महबूबा तो नेता है राजनीति करेंगी, लेकिन आरफा खानम तो पत्रकार थीं, फिर पत्रकारिता क्यों नहीं की? द वायर की एजेंडा वाली पत्रकारिता का पर्दाफाश
   07-मई-2019
 
 
वर्तमान में देश में लोकसभा चुनाव जारी है। जम्मू कश्मीर में भी यह प्रक्रिया बीते दिन यानी 6 मई की शाम शोपियाँ और पुलवामा में मतदान के साथ खत्म हो गयी। मतदान के समाप्ति के साथ-साथ ही कम्युनिस्ट विचारधारा से सम्बन्ध रखने वाली वेबसाइट “ द – वायर “ ने जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का एक इंटरव्यू जारी किया। यह इंटरव्यू वेबसाइट की सीनियर एडिटर आरफा खानम शेरवानी ने लिया। इस इंटरव्यू में कैसे इंटरव्यू लेने और देने वाले ने अलगववाद को बढ़ावा देने में अपनी हिस्सेदारी को बरक़रार रखते हुए, जम्मू कश्मीर से जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर आपको परोसा, वह हम आपके सामने लेकर आयेंगे और बताएँगे कैसे पत्रकारिता और राजनीति के नाम पर अलगाववाद फैलाने का काम किया जा रहा है।
 
द वायर – वेबसाइट की सीनियर एडिटर अपने इंटरव्यू की शुरुआत करती हैं इस बात के साथ कि पूरे देश में चुनाव हो रहा है लेकिन जम्मू कश्मीर में यदि बाहर निकल कर आप देखेंगे तो पायेंगे कि चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है , कोई बैनर नहीं है कोई रैली नहीं इत्यादि। एक फेज़ में तो टर्न आउट केवल 10 प्रतिशत रहा और जम्मू कश्मीर के युवा आतंकवाद की ओर बढ़ रहे है।
 
तथ्य – यदि आप आरफा खानम शेरवानी के इंटरव्यू की शुरुआत देखेंगे तो आपको लगेगा जैसे पूरा का पूरा जम्मू कश्मीर लोकसभा के चुनाव के खिलाफ है। यहाँ चुनाव में लोगों की सहभागिता बहुत कम है और राज्य आतंकवाद की ओर बढ़ रहा है, जबकि यह सच्चाई नहीं है । सच्चाई यह है कि जम्मू कश्मीर में कुल मिलकर 6 लोकसभा सीट्स हैं, दो जम्मू में, तीन कश्मीर में और एक लद्दाख में। 6 सीट्स पर चुनाव पाँच चरणों में हुआ। जम्मू कश्मीर की हर लोकसभा सीट पर कितना मतदान हुआ यह आप नीचे देख सकते हैं।
 
१. जम्मू लोकसभा - 72.16%
२. बारामूला लोकसभा – 34.71%
३. उधमपुर – कठुआ लोकसभा- 70.2 %
४. श्रीनगर लोकसभा – 14.3%
५. लेह लोकसभा - 63.70%
६. अनंतनाग लोकसभा – 8.7%
 
 
 द वायर का  इंटरव्यू
 
 
सभी लोकसभा क्षेत्रो में वोटिंग देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते है कि मात्र अनंतनाग लोकसभा और श्रीनगर लोकसभा के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहाँ पर वोटिंग कम हुई। यह एक तथ्य है, इसे कोई नकार नहीं सकता। लेकिन यह यह भी स्पष्ट करता है कि आतंकवाद और अलगाववाद भी जम्मू कश्मीर के इन्हीं हिस्सों से सम्बंधित है। इन हिस्सों में कम हुई वोटिंग को आधार बनाकर पूरे जम्मू कश्मीर को बदनाम करना वास्तविकता का सही चित्रण नहीं है।
 
हमारे ऊपर के आँकलन का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि हम अलगाववाद और आतंकवाद को इस छोटे से हिस्से का मानकर इसे नज़रंदाज़ करना चाहते हैं। लेकिन हमें यह समझना पड़ेगा कि राज्य के किस हिस्से में समस्या है और फिर समस्या क्या है ? तभी उसका निवारण संभव है। हम आगे आप को बताएँगे कि इस हिस्से में अलगाववाद के क्या कारण है और कैसे इसमें जम्मू कश्मीर में 70 सालों से राज कर रही पार्टियों ने आग में घी का काम किया है।
 
महबूबा मुफ़्ती का झूठ और द “वायर” सीनियर एडिटर की अज्ञानता या एजेंडा
 
अपने इंटरव्यू के दौरान महबूबा मुफ़्ती ने बड़ी बेशर्मी के साथ ऐसे झूठ बोले जिनका सत्य या तथ्य से सम्बन्ध तो था ही नहीं बल्कि ऐसे झूठ राज्य के समस्याग्रस्त क्षेत्र में केवल अलगाववाद बढ़ाने का और फैलाने का काम करते हैं, जैसे मकबूल भट और अफजल गुरु को फाँसी देना गलत था, जबकि वह जानती है ये दोनों आतंकवादी थे और भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका ने इन्हें फाँसी दी है। इन दोनों को दी गयी फाँसी पर प्रश्न खड़े करना भारतीय न्यायपालिका का अपमान है। फिर भी महबूबा न्यायपालिका पर लांछन लगाती गयीं। “ द वायर “ की सीनियर एडिटर ने एक बार भी यह प्रश्न नहीं किया कि 'आप भारतीय न्यायपालिका पर प्रश्न लगा रही है , क्या आपको न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है।'
 
आप जानकर हैरान होंगे सबसे कम वोटिंग अनंतनाग और श्रीनगर में हुई है और जम्मू कश्मीर में इन्ही दोनों जिलो के दो परिवार 70 सालो से जम्मू कश्मीर पर राज कर रहे है। अब्दुल्ला परिवार श्रीनगर से और मुफ़्ती परिवार अनंतनाग से। आज अगर यहाँ वोटिंग कम है तो वो इन दोनों परिवारों की वजह से। ये गुस्सा शेष भारत से कम इन दोनों परिवारों के प्रति ज्यादा है। जब अब्दुल्ला परिवार राज्य की सत्ता में आता है तो मुफ़्ती परिवार हालात को बिगाड़ने में लगा रहता है। जैसे ही मुफ़्ती परिवार सत्ता में आता है अब्दुल्ला परिवार अलगाववाद की राह पर निकल जाता है।
 
आज़ादी के बाद साल दर साल दोनों परिवारों ने जम्मू कश्मीर के भारत में अधिमिलन को लेकर लगातार झूठ बोला है। जम्मू कश्मीर में अनंतनाग और श्रीनगर के लोगों को रट्टू तोते की तरह झूठ बताया गया है। दुर्भाग्य से जिन लोगों को अनंतनाग और श्रीनगर की जनता को सच बताना था उन्होंने अपना रोल नहीं निभाया। ऐसा ही एक झूठ महबूबा मुफ़्ती ने फिर बोला और “द वायर” ने उस झूठ को फैलाने में महबूबा की मदद की।
 
द वायर – एक सवाल के जवाब में महबूबा मुफ़्ती कहती है कि “जम्मू कश्मीर बाकी राज्यों की तरह एक राज्य नहीं है. जम्मू कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है और आज़ादी के समय हिन्दू बहुल राज्य भारत में रह गए और मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में चले गए, लेकिन जम्मू कश्मीर भारत में रह गया पर कुछ शर्तों के साथ और आज आप यदि उन शर्तों से छेड़- छाड़ करते है तो हमारा रिश्ता भारत के साथ खतरे में आ जाता है “
 
तथ्य – यहाँ महबूबा ने सफ़ेद झूठ बोला की जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन किन्ही शर्तों के मुताबिक हुआ था। इस झूठ को बेनकाब करने के लिए आपको को कुछ ऐतिहासिक और कानूनी तथ्य पढ़ने और समझने होंगे।
 
भारत आज़ादी से पहले अंग्रेजो का के अधीन था . अंग्रेज़ों ने पूरे भारत को मुख्यत्त दो भागो में बाँटा हुआ था – १ ब्रिटिश भारत २ प्रिंसली स्टेटस या देसी रियासतें । इसके अतिरिक्त कुछ हिस्से फ्रांस और पुर्तगाल के भी अधीन थे , उनका सीधा -२ सम्बन्ध जम्मू कश्मीर से नहीं है, इसलिए हम इन भागों का उल्लेख यहाँ नहीं कर रहे हैं ।

ब्रिटिश भारत – यह भारत का ऐसा भूभाग था जिसका शासन लन्दन से सीधा ब्रिटिश सरकार चलाती थी, भारत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा ब्रिटिश भारत के अंतर्गत आता था । जम्मू कश्मीर इस ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं था ।
 
प्रिंसली स्टेटस – यह भारत का वह भू- भाग था जिसमे अलग -२ हिस्सों पर स्थानीय राजाओ- महाराजाओ का शासन था, इन्हें हम देसी रियासतें कहते थे । इन रियासतों की अंग्रेजो के साथ अलग- २ संधियाँ थी जिसके अनुसार इन सभी रियासतों ने ब्रिटिश परमाउंटसी /प्रभुसत्ता को मान लिया था । यह रियासतें अंग्रेज़ों के अधीन थीं लेकिन रियासतों का आंतरिक शासन राजाओं के अधीन था । जम्मू कश्मीर ऐसी ही एक रियासत थी ।
 
धर्म के आधार पर विभाजन ब्रिटिश भारत का हुआ था देसी रियासतों का नहीं -
 
1947 में अंग्रेजो ने ब्रिटिश भारत का विभाजन धर्म के आधार पर किया और ब्रिटिश भारत के दो महत्वपूर्ण हिस्से बंगाल और पंजाब को काटकर पाकिस्तान का निर्माण किया गया । ब्रिटिश भारत का विभाजन धर्म के आधार पर था किन्तु जम्मू कश्मीर ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं था वह प्रिंसली स्टेटस का हिस्सा था ।
 
जम्मू कश्मीर और बाकी रियासतों के अधिमिलन को समझना है तो भारत सरकार अधिनियम 1935 पढ़ना पड़ेगा । भारत सरकार अधिनियम 1935 को 1947 में आवशयक संशोधनों सहित भारत का अंतरिम संविधान घोषित कर दिया गया । इसकी धारा 6 में रियासातों के संघीय संविधानिक व्यवस्था में शामिल होने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है । इस धारा के अनुसार “ यदि कोई भारतीय देसी रियासत का शासक डोमिनियन के पक्ष में अधिमिलन पत्र निष्पादित करता है और गवर्नर जनरल उसकी स्वीकृति को सिग्निफायी कर देता है तो उस रियासत का उस डोमिनियन में अधिमिलन माना जाएगा ।’’
 
इस पूरी धारा में रियासत के शासक का ज़िक्र है और गवर्नर जनरल का ज़िक्र है । कही पर भी किसी भी धर्म का चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान का ज़िक्र नहीं है । कानून के अनुसार रियासत के राजा को अधिकार थे की वो किस डोमिनियन का हिस्सा बनेगा यह तय करे ।
इस प्रकिया के लिए जिस अधिमिलन पत्र का उपयोग किया वह एक स्टेंडर्ड अधिमिलन पत्र था अर्थात सब रियासतों का अधिमिलन पत्र एक ही जैसा था । जम्मू कश्मीर के लिए अलग से कोई विशेष अधिमिलन पत्र नहीं बनाया गया था. इस धारा के अनुसार महाराजा या गवर्नर जनरल दोनों के पास किसी भी शर्त को रखने या मानने का कही कोई जिक्र नहीं है , जो भी शर्ते थी वो अधिमिलन पत्र में थीं । अधिमिलन के पत्र में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि रियासतो का भविष्य हिन्दू या मुसलमान जनसँख्या के आधार पर किया जाएगा ।
 
यह पूरी जानकारी आप भारत सरकार द्वारा १९५० में प्रकाशित “ वाईट पेपर'' में देख सकते है ।
 
जम्मू कश्मीर का अधिमिलन
 
15 अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली। ब्रिटिश भारत का धर्म के आधार पर विभाजन हुआ और पाकिस्तान डोमिनियन बना . बाकी देसी रियासतों की तरह जम्मू कश्मीर के महाराजा ने भी 26 अक्तूबर 1947 को भारत के पक्ष में अधिमिलन कर दिया। इसके ठीक अगले दिन तत्कालीन गवर्नर जनरल ने इस अधिमिलन पत्र को हस्ताक्षर कर सिग्निफायी कर दिया। इस प्रकार जम्मू कश्मीर भारत डोमिनियन का हिस्सा बना। इस पूरी प्रक्रिया में अक्सर लोग यह कहकर भ्रम फैलाने की कोशिश करते है कि जम्मू कश्मीर का अधिमिलन मात्र तीन विषयों विदेश, संचार और सुरक्षा को लेकर था बाकी विषयों को लेकर नहीं । यह आधा सच है, जम्मू कश्मीर के साथ-साथ बाकी रियासतों ने भी जिस अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किये उसमें भी उल्लिखित तीन विषयों पर ही अधिमिलन हुआ था।
 
आज़ादी के पश्चात रियासतों का अधिमिलन भारत में रियासतों के एकीकरण का पहला कदम था । इसके अनुसार जो रियासतें भारत का हिस्सा बनीं, उनके प्रतिनिधियों ने और शेष भारत के प्रतिनिधियों ने मिलकर संविधान सभा का निर्माण किया । इस संविधान सभा ने तीन सालों तक मंथन किया और देश का संविधान आस्तित्व में आया ।
 
इसी संविधान के अनुच्छेद 1 एवं अनुसूची 1 में आप स्पष्ट देख सकते है की जम्मू कश्मीर भारत के 15वें राज्य के रूप में अंकित है ठीक वैसे ही जैसे राजस्थान या बिहार या देश को कोई अन् राज्य ।
 
महबूबा मुफ़्ती का यह कहना कि अधिमिलन पत्र में शर्तें थीं या इस विषय को हिन्दू मुसलमान का प्रश्न बनाना,ऐतिहासिक और कानूनी रूप से पूरी तरह से गलत है । इस झूठ ने जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से में अलगाववाद को बढ़ावा दिया है । महबूबा मुफ़्ती का ग़लत बयानबाज़ी करना उनकी राजनितिक मजबूरी हो सकती है, लेकिन “ द वायर “ की सीनियर एडिटर इस झूठ के खिलाफ प्रश्न न कर इस झूठ को प्रसारित करने के लिये अपनी वेबसाइट और यु टयूब का प्रयोग करना हमें समझ नहीं आता। ”द वायर” या आरफा खानम की पत्रकारिता कम्युनिस्ट विचारधारा से जुडी हो सकती है लेकिन देश के कानूनी पक्ष किसी विचारधारा से प्रेरित नहीं है । उनका मूल्यांकन सच और झूठ की परिपाटी पर होता है । इसी कारण महबूबा मुफ़्ती , उमर अब्दुल्लाह और गिलानी जैसे नेता चाहे कितना झूठ बोलते रहें लेकिन देश की संवैधानिक वयवस्था अपने संविधान के अनुरूप ही चलेगी ।
 
जम्मू कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद दोनों है लेकिन केवल राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में और उसमे भी यदि प्रमुखता से कहा जाए तो दक्षिणी कश्मीर में । राज्य के सबसे बड़े हिस्से लद्दाख में जहाँ कारगिल जैसा मुस्लिम बाहुल क्षेत्र भी है, वहाँ 63 प्रतिशत वोटिंग हुई है । राज्य के दूसरे बड़े हिस्से जम्मू में भी दोनों लोकसभा सीटों पर लगभग 70 प्रतिशत वोटिंग हुई, इन इलाको में पूँछ और राजौरी जैसे मुस्लिम बहुल इलाके भी है । लेकिन बहुत चालाकी से आरफा खानम ने अनंतनाग लोकसभा की 10 प्रतिशत वोटिंग से पूरे राज्य की वोटिंग का आँकलन कर लिया और राज्य में चुनाव की वैधता पर ही प्रश्न चिहन लगा दिया और जवाब में महबूबा मुफ़्ती ने भी उसी अलगाववादी एजेंडे को आगे बढाते हुए चुनाव में कम वोटिंग को चिह्नित किया और ऐसा साबित करने की कोशिश की जैसे पूरा राज्य वोट नहीं डालना चाहता ।
 
जिस समय यह इंटरव्यू किया गया यह चुनाव का अंतिम चरण था । इस चरण में राज्य की आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित लोकसभा सीट अनंतनाग में चुनाव होना है और उसमे भी सर्वाधिक पीड़ित शोपियाँ और पुलवामा में । पिछले चार चरणों में जम्मू , उधमपुर-कठुआ , बारामूला , श्रीनगर और इस चरण में लेह में जब वोटिंग हुई तब “ द वायर “ को जम्मू कश्मीर के चुनावों का कोई ख्याल नहीं आया, क्योंकि अगर उस समय आरफा खानम शेरवानी इन जगहों पर जाती तो उनको रैली भी दिखती , रोड शो , गलियों में बैनर, सब नज़र आता लेकिन आरफा खानम शेरवानी ने वह समय चुना जब केवल अलगाववाद दिखे । वैसे भी अगर अलगाववाद और आतंकवाद नहीं नज़र आता तो फिर “द वायर“ बेचता क्या ??