियाँ रहमत अली के पीछे लगा दीं। उसका जीना इस कदर मुहाल कर दिया कि उसका सामान तक छीन लिया गया । रहमत अली अप्रैल 1948 में पाकिस्तान आया था और लियाकत अली खान ने अक्टूबर 1948 में उसे पाकिस्तान से बाहर फेंक कर मारा था। अब सोचिये जिस व्यक्ति ने पाकिस्तान नाम सोचा उसे पाकिस्तान ने छह महीने तक भी पाकिस्तान में नहीं रहने दिया, बाकी लोगों का तो आप अंदाज़ा लगा ही सकते हैं। 3 फ़रवरी 1951 को जब रहमत अली की मौत हुई तब वह गरीबी के उस दौर में था कि उसके जनाजे तक के लिए पैसे नहीं थे।
 
 

 
 
कैंब्रिज सिमेटरी में रहमत अली की क्रब
 
 
 
उस समय इमानुएल कॉलेज, कैम्ब्रिज ने मृत रहमत अली के जनाजे का खर्चा उठाया था । अब आप सोचिये इस्लाम के नाम पर बना पाकिस्तान, एक मुसलमान और मुसलमान भी वो जिसने “ पाकिस्तान का पाकिस्तान नाम रखा “ उसका भी नहीं हुआ, वो बंगालियों , सिंधियो , पश्तूनों का क्या होगा। जब रहमत अली को पाकिस्तान से निकाला जा रहा था तो उसने पाकिस्तान के नेताओं बारे में कहा था कि उन्होंने पाकिस्तान के आन्दोलन को बेच दिया है । यह बात रहमत अली ने 1948 में समझ लिया था लेकिन कश्मीर में पाकिस्तान का नारा लगाने वाले लोग अभी भी अपनी कल्पना में उड़ान भर रहे है। लगता है जब मुँह के बल गिरेंगे तब ही झूठी कल्पना से बाहर आ पायेंगे।