महादेव की सनातन भूमि जम्मू कश्मीर में आइये दर्शन करिये... सुद्धमहादेव तीर्थ के, जिसकी महत्ता द्वादश ज्योतिर्लिंग के समान है
   13-मई-2019
 
 
जम्मू कश्मीर सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा है । आपको जम्मू कश्मीर में घूमने पर इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं । राज्य के सबसे छोटे हिस्से, कश्मीर में श्री अमरनाथ स्वामी जी की गुफा , दूसरे सबसे बड़े हिस्से में माता वैष्णो देवी की गुफा , शिवखोड़ी , पुढमंडल और सांसे बड़े हिस्से लद्दाख में गुरुद्वारा पठार साहिब आदि महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है, ऐसा ही एक तीर्थ स्थल है “ सुद्धमहादेव”।
 
सुद्धमहादेव” जम्मू से ११० किमी उत्तर दिशा की और पर्वतों के बीच स्थित है । यहाँ पर जम्मू कश्मीर से ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष से शिव भक्त यहाँ आते हैं । यहाँ मानतलाई , गौरीकुंड ,गौकर्ण, पापशानी बावली , नाडा, बूढी सुद्धि , हरिद्वार और वैनीसंगम जैसे स्थान भी दर्शनीय हैं।
 
सुद्धमहादेव” - सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक प्रासंगिकता
 
सुद्धमहादेव” में शूल पानिश्वर महादेव का मंदिर लगभग 1700 वर्ष पुराना है । मंदिर में शिव-पार्वती की छोटी सी मूर्ति है, जो काले पत्थर से बनी है । यहीं पर छोटा सा शिवलिंग भी है । यह शिवलिंग मंदिर से भी पुराना है । इसकी महत्ता द्वादश ज्योतिर्लिंगों के सामान ही समझी जाती है । प्राचीन समय में यहाँ घना जंगल होता था । मंदिर से कुछ दूरी पर एक बड़ा झरना बहता था । यहाँ पर सुद्धांत नामक दैत्य रहता था जो शिव भक्त था । वह प्रतिदिन यहाँ से से जल लेजाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाता था । माता पार्वती भी गौरीकुंड से प्रतिदिन जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ती थीं । एक दिन दैत्य ने यह जानने की कोशिश की की यह युवा कन्या कौंन है, जो प्रतिदिन यहाँ पर आती है । एक दिन दैत्य अचानक से माता पार्वती के सामने खड़ा हो गया । माता पार्वती ने डरकर भगवान् शिव का स्मरण किया । भगवान् शनकर ने त्रिशूल से दैत्य पर प्रहार किया ।
 
सुद्धमहादेव” में शूल पानिश्वर महादेव का मंदिर लगभग 1700 वर्ष पुराना है I मंदिर में शिव-पार्वती की छोटी सी मूर्ति है, जो काले पत्थर से बनी है I यहीं पर छोटा सा शिवलिंग भी है I यह शिवलिंग मंदिर से भी पुराना है I इसकी महत्ता द्वादश ज्योतिर्लिंगों के सामान ही समझी जाती है I प्राचीन समय में यहाँ घना जंगल होता था I मंदिर से कुछ दूरी पर एक बड़ा झरना बहता था I यहाँ पर सुद्धांत नामक दैत्य रहता था जो शिव भक्त था I वह प्रतिदिन यहाँ से से जल लेजाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाता था I माता पार्वती भी गौरीकुंड से प्रतिदिन जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ती थीं I एक दिन दैत्य ने यह जानने की कोशिश की की यह युवा कन्या कौंन है, जो प्रतिदिन यहाँ पर आती है I एक दिन दैत्य अचानक से माता पार्वती के सामने खड़ा हो गया I माता पार्वती ने डरकर भगवान् शिव का स्मरण किया I भगवान् शनकर ने त्रिशूल से दैत्य पर प्रहार किया I दैत्य भी शिव भक्त था तो उसने ॐ नमः शिवाय का उच्चारण किया Iभगवान् शिव को भी इस से ज्ञात हुआ की दैत्य भी शिव भक्त है और भगवान् ने उस से कहा कि तू मेरा भक्त है लेकिन तेरी मति भ्रम के कारण तुझे दंड दिया गया है, लेकिन यदि तू जीवित रहना चाहता है तो ऐसा हो सकता है I तब दैत्य ने उत्तर दिया आपके दर्शन होना और आपके हाथों से मृत्यु होना इसे मैं अपने तप का फल मानता हूँ I मेरी और जीने की इच्छा नहीं है, किन्तु मैं आपसे एक वर माँगता हूँ कि आपके नाम के साथ मेरा नाम भी जुड़ जाए I भगवान् शिव ने तथास्तु कहा और महादेव के साथ सुद्धांत दैत्य का नाम जुड़ गया, जिस से इस स्थान का नाम ''सुद्धमहादेव” पड़ा और शंकर जी “ शुक्ल पानिश्वर “ के नाम से यहाँ स्थिर हो गए I शूल पानिश्वर का अर्थ जिस ईश्वर के हाथ में त्रिशूल है I इस त्रिशूल के दो भाग हैं, एक त्रिशूल और दूसरा टूटा हुआ हिस्सा I त्रिशूल पर ब्राह्मी लिपि में लेख है किन्तु यह ठीक से पढ़ा नहीं जा सका है I इतना पढ़ा गया है कि यह इसवी सन की तीसरी सदी का लेख है I
 
शंकर पार्वती की मूर्ति के बारे में भी एक कहानी है, लगभग एक किमी दूर गाँव में एक किसान हल चला रहा था I एक जगह उसका हल फँस गया I हल ऊपर खींचने पर किसान ने देखा कि हल पर खून लगा था, जिस से सब किसान परेशान हो गए I उस जगह को खोदा गया तो नीचे से यह मूर्ती निकली I इस मूर्ती के पीछे हल के फाल का निशान लगा हुआ है I मंदिर के ठीक सामने गुरु गोरखनाथ का जी का मंदिर है I गुरु गोरखनाथ शंकर के अनन्य भक्त हुए है, साथ ही भैरव जी का मंदिर भी है I