Mother’s Day Special: जानिए जम्मू कश्मीर से जुड़े काले कानून की कहानी, जिसने हरेक मां से उसके सारे अधिकार छीन लिये हैं, आखिर कब तक चुप रहेंगे देश के बेटे!!
   12-मई-2019
 
 

दुनिया की हरेक मां अपने बच्चों को के लिए वो सब कुछ चाहती है जिससे उनका जीवन सुखी समृद्ध बने। यह न केवल हर माँ की भावना होती है, बल्कि उसका अधिकार भी है । लेकिन हमारे देश के एक राज्य में बाकायदा कानून बनाकर राज्य की हरेक मां को इन तमाम अधिकारों से वंचित रखा गया है, ये काला कानून है आर्टिकल 35A । सोचिये क्या बीतती होगी उस माँ के दिल पर, जब सब कुछ होते हुए भी वह अपने बच्चे के लिए कुछ भी नहीं कर पाती !!
 
 
हम बात कर रहे हैं हमारे देश के जम्मू कश्मीर राज्य की और अनुच्छेद 35 A की। क्या आप जानते हैं, कि क्यों एक माँ को इस अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, क्योंकि वह महिला अपनी पसंद के, एक ऐसे व्यक्ति से विवाह करती है जो जम्मू कश्मीर का निवासी नहीं है! 21 वीं सदी में ऐसे दकियानूसी कानून के बारे में सुन कर अटपटा लग रहा है ना!! पर यही जम्मू कश्मीर की सच्चाई है। आज ‘’मदर्स डे’’ या ''मातृ दिवस'' के उपलक्ष्य में आइये आपको इस काले क़ानून के बारे में बतायें, जो एक माँ से उसका अधिकार छीन कर, उसे और उसके बच्चों को बेबस बनता है। हालाँकि, हमारा मानना है कि एक माँ के प्यार, त्याग और महानता को आप 365 में से एक दिन मना कर छुट्टी नहीं कर सकते, हमारे लिए हर दिन मदर्स डे है , पर साल में कोई एक दिन किसी व्यक्ति या रिश्ते को समर्पित करने का चलन बन गया है, सो हमने सोचा कि इस मदर्स डे के दिन और कुछ नहीं तो कम से कम हम एक लेख जम्मू कश्मीर की उन माताओं को समर्पित करें जिनसे माँ की ममता और अधिकार छीन लिए जाते हैं।
 
 
 
भारत के संविधान निर्माताओं ने कभी सोचा भी नहीं होगा की जिस संविधान की रचना वे कर रहे हैं उसका दुरूपयोग भारत के एक राज्य की महिलाओं के विरुद्ध इस प्रकार किया जायेगा कि वे अपने ही देश में दोयम दर्ज़े का जीवन जीने को विवश हो जाएँ । उनका यह दुःख तब और बढ़ जाता होगा जब वो देखते होंगे की यह सब भारतीय संसद को ताक पर रख कर किया गया। 1950 में भारतीय संविधान बना। संविधान बनने के चार साल बाद बिना संसद की मंज़ूरी के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया गया, जिसे अनुच्छेद 35 A कहा गया। यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर में लिंग भेद का सबसे भद्दा उदाहरण है ।
 
 
 
 
जम्मू कश्मीर की महिलाएँ अब अनुच्छेद 35 A के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं
 
 

पिछले 60 वर्षो से अनुच्छेद 35 A की आड़ में चले आ रहे भेदभाव के विरुद्द अब राज्य की महिलाएँ निकल कर सामने आ रही हैं। जम्मू कश्मीर की दलित लड़की राधिका गिल जो शानदार एथलीट होने के बाद भी राज्य में नौकरी नहीं पा सकी, उसने अनुच्छेद 35 A को सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगायी है। दूसरी ओर जम्मू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेणू नंदा ने भी जम्मू कश्मीर उच्च न्यायलय में महिला विरोधी अनुच्छेद 35 A को चुनौती दी है। रेणू नंदा का केस आज “ मातृ दिवस” पर और भी प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि रेणू नंदा एक माँ के रूप में अपनी दो बेटों के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं जिन के अधिकारों पर इस अनुच्छेद ने कुठाराघात किया है ।
 
 
 
 
 
यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू में डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन में प्रोफेसर पद पर तैनात रेणू नंदा एक ऐसी ही मां हैं। जिनके तमाम अधिकार इसी काले कानून आर्टिकल 35A छीन लिये। रेणू नंदा ने इसको लेकर जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें रेणू नंदा ने 35A के चलते अपने 2 बच्चों के लिए पीआरसी न दिये जाने को मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है। रेणू नंदा ने हाईकोर्ट से 2 बच्चों केशव कुमार और माधव कुमार के परमानेंट रेज़िडेंट सर्टीफिकेट की मांग की है। दरअसल रेणू नंदा खुद एक पीआरसी होल्डर हैं, जिन्होंने नॉन रेजिडेंट सब्जेक्ट से शादी की थी। लेकिन तलाक के बाद नाबालिग होने के चलते दोनों बच्चों की कानूनी कस्टडी रेणू नंदा को मिली है, जोकि रेणू नंदा के साथ रहते हैं। लेकिन आर्टिकल 35A के चलते वो पीआरसी की योग्यता नहीं रखते हैं।
 
 
रेणू नंदा की याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने याचिका में कहा है कि आर्टिकल 35A भारतीय संविधान के आर्टिकल 14, 16 और 21 द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। याचिकाकर्ता भी इसी की पीड़िता हैं, लिहाजा एक पीआरसी होल्डर होने के नाते उसके बच्चे भी पीआरसी पाने का अधिकार रखते हैं। लिहाज़ा इसको सुनिश्चित किया जाय़े।
 
 
 
 
 
कैसे है अनुच्छेद 35 A महिला विरोधी?
 
 
जम्मू कश्मीर में आज यदि कोई पुरुष राज्य से बाहर, बल्कि देश से भी बाहर विवाह कर ले तो उसकी पत्नी और होने वाली सन्तान को जम्मू कश्मीर में जमीन खरीदने से लेकर, शिक्षा और वोट डालने जैसे सभी अधिकार प्राप्त होंगे। दूसरी ओर यदि जम्मू कश्मीर की महिला ( हिन्दू या मुसलमान ) यदि राज्य से बाहर विवाह करती है या राज्य में ही रहने वाले, लेकिन बिना पीआरसी अर्थात स्थानीय निवास प्रमाणपत्र वाले व्यक्ति से विवाह करती हैं , तो उसके पति और होने वाली संतानों को राज्य में किसी भी प्रकार के अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है । ऐसी महिला के बच्चे न तो जम्मू कश्मीर में पढ़ाई कर सकते हैं, ना ही राज्य विधान सभा और स्थानीय निकाय के चुनावों में वोट डाल सकते हैं और राज्य में उन्हें कोई सरकारी नौकरी भी नहीं मिल सकती है। हद तो यह है की यदि महिला अपनी संपत्ति अपने बच्चो के नाम करना चाहती है तो उसमे भी अनुच्छेद 35 A बाधक है।
 
 
 
 
 
अनुच्छेद 35 A कैसे भारतीय संविधान का भी मजाक उड़ाता है
 
 
यह तो सर्वविदित है की यह अनुच्छेद भारतीय संविधान में चोरी छुपे जोड़ा गया था। संविधान के विषय में थोड़ा बहुत ज्ञान रखने वाला व्यक्ति यह जनता है की यदि संविधान में कोई भी अनुच्छेद जोड़ा या हटाया जाता है उसकी प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में लिखित है और इस प्रक्रिया के अनुसार केवल भारतीय संसद यानि पार्लियामेंट ही भारतीय संविधान में सशोधन कर सकती है। लेकिन 14 मई 1954 को भारतीय संविधान में यह अनुच्छेद चोरी छुपे मात्र राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ दिया गया।
 
 
35 A एक अकेला अनुच्छेद संविधान के कई दूसरे अनुच्छेदों के विपरीत है और महिलाओं और उनकी संतानों के अधिकारों का हनन करता है , जैसे-
 

अनुच्छेद 14 -विधि के समक्ष समता

अनुच्छेद 15 -धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध

अनुच्छेद 16 -लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

अनुच्छेद 19छ-किसी भी तरह की आजीविका के चयन करने की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 21 -प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण

अनुच्छेद 39- सभी नागरिकों को अपने जीविकोपार्जन हेतु समुचित व्यवस्था करने का अधिकार

अनुच्छेद 300 A -संपत्ति सम्बंधित अधिकार

अनुच्छेद 326- मतदान का अधिकार

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951
 
 
 
महिलाओ के अधिकार और नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की बेशर्मी-
 
 
 
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 35 A के नाम पर हो रहे इस अन्याय में जम्मू कश्मीर के सरकारों की पित्रसत्तात्मक सोच भी बराबर की जिम्मेदार है। 2002 से पहले तो इस अनुच्छेद का दुष्परिणाम यह था कि जम्मू कश्मीर की महिला राज्य के बाहर विवाह करने से राज्य में दिए गए सभी अधिकारों से वंचित हो जाती थी। 2002 में राज्य उच्च नयायालय के एक फैसले से महिलाएँ अनुच्छेद 35 A के प्रकोप से प्रत्यक्ष रूप से से तो बच गयीं, लेकिन जम्मू के शासको को यह बात नागवार गुज़री। पीडीपी की तत्कालीन सरकार राज्य विधानमंडल में मार्च 2004 में एक बिल लेकर आयी, जिसके अनुसार यदि राज्य की महिला राज्य से बाहर शादी करेगी तो वह राज्य के अधिकारों से वंचित हो जायेगी, इस बिल को “Jammu Kashmir Permanent Resident (Disqualification) 2004“ यानि ''जम्मू कश्मीर स्थानीय निवासी (अयोग्यता) 2004 " के नाम से जाना गया। यह बिल जम्मू कश्मीर विधान सभा में तो पास हो गया लेकिन जम्मू कश्मीर विधान परिषद् में यह बिल पास नहीं हो सका। इस बात से नेशनल कांफ्रेंस का अब्दुल्ला परिवार इस कदर नाराज़ हुआ की उन्होंने विधान परिषद् के चेयरमैन अब्दुल रशीद डार को, जो नॅशनल कान्फेंस के एमएलए भी थे, पार्टी से निष्काषित कर दिया था। यह बिल तब से लेकर आज तक पेंडिंग पड़ा है। जम्मू कश्मीर के सम्बन्ध में महिला अधिकारों की चिंता और अधिक बढ़ जाती है जब राज्य के मुख्यमंत्री स्तर के लोग भी महिलाओ के अधिकार मजाक में लेते है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहे फारूख अब्दुल्ला से जब अनुछेद 35 A और महिला अधिकारों की बात की गयी तो वह लाइव डिबेट छोड़ कर भाग गए। राज्य की पूर्व मुख्मंत्री महबूबा से जब इस अनुच्छेद से महिलाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने बहुत ही बचकाना उत्तर देते हुए कहा की 'यदि यदि महिला शादी कर बाहर जा रही है और उसके अधिकार समाप्त हो रहे है तो दूसरी ओर जो महिला राज्य में आ रही है उसको हम अधिकार दे भी तो रहे है, इस तरह से अधिकारों की क्षतिपूर्ति हो रही है ।'
 
 
 
 
 
एक महिला जो एक माँ भी है, जनता की प्रतिनिधि भी है, जब वह ऐसे उत्तर देती है तो पता चलता है कि जम्मू कश्मीर के नेताओं की मानसिकता महिलाओं के प्रति कितनी असंवेदनशील है। अब जब राज्य की कुछ महिलाओं ने इस पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान मानसिकता के विरुद्ध आमने सामने की लड़ाई कोर्ट में छेड़ दी है I इस मातृ दिवस के अवसर पर हम इस मातृ शक्ति को नमन करते हुए यही कामना करते हैं कि समानता की इस लड़ाई में मातृ शक्ति विजयी हो।