3 जून 1947, जब भारत के बंटवारे की आधिकारिक - घोषणा की गई ।
   04-जून-2019

 
3 जून 1947 एक ऐसी तिथि है जिसने भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया था . इस तिथि को माउंटबेटन ने भारत के विभाजन का का प्लान घोषित किया था. 15 अगस्त 1947 के दिन भारत आजाद हुआ लेकिन आज़ादी के साथ -२ इस दिन से ठीक एक दिन पहले भारत का एक ए हिस्सा भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना था. भारत के विभाजन और 15 अगस्त पर बहुत कुछ लिखा गया लेकिन इस विभाजन की दास्ताँ 3 जून 1947 को ही लिख दी गयी थी. 1947 में भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष अंतिम चरण में था . भारत का भविष्य क्या होगा इस पर तरह -2 के कयास लगाए जा रहे थे. ऐसे हालातो में भारत के तब के वायसाराई माउंटबेटन ने देश के विभाजन की योजना का प्रारूप पेश किया . यह प्रारूप 3 जून को विश्व के सामने आया इसलिए इसे “ थर्ड जून प्लान “ या “माउंटबेटन प्लान “ के नाम से जाना जाता है .


ब्रिटेन सरकार ने 20 फ़रवरी 1947 को यह घोषणा की थी कि जून 1947 तक भारत को स्वतंत्र कर दिया जाएगा. इसीलिए 12 फ़रवरी 1947 को माउंटबेटन को भारत भेजा गया. “ थर्ड जून का प्लान “ इसी का परिणाम था
 
भारत आते ही लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा कर दी कि वह कुछ ही महीनों में भारतीयों को सत्ता सौंप देंगे. 24 मार्च से 15 अप्रैल के बीच माउंटबेटन ने भारत की राजनीतिक स्थितियों देश के विभिन्न नेताओं से विचार विमर्श किया गया. कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में सर्वप्रथम लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की. बाद में माउंटबेटन ने महात्मा गाँधी और वल्लभ भाई पटेल से मुलाक़ात की. इसी प्रक्रिया में वो मोहम्मद अली जिन्नाह, कांग्रेस नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद जे. बी.कृपलानी .कृष्ण मेनन और मुस्लिम लीग सचिव लियाकत अली के साथ मुलाक़ात की . मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान की मांग पर अड़ा रहा है. सिक्ख प्रतिनिधियों में बलदेव सिह, मास्टर तारा सिंह और अन्य सिक्ख नेताओं के अतिरिक्त बीकानेर और भोपाल की भारतीय रियासतों के राजाओं से भी बातचीत की.
 
इस प्लान के तहत यह घोषणा की गयी कि भारत के विभाजन को ब्रिटेन की संसद के द्वारा स्वीकार किया जाएगा. इस विभाजन के तहत ब्रिटिश भारत यानी भारत का वो हिस्सा जिस पर ब्रिटिश प्रत्यक्ष यानी सीधे राज करते थे , उसमे से एक हिस्सा काटकर पाकिस्तान बना दिया गया . ततकालीन भारत का दूसरा हिस्सा जिसमे देसी रियासते थी , उसका विभाजन नहीं किया गया था . देसी रियासतों पर अंग्रेज अप्रत्यक्ष रूप से राज करते थे. इस प्लान के तहत देसी रियासतों के बारे में कहा कि “ देसी रियासतों के बारे में कैबिनेट मिशन मेमोरंडम ( 12 मई 1946) के अन्दर जो व्यवस्था की गयी थी वह बरकरार रहेगी “. कैबिनेट मिशन में बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भारत से अंग्रेजो के जाने बाद देसी रियास्तो पर ब्रिटिश अधिकार ( प्ररमौन्त्क्य) समाप्त हो जाने के बाद देसी रियासते भविष्य में निर्मित होने वाले दोनों डोमिनियंस के साथ अपने संबंधो का निर्धारण करेंगे.

देसी रियासतें और ब्रिटिश रूल
 
आजादी से पूर्व भारत में 550 से ज्यादा रियासतों पर ब्रिटिश अपनी प्रभुसत्ता कायम किये हुए थे . इसके लिए परमोच्चता की अवधारणा का निर्माण किया गया था . इसके अनुसार ब्रिटिशो ने राजे रजवाडो के साथ अलग -2संधियाँ की थी जिसके अनुसार मुख्यता तीन विषय , विदेश, सुरक्षा और संचार पर अंगेजो का अधिकार था . इसके अलावा राज्यों के स्थानीय विषयो पर देसी राजे रजवाड़े अपना अधिकार रखते थे . जिस समय देश आजाद हुआ, उस समय यह परमोच्च्ता की अवधारणा समाप्त हो जानी थी और राजाओ को यह अधिकार दिया गया था कि वो भारत या पाकिस्तान दोनों डोमिनियंस में से किसी एक के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित कर सकते थे . इसके लिए अधिमिलन पत्र नमक दस्तावेज आस्तित्व में लाया गया. यह एक मानक दस्तावेज था जो सभी रियासतों के लिए बनाया गया था. राजाओ को केवल इस दस्तावेज पर तारीख डाल कर हस्ताक्षर करने थे , तत्पश्चात भारत के तत्कालीन गवर्नर को केवल इस दस्तावेज को स्वीकार करना था और इस तरह वह देसी रियासत भारत या पाकिस्तान डोमिनियन का हिस्सा बन जाती.
 
इसमें केवल यह एक कंडीशन थी कि देसी रियासत का अधिमिलन जिस डोमिनियन में हो रहा हो उसकी भौगोलिक समीपता होनी चाहिए. इस बात की पुष्टि खुद माउंटबेटन ने 25 जुलाई 1947 को “ चैम्बर ऑफ़ प्रिंसेस “ की बैठक में घोषित की. एक भ्रम जो अधिमिलन के विषय में लगातार प्रचारित की जाती है कि देसी रियासतो का अधिमिलन धर्म के आधार पर होना चाहिए था. यह एक निराधार और असत्य अवधारणा है . धर्म के आधार पर केवल ब्रिटिश भारत का विभाजन हुआ था, परिणामस्वरूप पाकिस्तान आस्तित्व में आया . लेकिन देसी रियासतों के विषय में केवल राजा या नवाब का मत ही अंतिम था . जम्मू कश्मीर भी ऐसी ही रियासतों में से एक था जिसका अधिमिलन महाराजा हरी सिंह ने 26अक्तूबर 1947 को भारत के पक्ष में किया था . यह एक कानूनी प्रक्रिया थी . इस अधिमिलन का प्रभाव यह था कि संयुक्त राष्ट्र में भी जम्मू कश्मीर को भारत का अंग माना गया और पाकिस्तान को एक आक्रमणकारी घोषित किया गया . यह तथ्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के दस्तावेजो में बहुत सपष्ट रूप से लिखित है.