ऐसा कोई न सगा जिसे पाकिस्तान ने न ठगा – भाग -2
   14-मई-2019
इस्कंदर मिर्ज़ा – पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिसके जनाज़े में सिर्फ तीन पाकिस्तानी थे
 
 
 
पाकिस्तान एक असफल प्रयोग था। आज से नहीं जब से आस्तित्व में आया तब से। जिन लोगों ने पाकिस्तान का सपना देखा सबसे पहले उन्ही को पाकिस्तान से बाहर किया गया । जिन्ना तो पाकिस्तान बनने के बाद यह दुनिया छोड़ गया था, लेकिन उसकी बहन फातिमा जिन्ना की भी रहस्यम परिस्थितियों में मौत हो गयी । कुछ लोग कह्ते है उसकी हत्या हुई थी, उसकी चर्चा फिर कभी। आज हम आपको बताएँगे एक ऐसे नाम के बारे में जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पद तक पहुँचा, लेकिन जब इसकी मौत हुई तो पाकिस्तान के हुक्मरानों ने उसकी लाश को पाकिस्तान में लाने तक से मन कर दिया । पाकिस्तान के प्यार में पागल यह व्यक्ति था – “ इस्कंदर मिर्ज़ा “,जिसे पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान रूपी अजगर ने मिर्ज़ा को ही निगल लिया।
 
इस्कंदर मिर्ज़ा मीर ज़ाफ़र का प्रपौत्र था, वही मीर ज़ाफ़र जिसने प्लासी के युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दिया था। इस्कंदर मिर्ज़ा पाकिस्तान बनने के बाद पहले रक्षा सचिव बने। जिस समय पाकिस्तान ने भारत के जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला किया उसके आरोपियों में या षड्यंत्रकारियो में मिर्ज़ा का भी नाम था। 1956 में पाकिस्तान का संविधान बदलने के बाद उन्हें पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। बतौर राष्ट्रपति उनका कार्यकाल अत्यंत राजनैतिक अस्थिरता से भरा रहा। उस समय दो साल में चार प्रधानमंत्री बदले गए और अंत में खुद मिर्ज़ा ने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू कर दिया। पाकिस्तान के राजनितिक इतिहास में सेना की भूमिका के बारे में अक्सर एक बात कही जाती है, “ यदि कोई व्यक्ति पाकिस्तान का राजनैतिक इतिहास लिखना चाहता है तो उसे लगेगा कि वो पाकिस्तान का सैन्य इतिहास लिख रहा है और यदि कोई पाकिस्तानी सेना का इतिहास लिखेगा तो उसे लगेगा कि वह पाकिस्तान का राजनैतिक इतिहास लिख रहा है “। इस्कंदर मिर्ज़ा ने पाकिस्तानी सेना के हाथों पाकिस्तान को तो सौंपा लेकिन उसका पहला शिकार वो खुद बने। जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू होने के बीस दिन के भीतर मिर्ज़ा को राष्ट्रपति के पद से हटा दिया और देश से निष्काषित कर दिया।
 
जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान से निकाला तो याहया खान ने आने से किया मना
 
पाकिस्तान में सेना के विद्रोह के बाद मिर्ज़ा अपनी पत्नी के साथ क्वेटा होते हुए लन्दन चले गए। उनको इस हद तक बेईज्ज़त किया गया कि वे अपने साथ केवल अपना व्यक्तिगत सामन ही ले जा सके। यहाँ तक की मिर्ज़ा को अपनी यात्रा का किराया तक खुद चुकाना पड़ा। मिर्ज़ा को अपने और अपनी पत्नी के पासपोर्ट के लिए 10-10 रूपए देने पड़े। मिर्ज़ा देश छोड़ते समय इसने मजबूर थे कि एअरपोर्ट पर पोर्टर तक को देने के लिए भी पैसे नहीं थे।
 

 
 
लन्दन में मिर्ज़ा प्रिंस गेट, साउथ किंग्स्टन में एक छोटे से फ़्लैट में रहे । मिर्ज़ा जनरल अयूब खान के खिलाफ खुलकर बोल भी नहीं सके। अँग्रेज़ अधिकारियों ने उनको सलाह दी कि यदि वह अयूब खान के खिलाफ कुछ करेंगे तो उनकी दूसरी पत्नी रिफ्फत बेग़म और उसके बेटे को पाकिस्तान में समस्या हो सकती है। यह समस्या अयूब खान के जाने के बाद भी बनी रही। याहया खान के आने के बाद मिर्ज़ा ने पाकिस्तान जाने की सोची और चिठ्ठी लिखी लेकिन याहया खान के आफिसर की एक चिट्ठी मिर्ज़ा को मिली जिसमे साफ़- शब्दों में लिखा था “ आपने पाकिस्तान आने की जो अप्पलिकेशन लगायी है वह अस्वीकार की जाती है “।
 
पाकिस्तान में भारत के साथ युद्धों का कैसे राजनितिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है इस बात को ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो और मिर्ज़ा के बीच हुई बात से आप समझ सकते हैं। 1965 के युद्ध में हार के बाद जब भुट्टो लन्दन आया हुआ था तो मिर्ज़ा की उस से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में मिर्ज़ा ने भुट्टो से पुछा “ ज़ुल्फ़िकार तुम भारत की ताकत जाने हो पाकिस्तान भारत को कभी नहीं हरा सकता , तुमने भारत से लडाई की शुरुआत क्यों की?” इस पर भुट्टो ने कहा की “ मैं क्या करता अयूब खान को कमजोर करने और हटाने के लिए यह ज़रूरी था। “
 
निर्वासित जीवन में झेली बेईज्ज़ती
 
लन्दन में मिर्ज़ा ने बहुत गरीबी में जीवन बिताया। इरान के तत्कालीन अम्बेसडर और भविष्य में विदेश मंत्री रहे आर्देशेर ज़ाहिदी ने इस मुफ़लिसी के दौर में मिर्ज़ा की मदद की। एक बार मिर्ज़ा जब इलाज के लिए अस्पताल में थे , ज़ाहिदी उन्हें देखने के लिए अस्पताल पहुँचे। वहाँ ज़ाहिदी ने दरवाजे पर खड़े होकर मिर्ज़ा और उनकी बीवी की बातचीत सुनी, जिसमे मिर्ज़ा अपनी बीवी से बोल रहे थे “ हम अब इलज का और खर्चा नहीं उठा सकते मुझे मर जाने दो।“ यह सुनकर ज़ाहिदी को बहुत बुरा लगा और वो दरवाजे से ही वापस लौट गया। अपने 70वें जन्म दिन ( 13 नवम्बर 1969) पर नींद में ही मिर्ज़ा की मौत हो गयी।
 
मौत के बाद भी ज़िल्लत
 
पाकिस्तान का सपना सँजोये बैठे इस्कंदर मिर्ज़ा को जो ज़िल्लत जीते जी झेलनी पड़ी उस से ज्यादा मौत के बाद भी झेली। पाकिस्तान ने अपने पूर्व राष्ट्रपति का शव लेने से मन कर दिया। मिर्ज़ा का अंतिम संस्कार इरान में किया गया। मिर्ज़ा के परिवार के सदस्य उसकी अंतिम यात्रा में भाग लेना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान के याहया खान शासन ने परिवार को कराची हवाई अड्डे पर रोके रखा और उन्हें छोड़ने में योजनाबद्ध तरीके से इतनी देर की गयी की परिवार के सदस्य मिर्ज़ा के अंतिम संस्कार में नहीं पहुँच पाए। इरान के विदेश मंत्री ने पूरे प्रयास किये लेकिन पाकिस्तान की कुटिल चालों के कारण परिवार मिर्ज़ा को आखिरी बार देख भी नहीं पाया।
 
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति की अंतिम यात्रा और क्रिया कर्म के समय कुल तीन पाकिस्तानी मौजूद थे। एक मिर्ज़ा का बेटा हुमायूँ , इरान में पाकिस्तान के अम्बेसडर और मिर्ज़ा के दोस्त शाहनवाज़ और उसकी पत्नी मलिहा। पाकिस्तान के द्वारा अपने पूर्व राष्ट्रपति की यह दुर्गति किये जाने के कारण पूरे विश्व की नज़रों में पाकिस्तान बुरी तरह से गिर गया। हालाँकि इसका पाकिस्तान के शासकों पर ज़्यादा असर नहीं था, क्योंकि जो अपनों की नज़र में गिरने से आहात नहीं थे उन्हें दुनिया की क्या चिंता। तभी किसी ने पाकिस्तान के बारे में सही कहा कि “ऐसा कोई न सगा जिसे पाकिस्तान ने न ठगा"