“द लल्लन टॉप” दर्शकों को टॉप का लल्लू न समझें तो अच्छा है! फैक्ट चेक या फर्जीवाड़ा: जम्मू कश्मीर पर कुछ बोलने से पहले रिसर्च करें तो बेहतर होगा
   03-मई-2019
 
 
2019 लोकसभा चुनाव का समय चल रहा है I विभिन्न राजनितिक दल अपने झूठे-सच्चे वायदों से मतदाताओ को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं I आये दिन वाट्सएप्प पर, फेसबुक पर कई ऐसी खबरें पोस्ट की जा रही हैं, जिनका सच से कोई लेना देना नहीं होता I ज़ाहिर है ऐसी खबरें पढ़नेवालों के मन एवं मस्तिष्क में नाहक ही संशय पैदा करती है I ऐसे में अलग-अलग न्यूज़ चैनल्स या वेब पोर्टल्स ने एक मुहीम शुरू की है कि इन्टरनेट पर फैलाए जा रहे दावों या खबरों में कितनी सच्चाई है ,उसकी जाँच की जाये I कोई इस प्रयास को वायरल टेस्ट का नाम देता है तो कोई पड़ताल या फैक्ट चेक I
 
 
सच की जाँच करनेवाला ऐसा ही एक एपिसोड 'आज तक' समूह के वेब पोर्टल “द लल्लन टॉप“ के यू टयूब पर 1 मई को अपलोड किया गया है I ( वीडियो लिंक)
 
 
 
 
 
इस एपिसोड में नवोदित पत्रकार इन्टरनेट पर चल रही खबर कि “मोदी को एक वोट आपको जम्मू कश्मीर में प्लाट दिलवा देगा”, की सच्चाई खोजने का दावा करता है I अपने इस प्रयास में वो इस खबर को झूठा बतलाते हैं I इस खबर के सच और झूठ का दावा हमारा नहीं है किन्तु लगभग ६ मिनट के इस वीडियो में “द लल्लन टॉप’ इस खबर को झूठा बताते-बताते बहुत सारी ग़लत जानकारी अपने देखने वालों को दे जाता है I हमारा ‘ द लल्लन टॉप’ से किसी भी प्रकार का वैचारिक मतभेद नहीं है I किन्तु जम्मू कश्मीर के बारे में पिछले 70 सालों से एक कैम्पेन बनाकर व्यवस्थित ढंग से झूठ बोला गया है, जिसका शिकार अक्सर हमारे देश के लेखक या पत्रकार भी हो जाते हैं I दुखद बात यह है कि ये ऐसी ग़लतियाँ है जो जम्मू कश्मीर में एक तरह से अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं , जबकि यदि थोड़े से प्रयास से भारतीय संविधान या ऐतिहासिक तथ्यों को बिना किसी रंग चढ़े चश्मे से पढ़ा जाए तो इन तथ्यात्मक गलतियों से बचा जा सकता है I
 
आइये हम पड़ताल करते है जम्मू कश्मीर से सम्बंधित विषय की “ द लल्लन टॉप “ ने कैसी पड़ताल की और कैसे फैक्ट चेक के बहाने फेक फैक्ट्स परोस डाले।
 
 
द लल्लन टॉप स्क्रिप्ट – एंकर सच साबित करने के लिए कहता है कि ''अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को स्पेशल दर्जा देता है I"
 
 
 
 
तथ्य – अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को किसी भी प्रकार का ''विशेष दर्जा'' या ''स्पेशल स्टेटस'' नहीं देता है I यह ''जम्मू कश्मीर नाऊ'' नहीं कहता बल्कि यह स्वयं भारतीय संविधान कहता है I भारतीय संविधान के निर्माताओं ने बहुत सोच समझ कर हमारे संविधान की रचना की थी I इसमें प्रत्येक शब्द का अपना एक अर्थ है I उन्होंने संविधान को अलग-अलग भागो में बाँटा I संविधान के कुल 22 ( बाईस ) पार्ट्स या भाग है , 12 शेड्यूल या अनुसूचियाँ हैं है और उसके बाद अंत में अपेंडिक्स या परिशिष्ट जोड़े गए है I एक पार्ट में अनेक आर्टिकल्स या अनुच्छेद रखे गए I हर पार्ट का अपना एक शीर्षक है और वह शीर्षक यह स्पष्ट करता है उस पार्ट में कौन - कौन से आर्टिकल या अनुच्छेद हैं I इसके बाद उस पार्ट में हर आर्टिकल का अपना एक और शीर्षक होता है जिसे “मार्जिनल नोट” कहा जाता है I मार्जिनल नोट यह स्पष्ट करता है की वह आर्टिकल क्या है I
 
 

 
 
 
आइये अब इस आधार पर अनुच्छेद 370 का स्थान और शीर्षक समझते हैं और क्या है स्पेशल स्टेटस का घोटाला -
 
 
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के पार्ट 21 में लिखित है I इस पार्ट का शीर्षक है “ अस्थायी , संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध “ अंग्रेजी में जिसे ''Temporary , Transitory , and Special Provisions'' लिखा एवं पढ़ा जाता है I इस पार्ट में कुल 36 आर्टिकल हैं I इनमे से कुछ आर्टिकल अब संविधान का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन जो आर्टिकल बचे हैं वे या तो ''अस्थायी'' हैं या ''संक्रमणकालीन'' या ''विशेष''I अब कोई आर्टिकल इन तीनो में से क्या है यह जानने के लिए है मार्जिनल नोट अर्थात हर आर्टिकल के शीर्षक को देखना होगा I इस आधार पर यदि आप अनुच्छेद 370 देखें तो आप को साफ़-साफ़ अनुच्छेद 370 का शीर्षक लिखा दिखाई देगा – “ जम्मू कश्मीर से सम्बंधित अस्थायी उपबंध“ या "Temporary Provisions'" यहाँ पर या इस आर्टिकल के अन्दर ''विशेष दर्जे'' या ''स्पेशल स्टेटस'' का कोई जिक्र नहीं है I आज तक तथाकथित लेखक या पत्रकार केवल पार्ट नम्बर 21 के शीर्षक को पढ़कर ही अनुच्छेद 370 को विशेष दर्जा बताते आये है जो पूरी तरह से गलत है I
 
 
 
स्पेशल दर्जे की झूठी कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, आपको यह जानकार अचम्भा होगा कि ''विशेष'' शब्द भारतीय संविधान में 1963 में जोड़ा गया है I यदि ''विशेष'' शब्द आया ही 1963 में है, तो ये अनुच्छेद 370 के साथ ''विशेष दर्ज़ा'' नामक घोटाला कब और कैसे जुड़ गया, जिस से जम्मू कश्मीर सहित पूरे देश का मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग अनजाना रहा I देखिए-
 
 

 
 
 
 
 
 
 
द लल्लन टॉप स्क्रिप्ट – “जम्मू कश्मीर में ज़मीन के अधिकार से जुडा कानून 1846 में अमृतसर ट्रीटी के समय आया”
 
 
 
 
तथ्य – जिस प्रकार आर्टिकल 370 वाले विषय में ''द लल्लन टॉप'' की टीम ने लीगल पॉइंट के बारे में अनजाने में ही सही, पर झूठी जानकारी दी, वहीं अमृतसर से जुड़ी बात में तो एतिहासिक तथ्यों को ही हवा में उड़ा दिया I जम्मू कश्मीर राज्य की जमीन केवल राज्य के निवासी ही खरीद सकते है यह कानून “ स्टेट सब्जेक्ट रूल “ के तहत लागू किया गया था, जो सन 1927 में राज्य में आया I यानी अमृतसर ट्रीटी ( 1846) से लगभग 80 वर्षो के बाद. अमृतसर ट्रीटी हुई महाराजा गुलाब सिंह के समय में जबकि स्टेट सजेक्ट रूल आया महाराजा हरी सिंह के समय में. सच्चाई यह है कि अमृतसर ट्रीटी और जम्मू कश्मीर में ज़मीन खरीदने के अधिकार का कोई सम्बन्ध नहीं है . “ द लल्लन टॉप “ पोर्टल इस विषय पर लोगो को गलत जानकारी परोस रहा है।
 
 
 
 
दरअसल आज़ादी से पहले बहुत बड़ी संख्या में अंग्रेज लोग जम्मू कश्मीर की सुन्दर वादियों और अनुकूल मौसम के चलते वहाँ ज़मीन खरीदना चाहते थे I साथ ही साथ अंग्रेज सरकार राज्य में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में अंग्रेज अफसरों को वहाँ लाना चाहती थी I इसलिए इन दोनों संकटों से बचने के लिए राज्य में ''स्टेट सब्जेक्ट रूल'' लाया गया, ताकि विदेशी ताकतों को राज्य से बाहर रखा जा सके I 1950 में भारतीय संविधान बनने के बाद यह कानून खत्म हो गया था I 1954 में आर्टिकल 370 का दुरूपयोग कर और भारतीय संसद को अँधेरे में रखकर भारतीय संविधान में एक नया आर्टिकल 35 A जोड़ दिया गया I इस आर्टिकल के बारे में आज लगभग पूरा देश जानता है I
 
 
आर्टिकल 35 A के चलते शेष भारत के लोग वहाँ जमीन खरीद सकते हैं या नहीं, यह बहस अलग है I इस अनुच्छेद की सबसे भयानक सच्चाई यह है कि इस अनुच्छेद का शिकार जम्मू कश्मीर में रहने वाले लोग ही हैं, जिनमें राज्य की महिलाएँ, दलितों का एक वर्ग, 1947 में पाकिस्तान से उजड़ कर आये और तब से जम्मू कश्मीर में रह रहे वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थी, जिसमे 80 प्रतिशत ओबीसी हैं और लगभग 10 प्रतिशत दलित और जम्मू कश्मीर में सदियों से रह रहे गोरखा समुदाय के लोग हैं I ''द लल्लन टॉप'' ने सही कहा कि ज़मीन से जुड़े विषय राज्य सूची में आते है, लेकिन राज्य सूची में आने का यह अर्थ नहीं की ऐसा कोई भी कानून या नियम बनाया जा सकता है जो राज्य की महिलाओं, वंचितों या पिछड़े वर्ग के मानवाधिकार और मूलभूत अधिकारों का ही हनन कर दे I
 
 
इतना ही नहीं ''द लल्लन टॉप'' ने एक जगह कहा कि अमृतसर ट्रीटी / समझौते के तहत कश्मीर को डोगरों ने ख़रीदा I यह वाक्य पाकिस्तान द्वारा यूनाइटेड नेशंस में दिए गये अधिकारिक बयान का हिस्सा है, जिसमे अमृतसर ट्रीटी को ही नकार दिया गया और इस ट्रीटी को ''सेल डीड'' घोषित कर दिया गया I इतना ही नहीं पिछले 70 सालों में इस खरीद वाली बात का दुरुपयोग जम्मू कश्मीर राज्य के सबसे छोटे हिस्से, कश्मीर के लोगो को बरगलाने और भड़काने में किया गया, जिसका परिणाम आज हम आतंकवाद और अलगाववाद के रूप में देख रहे हैं I इस बात का अध्ययन या रिसर्च करने के लिए आपको पीएचडी करने की जरुरत नहीं है कि अमृतसर ट्रीटी जैसी राजनितिक संधि और किसी ''सेल डीड'' या कॉन्ट्रैक्ट में अंतर होता है I 1947 से पूर्व ऐसे अनगिनत उदहारण हैं जहाँ पर ऐसी संधियों से एक राज्य के क्षेत्र के लोग किसी अन्य राजा या शासक के अधीन गए है I इस तरह से इतिहास के अधपके ज्ञान के आधार पर स्क्रिप्ट का निर्माण न केवल दर्शको को दिग्भ्रमित करता है बल्कि जाने अनजाने में एक अलगाववादी अजेंडे का शिकार होता है I हम और आप जानते है इन्टरनेट पर बहुत से लोग गैर जिम्मेदाराना तरीके से जूठ फैलाते है , उनका अपना एक एजेंडा हो सकता है या जानकारी का अभाव हो सकता है, “ द लल्लन टॉप “ जैसा पोर्टल यदि ऐसे तथ्यों से खिलवाड़ करता है तो यह ठीक नहीं है।