गिरिजा टिक्कू – एक कश्मीरी टीचर जिसे आतंकियों ने जीवित ही आरे से काट दिया था
   16-मई-2019
 अवार्ड वापसी गैंग इसके खिलाफ कभी नहीं बोला न अवार्ड वापिस किये 
 


 (प्रतीकात्मक चित्र)
 
14 फ़रवरी 2019 का दिन भारत के इतिहास का एक काला अध्याय के रूप में रहेगा . इस दिन पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने एक आत्मघाती हमला कर सीआरपीऍफ़ की एक पूरी बस उड़ा दी,हमले में 50 से ज्यादा जवान वीरगति को प्राप्त हुये. पूरे देश में हल्ला मचा . बड़े -2 लेख लिखे गए .भारत सरकार पर दबाव बना कि पाक्सितान को सबक सिखाया जाए और परिणाम बालाकोट एयर स्ट्राइक .
 
जो लोग जम्मू कश्मीर को जानते और समझते है वो इस बात को जरुर समझेंगे की जम्मू कश्मीर में यह आतंक पिछले ३० वर्षो से जारी है . इस पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद की वजह से कश्मीर घाटी से हिन्दुओ को पलायन करना पड़ा . पलायन से पहले और बाद में आतंकियों ने बर्बरता का जो दौर शुरू किया वो अभी तक जारी है . ऐसी सैंकड़ो कहानिया है जिन्हें सुनकर आपक के रौंगटे खड़े हो जायेंगे .
 
ऐसी ही एक कहानी है – गिरिजा कुमारी टिक्कू की. गिरिजा उस समय बारामूला जिले के गाव अरिगाम ( वर्तमान में बांदीपोरा जिले में स्थित ) की रहने वाली थी . वह एक स्कूल में लैब सहायिका का काम करती थी . 11.6.1990 के दिन वह स्कूल में अपनी सैलरी लेने गयी . सैलरी लेने के बाद उसी गाँव में अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर उसे मिलने चली गयी. आतंकी उस पर नज़र रखे हुए थे . गिरिजा को उसी घर से अपहृत कर लिया गया . गाँव में रहने वाले लोगो की आँखों के सामने यह अपहरण हुआ किसी ने आतंकियों को रोकने का साहस नहीं किया
 
 

गिरिजा के साथ बर्बरता
 
आतंकियों ने गिरिजा के अपरहण के बाद उसे से सामूहिक बलात्कार किया . उसे तरह-२ की यातनाये दी . इतने से आतंकियों का मन नहीं भरा तो उन्होंने गिरिजा को बिजली से चलने वाले आरे पर रख कर बीच से काट दिया . आतंकियों का सन्देश साफ़ था की जम्मू कश्मीर में केवल “ निज़ाम –ऐ- मुस्तफा “ को मानने वाले लोग ही रह सकते है और गिरिजा टिक्कू जैसी एक सामान्य सी अध्यापिका को भी वो निजाम –ऐ- मुस्तफा” के लिए खतरा मानते थे . गिरिजा टिक्कू अपने पीछे 60 साल की बूढी माँ , 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की बेटी छोड़ गयी. जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में हुए इस हादसे पर वहां के स्थानीय लोग चुप रहे आज आतंक का वाही दावानल कश्मीर में खुद मुसलमानों के लिए समस्या बन चुका है . इस पाकिस्तानी आतंकवाद के चलते हजारो काश कश्मीरी मारे जा चुके है . आतंकवादी जवान लोगों को ही नहीं बल्कि बूढ़े , बच्चो और महिलाओं तक को अपना निशाना बना रहे है .

देश के साथ बौद्धिक बेईमानी
 
आज पत्थरबाजो के खिलाफ पैलेट गन चलाने का विरोध करने वाले , बात -2 पर जम्मू कह्स्मिर पुलिस और भारतीय सेना को कोसने वाले का या अवार्ड वापसी करने वाले किसी व्यक्ति ने इस बरबरियत का विरोध नहीं किया . बल्कि आज यही लोग कश्मीर घाटी के 4-5 जिलो में व्याप्त आतंकवाद को सही साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाते है और आतंकियों को मात्र “ भटके हुए नौजवान” कह कर अपना पल्ला झाड लेते है .जब ये लोग कश्मीर में मानवाधिकारों पर कुछ लिखते या बोलते है और उसमे कही पर भी गिरिजा टिक्कू या ऐसे ही बलिदान हुए सैकड़ो कश्मीरी हिन्दुओ का कही कोई जिक्र नहीं होता . ये ऐसे लोग थे जो देश के संविधान के समर्थक थे और इसी संविधान की रक्षा करते हुए काल का शिकार हुए . लेकिन देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसे बौद्धिक बेईमानो या यू कहिये देश के संविधान का विरोधी वर्ग पैदा हुआ है जो संविधान को न मानने वाले गिलानी , यासीन मालिक शब्बीर शाह या बुरहान वानी के पक्ष की बात करते है, जिस से संविधान विरोधी इन अलगाववादियों और आतंकियों के हौंसले और बुलंद होते रहे और परिणाम आप के सामने है . गिरिजा टिककू जैसी हत्याओं से यह सिलसिला आत्मघाती हमलो टक पहुँच गया है . यदि समय रहते हमने हमने सही कार्यवाही की होती तो आज पुलवामा हमले जैसे हमले नहीं होते. इसलिए आज जरुरत है जम्मू कश्मीर और शेष भारत में संविधान विरोधी तत्वों को बेपर्दा करना ही महान आत्मा “ गिरिजा टिक्कू “ को सच्चा सम्मान होगा .