जम्मू कश्मीर में अलग झंडे से जुड़ी राजनीति और भ्रांतियों को तोड़ते तथ्य, जम्मू कश्मीर में भी तिरंगे का वहीं दर्जा है, जैसा कि यूपी, दिल्ली, हरियाणा समेत तमाम राज्यों में
   07-जून-2019


 
 
जम्मू कश्मीर को लेकर पूरे देश में अनेक ऐसी भ्रांतियां हैं, जिनका तथ्यों से को सरोकार नहीं है. जैसे जम्मू कश्मीर राज्य को एक अनुच्छेद 370 के तहत “ विशेष दर्जा “ दिया गया है। जबकि अनुच्छेद 370 को पूरा पढने के बाद आप को कही पर भी विशेष दर्जे वाली बात कही नज़र नहीं आयगी। अलबत्ता यह अनुच्छेद अस्थायी अनुच्छेद है, यह बात इस अनुच्छेद के शीर्षक में साफ़-साफ़ लिखी गयी है . इतना ही नहीं यह संविधान का एकमात्र अनुच्छेद है जो यह खुद बताता है कि यह समाप्त कैसे होगा . लेकिन जम्मू कश्मीर का दुर्भाग्य है कि जम्मू कश्मीर के सच को जानने की बजाय लोग किस्से और कहानियो में उलझे रहते है . ऐसे ही बहुत सारे किस्से जम्मू कश्मीर के अधिमिलन , अनुच्छेद 35A , महाराजा हरी सिंह या संयुक्त राष्ट्र से सम्बंधित है। जिसका तथ्यों से कोई सम्बन्ध नहीं है, वरन ऐसी ही तथ्यहीन किस्से कहानियां जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के कुछ जिलों में अलगाववाद को भड़काने का काम करती है। ऐसे ही कुछ झूठ जम्मू कश्मीर राज्य के ध्वज को लेकर फैलाये जाते है और कुछ लोग इसे जम्मू कश्मीर की भारत से इतर पहचान बनाने की कोशिश करते है. आईये जानते है जम्मू कश्मीर के ध्वज से जुडी कुछ बातें-
 
1. जम्मू कश्मीर में हुआ था जम्मू कश्मीर के ध्वज का विरोध - जम्मू कश्मीर के ध्वज का उल्लेख जम्मू कश्मीर संविधान के सेक्शन 144 में किया गया. यह ध्वज जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुलाह और नेहरु की जोड़ी की वजह से आया. जम्मू कश्मीर में जब राज्य के ध्वज को लाने की बात कही गयी तो शेष भारत में तो इसका विरोध किया गया ही। लेकिन सबसे प्रखर विरोध जम्मू कश्मीर के अन्दर था। जम्मू कश्मीर में नेहरु और शेख अब्दुल्ला के मनमाने रुख का जमकर विरोध हुआ। इस विरोध का केंद्र राज्य का दूसरा सबसे हिस्सा जम्मू तो था ही लेकिन इसका विरोध राज्य के सबसे बड़े हिस्से लद्दाख में भी इसका विरोध हुआ था। इस विरोध ने ही बाद में प्रजा परिषद् आन्दोलन का रूप लिया था जिसका प्रमुख नारा था “ एक देश में दो विधान , दो प्रधान और दो निशान “ नहीं रह सकते . प्रजा परिषद् आन्दोलन ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया था. लेकिन जवाहर लाल नेहरु पूरी तरह से शेख के कब्जे में थे. बाद में इसी शेख की अलगाववादी सोच के चलते नेहरु को उसे जेल में डालना पड़ा था. इस आन्दोलन के विश्लेषण से यह साफ़ होता है कि प्रजा परिषद् आन्दोलन सही था और नेहरु और शेख गलत।
 
. जम्मू कश्मीर का ध्वज राष्ट्रीय ध्वज का प्रतिस्पर्धी नहीं है – जम्मू कश्मीर में अपना एक अलग से ध्वज तो है किन्तु यह राष्ट्रीय ध्वज का का समकक्ष या उससे बड़ा नहीं है. देश के बाकी राज्यों में राष्ट्रीय ध्वज का जो स्तर है वो ही स्तर जम्मू कश्मीर में है . जम्मू कश्मीर के संविधान में भी मात्र राज्य के धवज के माप और आकार का जिक्र है. कही पर भी यह नहीं लिखा गया है कि राज्य का ध्वज राष्ट्र के ध्वज से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा में है। राज्य के कुछ राजनैतिक हालातो के चलते आज जम्मू कश्मीर का अपना एक ध्वज हो सकता है। लेकिन जब सर्वोच्चता की बात आएगी तो उसमे केवल राष्ट्रीय ध्वज ही सर्वोपरि है राज्य का ध्वज नहीं।
 
३. जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान अपराध की श्रेणी में आता है - कुछ लोग जम्मू कश्मीर के ध्वज का उल्लेख करते हुए कहते है कि जम्मू कअश्मीर का अपना ध्वज होने के कारण राष्ट्रीय ध्वज का जम्मू कश्मीर में अपमान करें पर सजा नहीं मिलती। राष्ट्रीय चिह्नों के अपमान से जुड़े विषयों पर जिस एक्ट के तहत कार्रवाई की जाती है। वह एक्ट जम्मू कश्मीर में भी लागू होता है। यह एक्ट THE PREVENTION OF INSULTS TO NATIONAL HONOUR ACT, 1971 के नाम से जाना जाता है . इन राष्ट्रीय चिह्नों में भारत का तिरंगा भी है। इसका अर्थ है कि देश के किसी भी राज्य में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर कार्रवाई की जायेगी और भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक और पहली अनुसूची के तहत जम्मू कश्मीर भारत का एक अंग है। यदि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान होगा तो दोषी पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
 

 
 
४. राज्य के ध्वज का प्रयोग राजनैतिक ज्यादा हुआ है – किसी भी देश या राज्य का ध्वज का एक लक्ष्य होता है। यह उस देश या राज्य को एक सूत्र में बांधता है। लेकिन जम्मू कश्मीर के ध्वज के बारे में यह कहना ठीक नहीं होगा। राज्य का ध्वज शेख अब्दुल्ला की जिद के चलते और जवाहर लाल नेहरु की कुनीतियों के चलते आस्तित्व में आया था। शेख अब्दुल्ला राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के रहने वाले थे। इस ध्वज का कश्मीर के कुछ हिस्सों को छोड़ कर राज्य के बाकी हिस्सों में कभी कोई जुड़ाव नहीं था। परिणाम स्वरुप राज्य के लगभग 85% हिस्से में आज भी यह ध्वज अप्रभावी रहता है। स्थानीय डोगरा , पहाड़ी , गुज्जर , शीना , बाल्ती या बुद्धिस्ट इस ध्वज से अपने आपको नहीं जोड़ पाते है। लेकिन कश्मीर घाटी की अलगाववादी नीतियों के चलते यह ध्वज जम्मू कश्मीर में आज भी चलन में है।