जम्मू कश्मीर परिसीमन के इतिहास और राजनीति से जुड़े 25 तथ्य : जो साबित करते हैं कि कश्मीरी नेताओं ने कैसे जम्मू और लद्दाख के खिलाफ छल किया
   05-जून-2019
 
 
 
 
 
1.  मई 1, 1951 को युवराज करण सिंह ने उद्घोषणा क्र. 22 द्वारा संविधान सभा गठित करने की घोषणा की I इस प्रक्रिया के लिए यह सुझाव दिया गया कि जम्मू कश्मीर राज्य को लगभग 40,000 मतदारों वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा जायेगा I
 
 
 2. 1951 में किया गया परिसीमन अत्यंत अन्यायपूर्ण / भेदभाव पूर्ण था, विशेषकर जम्मू कश्मीर के पिछड़े और दूर दराज़ के इलाकों में रहनेवाले लोगों पर ये अत्याचार था I जनप्रतिनिधि कानून 1957 के अनुसार विधायक चुनने के लिए तय किये गए आधार की ही परिसीमन आयोग ने अनदेखी कर दी I
 
 
3.  जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 50 और जनप्रतिनिधि कानून 1957 की धारा 4 के दिशा निर्देशों का, 1951 में बनी आतंरिक परिसीमन समिति और जस्टिस के के गुप्ता परिसीमन आयोग के 27 /28 -04 -1991 के आदेश ने भी निर्दयता से उल्लंघन किया I आज तक इन दिशा निर्देशों का और परिसीनम से जुड़े नियमों को जम्मू कश्मीर में पालन नहीं हुआ है I
 
 
4.  जम्मू कश्मीर जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार केवल जनसख्या ही परिसीमन का आधार नहीं है, इस धारा के अनुसार - भौगोलिक संरचना, भूखंड की प्रकृति, जनसम्पर्क की सुविधाएँ भी आधार हैं I इन मापदंडो को यदि लागू किया जाए तो कश्मीर घाटी की भौगोलिक संरचना जम्मू के मुकाबले बहुत सुघटित है I बावजूद इसके,जम्मू के डोडा, राजौरी, कठुआ और उधमपुर को मिलाकर, कुल 21,522 वर्ग कि मी क्षेत्र के इन ज़िलों में मात्र 21 विधायक दिए गए हैं जब कि पुलवामा, अनंतनाग, श्रीनगर और बड़गाम के कुल 8,981 वर्ग की मी के क्षेत्र के लिए 31 विधायक हैं I जम्मू में केवल 25 % क्षेत्र मैदानी है जब की कश्मीर का लगभग 75 % इलाका मैदानी है I जम्मू की तुलना में कश्मीर में सड़क निर्माण 2.5 गुना अधिक है I इस सबके बावजूद विधान सभा में कश्मीर को जम्मू से अधिक सीटें दी गयी हैं I
 
 
5. 1941 की जनगणना के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य की जनसँख्या 40,21,616 थी, जम्मू में 20,01,557, कश्मीर में 17,28,686 और गिलगित, स्कार्दू, कारगिल और लद्दाख के जनसँख्या 3,11,915 थी I
 
 
6.  ये आश्चर्य की बात है कि 1951 में चुनाव से पहले जनसँख्या गणना नहीं की गयी , क्योंकि अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान द्वारा किये गए आक्रमण से बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू और सिख लोगों को पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर से अपनी जान बचा कर भागना पड़ा था I इस कारण 1941 की जनगणना को चुनाव क्षेत्र निर्धारित करने का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए था I बहुत बड़ी संख्या में लोग जम्मू आकर बस गए थे, और कुछ राज्य से बाहर चले गए थे I
 
 
 
 
 
 
7. कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं मिलता है कि 1951 में किस आधार पर निर्वाचन क्षेत्र निर्धारित किये गए थे I हो सकता है कि चूँकि प्रति निर्वाचन क्षेत्र 40,000 की संख्या सुझाई गयी थी इसलिए 40 लाख की कुल जनसँख्या मानते हुए 100 सीट विधानसभा कि लिए निर्धारित कर दी गयी होंI
 
 
8. शेख अब्दुल्ला की आतंरिक सरकार ने 100 में से 25 सीटें पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर के लिए अलग रखीं, बाकी 75 में से 43 कश्मीर, केवल 30 जम्मू और 2 लद्दाख के लिए निर्धारित की गयीं I
 
 
9. सीटों का बँटवारा देखने से लगता है कि यह मान किया गया था कि जम्मू का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में चला गया है, इसलिए जम्मू की जनसँख्या और सीट दोनों ही कम होंगींI जब कि 1941 कि जनगणना के अनुसार जम्मू की जनसँख्या सबसे अधिक थी I यहाँ एक और बात ध्यान देने योग्य है कि पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर से विस्थापित अधिकतर लोग जम्मू में बसे, यानी जम्मू की जनसँख्या बढ़ी I
 
 
10. दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि, जनसँख्या गणना किये बिना सीटों का जो बँटवारा 1951 में हो गया वही अनुपात आज तक चल रहा है I
 
 
11. 1961 की जनगणना के अनुसार कश्मीर की जनसँख्या 18 लाख, जम्मू की 16 लाख दर्ज़ की गयी, यानि कश्मीर में 42,850 लोगों पर एक विधायक था जब की जम्मू ले लिए 51,600 लोगों पर एक विधायक था I 1966 में कश्मीर के सीट 43 से 42 कर दी गयी और जम्मू को एक सीट और दे दी गयी यानि 30 से 31 कर दी गयी, हालाँकि लद्दाख को 2 सीटों पर ही रखा गया।
 
 
12. जम्मू द्वारा विरोध करने पर बजाय परिसीमन करने के,1975 में धारा 48 के खंड (a) में 12 वां संविधान संशोधन कर पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर के 25 में से एक सीट घटा कर 24 कर दी गयी और तत्कालीन 75 सीटों में एक सीट जोड़ दी गयी I यह सीट जम्मू को दे दी गयी, सो अब जम्मू के 32 और कश्मीर के 42 विधायक हो गए I
 
 
13. 1971 में जनगणना के अनुसार कश्मीर के जनसँख्या 23 लाख और जम्मू की 21 लाख थी, यानि कश्मीर में 54,760 पर एक विधायक था जब कि जम्मू में 65,630 पर एक विधायक I
 
 
12. जब 1975 में शेख अब्दुल्लाह एक बार फिर सत्ता में आये तो बिना किसी सर्वेक्षण के, बिना किसी आधार के 1979 में उनकी सरकार ने कश्मीर के 3 ज़िलों में 3 ज़िले और बढ़ा दिए, क्योंकि जम्मू में 6 ज़िले थे I यह निर्णय केवल कैबिनेट की मंज़ूरी से लिया गया I
 
 
14. 1981 तक परिसीमन आयोग का गठन नहीं किया गया क्योंकि कश्मीर के राजनेता यह जानते थे कि यदि परिसीमन ईमानदारी से किया गया तो जम्मू के सीट्स बढ़ जायेंगीं I अंततः 30 साल बाद जब परिसीमन आयोग का गठन 1981 में हुआ तो उसका काम 1995 तक खींचा गया I इतना लम्बा समय लेने के बावजूद यह आयोग 1957 के जनप्रतिनिधि कानून की अवहेलना करने से नहीं चूका I परिसीमन करने के लिए निर्धारित किसी भी मापदंड को नहीं माना गया I
 
 
15. 27 अगस्त 1982 को परिसीमन आयोग ने दिल्ली में एक बैठक में यह निर्णय लिया कि जम्मू की सीटें 32 से बढाकर 34 कर दी जायेंगीं और कश्मीर की 42 से घटाकर 40 कर दी गयीं I यह नियमों को ताक में रख कर मनमाने तरीके से लिया निर्णय था I यहाँ देखने से लगता है कि जम्मू फायदे में रहा क्योंकि जम्मू की सीट बढ़ी और कश्मीर की घटाई गयीं I परन्तु सच यह है की इस बढ़त घटत के दिखावे के बाद भी जम्मू के साथ अन्याय किया गया और कश्मीर के साथ पक्षपात कर कश्मीर को फायदा पहुँचाया गया है I जम्मू की सीट जनसँख्या के अनुपात से भी और भौगोलिक संरचना के आधार पर भी कश्मीर से अधिक होनी चाहियें I
 
 
16. इसके बाद विधान सभा के एक सत्र में, 1987 जम्मू कश्मीर संविधान संशोधन 20 एक्ट पारित कर विधान सभा की सीट्स 100 से बढाकर 111 कर दी गयीं I पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर के लिए 24 सीटें जब कि राज्य के बाकी हिस्सों के लिए 87 सीट्स तय की गयीं I
 
 
17. 1990 में लाखों हिन्दुओं को कश्मीर घाटी से मार भगा दिया गया था, एक बार फिर बहुत बड़ी संख्या में लोग जम्मू में जा बसे I इसका सीधा असर जम्मू और कश्मीर कि जनसँख्या पर पड़ा, कश्मीर की जनसँख्या घटी जब कि जम्मू की जनसँख्या बढ़ी I परन्तु 1995 में जनगणना में जनसँख्या में हुई इस उथल पुथल का असर नहीं दिखा I ना तो जम्मू की सीटें बढ़ीं और ना ही कश्मीर की सीटें घटीं I यहाँ तक की परिसीमन आयोग ने जम्मू कश्मीर संविधान के खंड SO को भी नहीं पढ़ा, जिसके अनुसार जनवरी 1957 से राज्य के विधान परिषद् में कश्मीर के लिए 12, जम्मू के लिए 14 और लद्दाख के लिए 2 सीटें निर्धारित की गयी थीं I यानि यह कानूनी तौर पर माना गया था कि जम्मू की सीटें कश्मीर से अधिक होंगीं I ना तो परिसीमन आयोग ने संविधान के इस खंड की ओर ध्यान दिया और ना ही उन्होंने जम्मू के साथ न्याय कियाI 1951 से आनन्-फानन में विधान सभा की जो सीट निर्धारित हो गयीं, 1995 के परिसीमन में भी वही तय की गयीं I
 
 
18. समस्या केवल राज्य की विधान सभा को लेकर नहीं है I संसद में भी सीटों का सही बँटवारा नहीं किया गया है I एक संसद को भी अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के संपर्क में रहना होता है I यदि जंसंख्या बहुत बड़े इलाके में फ़ैली हो तो उसके लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करना भी मुश्किल हो जाता है I लद्दाख से निर्वाचित केवल एक सांसद के लिए पूरे क्षेत्र से संपर्क बनाये रखना बहुत कठिन होता है I इसी प्रकार यदि तुलनात्मक दृष्टि से दिल्ली के चांदनी चौक की सीट 10 वर्ग कि मी इलाके में सीमित है, परन्तु कश्मीर में यही इलाका प्रति सांसद 5,300 वर्ग की मी है, और जम्मू में प्रति सांसद 13.000 वर्ग किमी I
  
 
19. अंदाजा लगाइये कि एक ही राज्य में कश्मीर का एक सांसद 5000 वर्ग कि मी का इलाका सँभलता है जब कि जम्मू कि सांसद को 13,000 वर्ग कि मी सँभालना पड़ता है I क्या यह तर्कसंगत है?
 
 
20. वर्त्तमान में जम्मू कश्मीर विधान सभा में, जनसँख्या और भौगोलिक संरचना और सभी नियम कानूनों को ताक में रख कर कश्मीर की 46, जम्मू की 37 और लद्दाख की 4 सीट्स हैं I यानी बहुत सोच समझ कर एक साज़िश के तहत कश्मीर की सीट्स अधिक रखी गयी हैं, जिससे राज्य में हमेशा कश्मीर के नेता शासन करें I
 
 
21.  सन 2002 में कश्मीर के नेताओं ने एक और चाल चली और 29 वें जम्मू कश्मीर संविधान संशोधन से धारा 47 को संशोधित कर परिसीमन को साल 2031 तक के लिए स्थगित कर दियाI यानि 2031 तक उन्होंने अपना शासन सुनिश्चित कर दिया I यह नियमों के ठीक विपरीत है I
 
 22. यही नहीं धारा 49 को भी एक प्रकार से निष्क्रिय बना दिया जिसके परिणामस्वरूप शैडूल्ड कास्ट सीट्स की संख्या भी 2031 तक नहीं बढ़ायी जाएगी I यह जम्मू कश्मीर के दलितों पर सीधा आघात करता है और उनके अधिकारों का हनन करता है I इसका सीधा असर जम्मू में रहनेवाले दलितों पर पड़ेगा I .
  
 
 23. इतने लम्बे समय तक किये इस अन्याय को छुपाने के लिए 10 अप्रैल 2007 से जम्मू और कश्मीर दोनों के ज़िलों के सामान संख्या कर दी गयी, अब दोनों के 10 -10 ज़िले हैं I
 
 
24. इस प्रकार जम्मू कश्मीर में हर वो पैंतरा अपनाया गया, हर वो ग़ैर कानूनी काम किया गया, जिससे कश्मीर का प्रभुत्व राज्य के प्रशासन पर बना रहे, जिससे कश्मीर के नेता और राजनितिक दाल अपनी रोटियां सेंकते रहें और अलगाववाद का खेल बे रोकटोक खेलते रहें I यह देश का दुर्भाग्य ही है कि 70 साल से चली आ रही इस नाइंसाफी की ओर ना तो किसी ने ध्यान दिया और ना ही उसे ठीक करने का काम किया I
 
 25. आज तक जो नुकसान जम्मू और लद्दाख ने उठाया है,, उसकी भरपाई तो संभव नहीं है परन्तु अब कम से कम कानून और नियमों पर चल कर, जम्मू और लद्दाख को बिना भेदभाव उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए I यही असली प्रजातंत्र होगा, यही न्याय होगा I