19 मई, 1990, 27 साल के दिलीप कुमार को इस्लामिक आतंकियों ने 12 गोलियां मारी, फिर पेड़ पर लटकाकर छाती में चेतावनी पत्र ठोंककर लिखा, ‘हिम्मत है, तो लाश उतारो और एक लाख पाओ’
   19-मई-2019
 
 
मई, 1990 में कश्मीर घाटी में हिंदूओं को इस्लामिक आतंकी चुन-चुन कर निशाना बनाना शुरू कर चुके थे। कई जानी-मानी हिंदू हस्तियों की हत्या कर दी गयी थी। इस्लामिक आतंकी हिंदूओं को घाटी छोड़ने की धमकी दे रहे थे। शोपियां जिले के मुजामार्ग गांव में 27 साल का दिलीप कुमार अपने 3 छोटे भाईयों और मां के साथ रहता था। पिता की मृत्यू हो चुकी थी। घर की देखभाल का पूरा दारोमदार दिलीप के कंधों पर था। दिलीप बेरोजगार था, लेकिन पुश्तैनी जमीन के सहारे घर चल रहा था। दिलीप को भी घाटी छोड़ने की धमकियां दी गयीं, लेकिन दिलीप ने धमकियों को अनसुना कर दिया।
 
 
 
19 मई 1990 के दिन कुछ इस्लामिक आतंकियों ने घर पर धावा बोल दिया। दरवाज़ा पीटते हुए आतंकियों ने दिलीप को बाहर निकलने को कहा। डरी-सहमी मां ने गुहार लगायी कि दिलीप घर पर नहीं है, लेकिन आतंकी दरवाज़ा तोड़ घर में घुस आये और दिलीप को खींचकर बाहर निकाल लिया। बूढ़ी मां और छोटे भाईयों ने दिलीप को बचाने की कोशिश की, लेकिन आतंकियों ने बूढी मां को भी नहीं बख्शा और उसके साथ भी हाथापाई की। आतंकी दिलीप को बाहर खींचकर ले गये, छोटा भाई दौड़ता हुआ पुलिस स्टेशन पहुंचा और भाई को बचाने की गुहार लगायी। लेकिन यहां भी उसके कोई सहायता न मिली।
 
 
 
आतंकियों ने दिलीप को बड़ी बेरहमी से पीटा, उसका जबड़ा तोड़ दिया गया। फिर आतंकियों ने दिलीप के शरीर में कम से कम 12 गोलियां दागीं। दिलीप मारा जा चुका था, लेकिन आतंकियों की मन तब भी नहीं भरा। वो इलाके के हिंदूओं में दहशत पैदा करना चाहते थे। आतंकियों ने दिलीप की लाश को एक पेड़ पर टांग दिया और एक पेपर पर चेतावनी लिखकर उसको छाटी में ठोंक दिया। जिसपर लिखा था- “अगर किसी में हिम्मत हो तो लाश को उतार ले औऱ एक लाख रूपये ईनाम ले जाये।“ डर और खौफ के मारे किसी ने दिलीप की लाश को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं दिखायी। आखिरकार पुलिस ने दिलीप की लाश को पेड़ से उतारा औऱ उसका अंतिम संस्कार किया। आतंकियों की इस वहशियाना हरकत का नतीज़ा इलाके में बेहद खौफनाक रहा, हिंदूओं ने तेज़ी से घाटी छोड़ना ही बेहतर समझा।