कश्मीरी अलगाववादियों के नाम एक कश्मीरी स्टूडेंट का ओपन लेटर
   06-मई-2019
 
 
 
 (अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित)
 
 
जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से की अनंतनाग लोकसभा सीट के लोकसभा चुनाव का अवलोकन यदि निष्पक्ष रूप से किया जाए तो कश्मीर में फैले आतंकवाद और उसकी जड़ें आप आसानी से समझ सकते है। यह देश की एकमात्र लोक सभा सीट है जहाँ तीन चरणों में चुनाव होना तय हुआ था। आज इस लोक सभा सीट के तीसरे और अंतिम चरण की वोटिंग होने जा रही है। इस वोटिंग से पहले गिलानी ने चुनाव के विरोध में बंद का एलान किया है I अनंतनाग के वेरीनाग में गुल मोह्हमद मीर नाम के कश्मीरी की पाकिस्तानी आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी , लेकिन इस राजनैतिक हत्या को गिलानी ने नज़रंदाज़ कर दिया है। महबूबा मुफ़्ती राज्य में रमजान के समय आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई न करने की अपील कर रही है। लेकिन इस अपील के चंद घंटों के अन्दर मौत के घात उतार दिए गए. महबूबा मुफ़्ती गुल मोह्हमद मीर पर व आपराधिक चुप्पी साधे बैठी हैं। इन सब बातों से आहत कश्मीर के एक नौजवान जो चुनाव में इस बार पहली बार वोट डालने जा रहा है, उसने पूरे देश से अपने मन की बात साझा करने की ठानी और अपने दिल की बात को लिखा। इस युवक की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए असली नाम और गॉंव का नाम बदल दिया गया है लेकिन अनुभव और घटनाएँ पूर्णतया सत्य हैं –
 
 
"मैं एक कश्मीरी हूँ
 
 
 
मेरा नाम सज्जाद अहमद (परिवर्तित नाम) है। मैं शोपियाँ का रहने वाला हूँ, अपनी ग्रेजुएशन की पढाई के लिए ज़िन्दगी में पहली बार शोपियाँ से निकल कर, बनिहाल टनल पार की और बंगलौर पढ़ने पहुँचा । बनिहाल टनल का कश्मीरियों के लिए बड़ा महत्त्व है, बनिहाल टनल वो पॉइंट है जिसे पार कर हम जम्मू में दाखिल होते हैं। कश्मीर में रहने वाले जानते हैं कि हमें बताया जाता है बनिहाल टनल के उस पार भारत में मुसलमानों के खिलाफ बहुत जुल्म होता है। बीजेपी और आरएसएस मुसलमानों को आये दिन निशाना बनाते हैं I उनको को नमाज पढने नहीं दी जाती और मुस्लिम लडकियों को तंग किया जाता है, इसलिए हम कश्मीरियों को आज़ादी के लिए लड़ना है और पाकिस्तान का हिस्सा बनना है। यह सब सुनकर मेरे जैसा एक नौजवान गुस्से से भरा होता है और उसे भारत और भारतीयों में सिर्फ दुश्मन दिखाई देता है।
 
 
मैंने जब 12वीं पास की तो मेरे अब्बा ने कहा कि आगे की पढाई तुम्हें दिल्ली या बंगलौर जैसे किसी शहर में करनी होगी। मुझे ये बात पसंद नहीं थी मेरे मन में भारत के लिए गुस्सा था। मुझे लगा अब्बा मुझे कश्मीर से बाहर दिल्ली या बंगलौर क्यों भेजना चाहते है। मैंने इसका विरोध किया, लेकिन मेरे अब्बा ने कहा कश्मीर में आये दिन बंद रहता है, हड़ताल होती है, स्कूल जलाये जा रहे है। यहाँ पढने का माहौल नहीं है। पढना है तो कश्मीर से बाहर जाना ही होगा। मैं नाराज़ हुआ रोया उनसे झगड़ा लेकिन मेरी एक न चली और मुझे बनिहाल टनल पार कर बंगलौर आना पड़ा।
 
 
 
 
बंगलौर का सफ़र
बंगलौर में मेरे कालेज में मुझे पूरे भारत से पढ़ने आये छात्र और लेक्चरर मिले। मुझे वे सब अपने दुश्मन नज़र आते थे। मुझे लगा मुझे यहाँ कुछ ऐसा करना चाहिए जिस से मैं उन्हें बता सकूँ कि मैं उनसे नफरत करता हूँ, इसलिए 15 अगस्त के दिन मेरे कालेज में एक कार्यक्रम हो रहा था, मुझे लगा यह मौका है अपने गुस्से के इजहार का। मैं अपनी बाजू पर काली पट्टी को बाँधकर उस कार्यक्रम में गया जिस से मैं भारत और उसके संविधान के प्रति अपना विरोध दर्ज करा सकूँ। मुझे लगा वहा मेरा विरोध होगा या कुछ लोग आकर मुझ से लड़ेंगे। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट, मेरे पास मेरी महिला प्रोफ़ेसर आई और उसने पूछा कि तुमने काली पट्टी क्यों बाँधी है? मैंने जवाब दिया क्योंकि मैं आज़ाद नहीं हूँ । भारत ने मेरे कश्मीर पर कब्ज़ा किया है और बाकी देश में भी मुस्लिमों पर अत्याचार होते हैं। क्या अत्याचार होते हैं ? यह उनका दूसरा प्रश्न था। मैंने जवाब दिया मुसलमान को यहाँ आये दिन तंग किया जाता है और उन्हें नमाज़ तक नहीं पढ़ने दी जाती। इस पर बड़े शांत तरीके से उन्होंने मुझे कहा कि तुम्हे गलत जानकारी है पूरे देश में नमाज़ पढने मे कोई मनाही नहीं है। यहाँ बंगलौर में भी नमाज़ पढ़ी जाती है मस्जिदों में। इसके बाद वो प्रोफ़ेसर वहाँ से चली गयी और पूरे कार्यक्रम में मुझे और मेरी काली पट्टी को किसी ने देखा भी नहीं और ना ही किसी ने कोई प्रतिक्रिया दी। कोई मुझे कुछ नहीं कह रहा था लेकिन मुझे बुरा लग रहा था I मुझे अपनी काली पट्टी पर गुस्सा आ रहा था I उसके बाद बंगलौर की मस्जिदों के सच को जानने के लिए मैं बंगलौर की कई मस्जिदों में गया और मैं हैरान था सब जगह आराम से नमाज की आदायगी हो रही थी। यह देख कर मैं समझ नहीं पा रहा था कश्मीर में हमे ठीक इसके उलट क्यों बताया जाता है।
 
 
 
कश्मीर में समस्या का अध्ययन
 
 
 
यहाँ से मैंने कश्मीर में घट रही घटनाओं का अध्ययन तथ्यों के आधार पर शुरू किया। मैं हैरान था कि कश्मीर में अलगाववाद की बात करने वाले सारे बड़े अलगावावदियों के दिल्ली- मुंबई में अपने बिजनेस या घर थे। उनके बच्चे यहाँ बड़े कालेजो में पढाई कर रहे थे। शब्बीर शाह के बेटी अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए तो विदेश गयी है। गाँवों में गरीब किसानो के बच्चे आज़ादी की लड़ाई के नाम पर सेना पर पत्थरबाजी कर रहे है लेकिन गिलानी भारतीय पासपोर्ट हासिल करने को अपना मौलिक अधिकार मान रहा था I अलगाववादी कश्मीर में बोलते है कि शिक्षा कश्मीर की आज़ादी तक इंतज़ार कर सकती है, लेकिन खुद शबीर शाह जो कि अलगाववादी नेता है, की बेटी अपनी परीक्षाएँ दे रही थी I जब उसने १२वी की परीक्षा में अच्छे अंक आये तो उसके और उसकी माँ के साक्षात्कार अखबारों में छपे।
 
 
 
मुझे कश्मीर में कहा गया था कि कोई बिहारी या बंगाली सीआरपीएफ़ का जवान मेरे ही कश्मीर में मुझे से मेरा पहचान पत्र कैसे माँग सकता है। मैं हैरान था बंगलौर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में या एअरपोर्ट पर मुझ से पहचान पत्र माँगने वाला जरुरी नहीं कि कन्नड़ हो, कभी यह जवान हरयाणवी था,कभी सरदार जी और कभी बिहारी। किसी लोकल कन्नड़ व्यक्ति को इस बात से कोई एतराज़ नहीं था कि राज्य के बाहर का व्यक्ति उनसे पहचान पत्र माँग रहा है। मैंने लोगो से पूछा क्या आपको बुरा नहीं लगता कि कोई राज्य के बाहर का आदमी आप लोकल लोगों से पहचान पत्र माँग रहा है। इस पर मुझे जवाब मिला क्या गलत है। यह सब हमारी सुरक्षा के लिए है। लोग अपनी इच्छानुसार दिन में रात में कही भी घूम सकते थे, यहाँ तक कि महिलाएँ और लड़कियाँ भी!!!
 
 
 
कर्नाटक चुनाव
 
 
 
दो साल पहले कर्नाटक में चुनाव हुए। पूरे राज्य में उत्सव का माहौल था, कोई एक दल को वोट डाल कर जिताना चाह रहा था तो दूसरा उसी दल को हराना चाहता था। सबके अपने -अपने तर्क थे। चुनावी बहस होती थी , गरमागर्मी इतनी होती थी कि लोग कुछ दिनों तक एक दूसरे से बात तक नहीं करते थे। चुनाव एक उत्सव की तरह था। यह सब मैंने कश्मीर में नहीं देखा था। मेरे क्लासमेट्स पहली बार वोट डालने जा रहे थे। इसलिए सब रोमांचित थे। इसके बारे में कालेज में बात कर रहे थे। इसमें दोनों थे – हिन्दू भी और मुसलमान भी। मैंने एक दोस्त से पूछा कि तुम वोट क्यों डालना चाहते हो, उसके पास कई तर्क थे कि क्यों वोट जरुरी है। कैसे उसके एमएलए का कार्यकाल रहा है। उसने क्या गलत किया या क्या बुरा किया। उसकी बाते सुनकर मैं हैरान था क्योंकि कश्मीर में मेरा एमएलए कौंन है, मैं उसका नाम भी नहीं जानता था। वो कभी हमारे गाँव में आया ही नहीं था और ना ही हम ने उसके न आने का बुरा माना था। लेकिन अजहर महसूद, हाफ़िज़ सईद और आईएसआई का नाम मेरे गाँव में सब जानते थे।
 
 
 
 
समय बीतता गया और 2019 के लोकसभा चुनाव आ गए। मुझे लगा अबकी बार मैं भी गाँव जाकर वोट डालूँगा। लेकिन मैं गलत था, जबसे मैं गाँव आया हूँ, आये दिन किसी न किसी अलगाववादियों और आतंकियों का का पूरे गाँव के नाम सन्देश आ रहा था कि चुनाव का बॉयकाट करना है। अगर किसी ने वोट डालने की जुर्रत की तो उसके अंजाम बुरा होगा। और जब डर के मारे लोग वोट डालने नहीं जायेगें तो अगले दिन यही अलगाववादी चीख चीख कर कहेंगे कि जनता का चुनाव पर से विश्वास उठ गया है, वोटिंग टर्न आउट बहुत काम था !!
 
 
 
 
मैं ज़िन्दगी में पहली बार वोट डालना चाहता था लेकिन मेरे माँ बाप मेरे इस फैसले में मेरे साथ नहीं है। इसलिए नही कि वो वोट डालना नहीं चाहते। बल्कि इसलिए कि उन पर दबाव है। मेरे जैसे बाहर पढ़नेवाले छात्रों पर बाकायदा नज़र रखी जा रही है कहीं हमारा झुकाव लोकतंत्र की तरफ तो नहीं हो गया है। मैं अपने बंगलौर के नशे में था और जब मैंने कुछ लोगो से चुनाव के बारे में बात की तो मुझे चुप करा दिया गया। मैं अंदर तक हिल गया क्योंकि मुझे चुप कराने वालों अलगाववादियों के यू टयूब पर बहुत सारे वीडियो मैंने देखे थे। जिसमे पूरे देश में घूम घूम कर वो कह रहे थे कि कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है , जबकि यहाँ उल्टा है। यहाँ मेरी अभिव्यक्ति को ही नहीं मेरी सोच तक को गुलाम बना कर रखा जा रहा है। और मुझे दुःख इस बात का है कि इसमें मेरे कुछ कश्मीरी भाई भी बराबर का किरदार निभा रहे है।
 
 
लोकतंत्र के चेहरे “गुल मोहम्मद मीर” की हत्या हुई लेकिन सब चुप हैं
 
 
 
मेरे गाँव से थोड़ी दूर एक जगह है वेरीनाग। वहाँ कल बीती रात गुल मोह्हमद मीर नाम के आदमी को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो बीजेपी से जुड़ा था। वो लोगो को कह रहा था वोट डालो, कर्नाटक में बीजेपी सरकार नहीं बना पायी क्योंकि जेडीएस और कांग्रेस दोनों में गठबंधन हो गया। बीजेपी के विधायक सबसे ज्यदा थे, लेकिन गठबंधन के कारण बीजेपी कुछ नहीं कर पायी। गठबंधन की दोनों पार्टियों ने कहा कि वो बीजेपी को बाहर करने के लिए मिल रही है। अनंतनाग लोकसभा की सीट के बारे में मैं जानता हूँ, यहाँ बीजेपी के जीतने के आसार न के बराबर है , फिर भी गुलाम मीर को मार डाला गया। उसको खामोश कर दिया गया। यहाँ राजनितिक पार्टी को हारने या जीताने के लिए वोटिंग मशीन नहीं बुलेट और बन्दूक का प्रयोग हो रहा है।
जमात के लोग महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर कर रहे है। सदियों से कश्मीर में सूफी दरगाहो में लोग जाते है उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। हमारे फेस बुक पर भी निगरानी की जाती है I अगर अपनी पोस्ट में मैंने अलगाववादियों का साथ नहीं दिया या हिंदुस्तान के पक्ष में कोई बात लिख दी तो अगले दिन मेरे घर से फ़ोन आ जाता है, मुझे तुरंत वो पोस्ट हटानी पड़ती है, या कुछ दिनों के लिए फेस बुक बंद करना पड़ता है I पिछली बार घर गया था तो मेरे कुछ रिश्तेदारों ने मुझे इंडिया का एजेंट भी कहा I
 
 
 
कश्मीरी पहचान या अलगाव की राजनीति
 
 
 
महबूबा मुफ़्ती या उमर अब्दुल्ला सारे चुनाव के दौरान चीखते चिल्लाते रहे कि कश्मीर का स्पेशल स्टेटस है और हमसे यह छीना नहीं जा सकता। मैं यह सोच सोच कर परेशान हूँ कि यह कैसा स्पेशल स्टेटस है कि मैं और मेरे माँ बाप घर से निकल कर वोट भी नहीं डाल सकते। गिलानी या यासीन मालिक जिनको मैंने कभी अपना आदर्श माना था। आज मेरे सामने बेनकाब हो रहे है, “ हम क्या चाहते आज़ादी “ यह नारा मैंने गिलानी के मुँह से पहली बार सुना था। फिर महबूबा मुफ़्ती की तकरीर सुनी जिसने कहा जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 35A अगर हटाया जाएगा तो कश्मीर भारत से आज़ाद हो जाएगा I मुझे लगा गिलानी जिस आज़ादी की बात करते है वो आज़ादी अब हमें मिल जायेगी क्योंकि बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा कि वो आर्टिकल 35A को हटाना चाहते है। लेकिन मैं गलत था , वही गिलानी जो आज़ादी चाहता था , उसी ने बयान दिया कि आर्टिकल 35A हमारी पहचान है – शिनाख्त है इसे कोई नहीं हटा सकता। मुझे अन्दर तक जिस बात ने झकझोर कर रख दिया वो यह थी जिस आर्टिकल 35A को गिलानी अपनी पहचान बता रहा था वो उसी भारतीय संविधान का हिस्सा थी, इसी भारतीय संविधान को कश्मीर में लागू होने से रोकने की लिए गिलानी जैसे नेता सारे हथकंडे अपनाते हैं , यही गिलानी अपनी तकरीर में भारत का कश्मीर पर कब्ज़ा बताता था। मैं यह डबल स्टैण्डर्ड मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
 
 
 
चुप रहना मुश्किल है
मैं अपनी आँखों से देख सकता हूँ कि कुछ पत्रकार अपनी पत्रकारिता से कश्मीर को ‘कॉन्फ्लिक्ट ज़ोन’ बनाना चाहते है। इसके लिए झूठ-सच कुछ भी छाप रहे है। यहाँ के लोग भी जानते है कि ये पत्रकार यह सब पैसे के लिए कर रहे है। ये पैसे किस देश से आ रहे है यह भी सब जानते है। फिर भी चुप है लेकिन इस विदेशी पैसे के चलते मेरे कश्मीर में खून कश्मीरियों का बह रहा है यह लोग देख कर भी चुप है। मैं चुप बैठ नहीं पा रहा हूँ I मैंने अपने माता पिता से इस बारे में बात की। उन्होंने मिन्नतें करते हुए कहा कि मेरी सब बाते ठीक हो सकती हैं लेकिन अगर मैं खुल कर यह सब बातें अपने मोहल्ले में भी करूँगा तो उसके परिणाम बहुत बुरे हो सकते है। मैं कश्मीर में रहने वाला वो नौजवान हूँ , पहली बार वोट डालना चाहता हूँ , लेकिन डाल नहीं पा रहा हूँ , चाहे राजनेता हो या अलगाववादी नेता सभी कश्मीर विनाश की राह पर ले जा रहे हैं और इसलिए पूरे देश को एक सन्देश देना चाहता हूँ , मेरे या यूँ कहिये हमारे कश्मीर को बचा लो।"