आज ही के दिन 2002 में पाकिस्तानी आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में सेना के जवानों सहित 31 नागरिकों की हत्या कर दी थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान को सबक सिखाया

 
कारगिल युद्ध के 17 महीनों के अन्दर ही भारत और पाकिस्तान फिर से आमने-सामने थे। यह गंभीर और नाजुक हालात संसद पर आतंकी हमलें ने पैदा कर दिए थे। इस बीच 14 मई, 2002 को जम्मू-कश्मीर के कालूचक में पाकिस्तानी आतंकियों ने 31 लोगों की हत्या कर दी। उस दौरान विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह अपनी किताब ‘ए कॉल टू ऑनर - इन सर्विस ऑफ़ इमर्जेंट इंडिया’ में लिखते हैं, “कालूचक घटना एक आखिरी तिनके की तरह थी जिसने भारत और पाकिस्तान को युद्ध के एकदम नजदीक ला दिया था।”
 
लोकसभा में गृह मंत्री, लाल कृष्ण आडवानी ने बताया कि इस घटना के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। उस दिन हिमाचल परिवहन की एक बस पठानकोट - जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपने गंतव्य की ओर जा रही थी। जैसे ही वह विजयनगर पहुंची, उसमें तीन आतंकी सवार हो गए। कालूचक पुल के नजदीक आते ही उन्होंने बस के अन्दर गोलीबारी शुरू कर दी। कुछ देर बाद, आतंकी बस से निकलकर ग्रेनेड फेंकने लगे। इस अंधाधुन गोलीबारी के बाद वे सभी कालूचक के आर्मी कैंप में घुस गए और वहां भी गोलियां एवं ग्रेनेड दागने लगे। मुश्किल से इस आधा घंटे में सेना के जवानों और उनके परिवारजनों सहित 31 लोगों की हत्या और 47 लोग घायल हो गए। मृतकों में 2 महीनें की एक बच्ची भी शामिल थी।
 
हालाँकि तीनों आतंकियों को उसी दिन ही मार दिया गया था। उनके शवों से बरामद सामान से पता चला कि वे पाकिस्तान के फैसलाबाद और गुजरांवाला के रहने वाले थे। कालूचक के बाद पिछले दिनों की उरी और पुलवामा घटनाओं में एक बड़ी समानता थी। इन सभी हमलों से भारतीय नागरिकों में रोष था। वही पाकिस्तान से बदला लेने की मांग जोर पकड़ने लगी थी। उन दिनों अखबारों की सुर्खियाँ इस प्रकार थी, ‘आज केंद्र संसद में करेगा आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी योजाना का खुलासा।’ लोकसभा में 17 मई को मदनलाल खुराना ने सुझाव दिया कि पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों के जो प्रशिक्षण शिविर है, उनपर सीधे हमला करना चाहिए।

 
 
 
स्थितियां इस कदर बन गयी थी कि खुद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जम्मू-कश्मीर का दौरा करना पड़ा। अपनी तीन दिन की यात्रा में पहले वे कालूचक के घायलों से अस्पताल में मिलने गए। उन्होंने कुपवाड़ा में सेना को जवानों को संबोधित भी किया। आखिरी दिन मीडिया के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, “हमारे पडोसी द्वारा फेंकी गयी चुनौती को भारत ने स्वीकार कर लिया हैं और दुश्मन के खिलाफ हम अपनी निर्णयात्मक जीत की तैयारी कर रहे है।”
 
प्रधानमंत्री वाजपेयी के संकेत का मतलब साफ़ था। अगर पाकिस्तान अपने यहाँ आतंकियों पर कोई कार्यवाही नहीं करता है तो भारत के लिए विकल्प खुले हुए थे। एक कोशिश यह भी चल रही थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित चौथे युद्ध को न होने दिया जाए। दोनों देश परमाणु संपन्न थे, इसलिए अंतरराष्ट्रीय दवाब बनाया जाने लगा था। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लयेर और जापान के प्रधानमंत्री जूनीचीरो कोईजूमी लगातार दोनों देशों के संपर्क में थे।
 
भारत की तरफ से युद्ध से बचाव के सभी उपायों पर विचार किया जा रहा था। दूसरी तरफ पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ लगातार उकसा रहे थे। युद्ध के बादलों के बीच पाकिस्तान ने अपनी तीन मिसाइलों - गौरी, गजनवी और अब्दाली का परिक्षण कर दिया। पाकिस्तानी सेना लगातार घुसपैठ और गोलीबारी कर रही थी। अब तक सीमा पर स्थित लूंडा पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना ने कब्ज़ा कर लिया था। माछिल सेक्टर की लूंडा पोस्ट सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यहाँ से पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर के केल सेक्टर पर नज़र रखी जाती है। भारत में अधिकतर आतंकी घुसपैठ इसी केल सेक्टर की तरफ से होती रही है।
 
अब तत्कालीन भारत सरकार के आगे दो सवाल खड़े हो गए थे। पहला कालूचक नरसंहार के दोषी पाकिस्तान को सबक सिखाना था। दूसरा अपनी पोस्ट को पाकिस्तान के कब्जे से वापस लेना था। तभी प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 23 जून को वाशिंगटन पोस्ट को एक साक्षात्कार दिया। उन्होंने खुलासा किया कि पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में 50 से 70 आतंकी कैंप मौजूद है। संवाददाता ने जब उनसे पूछा कि क्या भारत और पाकिस्तान युद्ध के नजदीक हैं, तो प्रधानमंत्री ने इसे ‘टच एंड गो अफेयर’ बताया।
 
 
 
यह इशारा भारत की पहली एयर स्ट्राइक की ओर था। इसकी जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना को दी गयी थी। एक ठोस योजना बनाने के बाद 31 जुलाई को अम्बाला एयर फ़ोर्स स्टेशन से फ्लाइट लेफ्टिनेंट की एक टीम को श्रीनगर भेजा गया। इस दौरान ग्वालियर और जालंधर के एयर फ़ोर्स स्टेशन पर मिराज 2000, जगुआर और मिग-21 की तैनाती कर दी गयी। इस एयर स्ट्राइक की तैयारी बेहद सावधानी से की जा रही थी। फिर भी सुरक्षा के लिए भारत की पश्चिमी सीमा पर सभी एयर फ़ोर्स स्टेशन को सतर्क रहने के लिए कहा गया। इसका एक कारण किन्ही असामान्य स्थिति में अगर पाकिस्तान कुछ प्रतिक्रिया करता है तो उसका तुरंत जवाब देना था।
 
इस कार्यवाही में भारतीय सीमा सुरक्षा के जवानों को पहले सीमा के पास लक्ष्य को स्पष्ट करने (target identify) के लिए भेजा गया। इस काम को सफलता से करने के बाद वे अपनी पोस्ट पर वापस लौट आये। अब बारी भारतीय वायुसेना की थी, लेकिन मौसम साथ नहीं दे रहा था। इसलिए दिल्ली में अधिकारियों की तरफ से ‘ग्रीन सिग्नल’ मिलने के बाद भी दो बार सेना को पीछे हटना पड़ा। आखिरकार 2 अगस्त, 2002 की दोपहर में एक साथ कई मिराज 2000 ने केल सेक्टर के ऊपर से उड़ान भरी।
भारतीय वायुसेना के विमान पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में अन्दर तक गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस एयर स्ट्राइक में पाकिस्तान को बहुत नुकसान हुआ था। भारी बमबारी के बाद लूंडा पोस्ट को वापस ले लिए गया था। हालाँकि पाकिस्तान की तरफ से आजतक इसका कोई प्रतिकार नहीं किया गया। इस सन्दर्भ में जानकारियां बेहद सीमित हैं, क्योंकि इस स्ट्राइक पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था।