#Exposed AAP के पूर्व नेता आशुतोष की वेबसाइट सत्यहिंदी.कॉम के कोरे असत्य का पर्दाफाश, देखिए जम्मू कश्मीर के नाम पर कैसे झूठ फैलाया जा रहा है
   07-जून-2019
 
“ क्योंकि आपको जानना चाहिए सच “ यह टैग लाइन है ऑनलाइन पोर्टल सत्यहिंदी.कॉम की . आप अपनी ही टैग लाइन पर यह पोर्टल कितना खरा उतरता है , यह स्पष्ट होता है 5 जून , 2019 की लेख की जांच से। जिसका शीर्षक है . क्या जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा जल्द ही ख़त्म हो जाएगा?
 
 
केवल यह शीर्षक इस बात को समझने के लिए काफी है कि “ सत्यहिंदी.कॉम “ सत्य और तथ्य दोनों से कौसों दूर है। लेख के इस शीर्षक को पढने से लगता है जैसे जम्मू कश्मीर को संविधान ने कोई विशेष दर्जा दिया है जिसे नयी केंद्र सरकार खत्म कर देना चाहती। लेकिन क्या सच में जम्मू कश्मीर का कोई विशेष दर्जा है। आइये समझते है...
 
 
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने बहुत सोच समझ कर हमारे संविधान की रचना की थीI इसमें प्रत्येक शब्द का अपना एक अर्थ है I उन्होंने संविधान को अलग-अलग भागो में बाँटा I संविधान के कुल 22 ( बाईस ) पार्ट्स या भाग है , 12 शेड्यूल या अनुसूचियाँ हैं है और उसके बाद अंत में अपेंडिक्स या परिशिष्ट जोड़े गए है I एक पार्ट में अनेक आर्टिकल्स या अनुच्छेद रखे गए I हर पार्ट का अपना एक शीर्षक है और वह शीर्षक यह स्पष्ट करता है उस पार्ट में कौन - कौन से आर्टिकल या अनुच्छेद हैं I इसके बाद उस पार्ट में हर आर्टिकल का अपना एक और शीर्षक होता है जिसे “मार्जिनल नोट” कहा जाता है I मार्जिनल नोट यह स्पष्ट करता है की वह आर्टिकल क्या है I
 
 
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के पार्ट 21 में लिखित है I इस पार्ट का शीर्षक है “ अस्थायी , संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध “ अंग्रेजी में जिसे ''Temporary , Transitory , and Special Provisions'' लिखा एवं पढ़ा जाता है I इस पार्ट में कुल 36 आर्टिकल हैं I इनमे से कुछ आर्टिकल अब संविधान का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन जो आर्टिकल बचे हैं वे या तो ''अस्थायी'' हैं या ''संक्रमणकालीन'' या ''विशेष''Iअब कोई आर्टिकल इन तीनो में से क्या है यह जानने के लिए है मार्जिनल नोट अर्थात हर आर्टिकल के शीर्षक को देखना होगा I इस आधार पर यदि आप अनुच्छेद 370 देखें तो आप को साफ़-साफ़ अनुच्छेद 370 का शीर्षक लिखा दिखाई देगा – “ जम्मू कश्मीर से सम्बंधित अस्थायी उपबंध“ या "Temporary Provisions'" यहाँ पर या इस आर्टिकल के अन्दर ''विशेष दर्जे'' या ''स्पेशल स्टेटस'' का कोई जिक्र नहीं है I आज तक तथाकथित लेखक या पत्रकार केवल पार्ट नम्बर 21 के शीर्षक को पढ़कर ही अनुच्छेद 370 को विशेष दर्जा बताते आये है जो पूरी तरह से गलत है I
 
स्पेशल दर्जे की झूठी कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, आपको यह जानकार अचम्भा होगा कि ''विशेष'' शब्द भारतीय संविधान में 1963 में जोड़ा गया है I यदि ''विशेष'' शब्द आया ही 1963 में है, तो ये अनुच्छेद 370 के साथ ''विशेष दर्ज़ा'' नामक घोटाला कब और कैसे जुड़ गया, जिस से जम्मू कश्मीर सहित पूरे देश का मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग अनजाना रहा ।
 
 
सत्यहिंदी.कॉम का झूठा-सत्य
 
1947 में 'विशेष दर्जा' दिए जाने की सहमति के बाद कश्मीर भारत में शामिल हुआ था। यह विशेष दर्जा 370 के तहत दिया गया था, जिसमें रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा सभी मामले राज्य को तय करने का अधिकार दिया गया था।
 
जम्मू कश्मीर भारत की एक देसी रियासत थी। 1947 में आज़ादी के बाद सभी देसी रियासतों को दो विकल्प दिए गए थे कि या तो वो भारत में शामिल हो सकते है या पाकिस्तान में . इसके लिए एक मानक दतावेज़ तैयार किया गया था जिसे अंग्रेजी में इंस्ट्रूमेंट ओफ़ अक्सेशन और हिंदी में अधिमिलन पत्र कहा जाता है . इस दस्तावेज़ पर राजा या महाराजा को मात्र हस्ताक्षर करने थे इसके पश्चात तत्कालीन गवर्नर जनरल ने महाराजा के हस्ताक्षर वाले इस दस्तावेज़ को मात्र स्वीकार करना था। इन दस्तावेजों में किसी भी राज्य को विशेष दर्जा देने की बात नहीं लिखी गयी है। अगर विशेष दर्जा की मांग के आधार पर जम्मू कश्मीर का अधिमिलन हुआ होता तो यह इस अधिमिलन पत्र में जरुर इसका जिक्र होता। सत्यहिंदी.कॉम के रिसर्चर या पत्रकार मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टेट्स द्वारा प्रकाशित श्वेत पत्र में पेज नंबर 165 पर इस अधिमिलन को पढ़ सकते है। सत्य के नाम पर बने इस पोर्टल से इस तरह से सत्य की खिलाफत ठीक बात नहीं है।
 
दिल्ली समझौता या दिल्ली फ्रॉड
 
अपने इस लेख में बार बार दिल्ली समझोते का जिक्र किया गया है। इसी दिल्ली समझौते को बार-बार आर्टिकल 35A का आधार बताने की कोशिश की गयी है। यह सत्यहिंदी.कॉम की सत्य को दबाकर असत्य को स्थापित करने की एक नाकाम कोशिश की जा रही है। भारत सरकार और जम्मू कश्मीर की सरकार के बीच कोई दिल्ली समझौता नहीं हुआ था। यह दो राजनितिक नेताओ के बीच हुई राजनितिक सौदेबाजी थी जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है. यह दो राजनैतिक नेता थे शेख अब्दुल्ला और जवाहर लाल नेहरु। अगर यह समझौता सच में इतना वैध और शक्तिशाली था कि जिसके चलते भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ दिया गया और वो भी बिना संसद की मंजूरी के, तो सत्यहिंदी.कॉम इस समझौते की वो कॉपी पेश करे जिस पर नेहरु और शेख या अन्य किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के हस्ताक्षर हो। असल में दिल्ली समझौता एक फ्रॉड था जिसकी आड़ में भारतीय संविधान में संशोधन कर जम्मू कश्मीर में शर्णार्थियो , दलित ,पिछड़े , महिलाओ और गौरखो के अधिकारों का हनन कर उन्हें दर –दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया गया है।