9 जून, 1999, कारगिल युद्ध की आहट का साक्षी अमर योद्धा कैप्टन सौरभ कालिया के अदम्य साहस की अनसुनी दास्तान
   08-जून-2019

 
लेख- सूर्यप्रकाश सेमवाल
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कारगिल की आहट का साक्षी अमर योद्धा कैप्टेन सौरभ कालिया
अगला जन्म मैं जब भी पाऊँ ,इसी धरा का मैं हो जाऊ
दिल में भारतमाता हो , गीत उसी के सदा गाऊँ मैं
 
देश की सीमाओं को शत्रु के नापाक हाथों से बचाने के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले हमारे अमरबलिदानी सैनिकों की एक बड़ी पराक्रमयुक्त गौरवमयी परंपरा है , भारतमाता के ऐसे अनगिनत लाडले बलिदानी बेटों में एक 22 वर्षीय दुलारे कैप्टेन सौरभ कालिया थे जिनके अमर बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र कभी विस्मृत नहीं कर सकता..
 
1999 के कारगिल युद्ध की आहट की सूचना भारतीय सेना को अपने हरफनमौला युवा अधिकारी सौरभ कालिया के माध्यम से ही मिली थी , उन्होंने एलओसी पर बड़ी संख्या में घुसपैठ की रिपोर्ट दी थी..बर्फ से पटे कारगिल में 13000 से 14000 फीट ऊंचाई पर स्थित बजरंग चौकी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनके मजबूत कन्धों पर ही थी ..15 मई 1999 को कैप्टेन सौरभ कालिया जब अपने 5 अन्य साथी सैनिकों-सिपाही अर्जुनराम,भंवरलाल बगाडिया,भीखाराम,मूलाराम और नरेश सिंह के साथ काकसर लांगपा क्षेत्र में गश्त कर रहे थे, तभी ऊबड़खाबड़ रास्तों वाले लद्दाख के नंगे पहाड़ों की ओर से बड़ी संख्या में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारतीय गश्तीदल पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, बजरंग चौकी के पहरेदार भारतीय शूरवीरों ने कैप्टेन कालिया के नेतृत्व में पूरी ताकत के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया लेकिन गोलाबारूद की कमी और समय से सुरक्षा कवर न मिल पाने के कारण ये भारतीय वीर पाकिस्तानी रेंजरों के हाथ आ गए..पाकिस्तानी रेडियो स्कर्दू की सूचना से मालूम हुआ कि सौरभ और उनके साथी सैनिक पाकिस्तान के कब्जे में हैं, सैकड़ो गुरिल्ला एलओसी पर भारत की सीमा के अन्दर घुस गए थे..
 

 
 
15 मई से 7 जून तक कालिया और उनके साथियों को पाकिस्तान ने युद्धबंदी के रूप में इतनी घोर यंत्रणाएं दीं जो मानवता को दहला देने वाली हैं..9 जून 1999 को पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया और अन्य 5 सैनिकों के क्षत-विक्षत शरीर भारतीय सेना को सौंपे जिनको पहचान पाना मुश्किल था,.पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि पाकिस्तान ने किस तरह हमारे पराक्रमी महायोद्धा सौरभ कालिया और उनके जांबाज सैनिकों का उत्पीडन किया, उन पर बर्बर अत्याचार किये वह कंपा देने वाला है- उनके शरीर को सिगरेट से जलाया गया ,कान गर्म राड़ से छेदा गया ,आँखें निकाल दी गईं , दांत व हड्डियां तोड़े गए ,सिर फोड़े गए, होठ काटे गए , नाक और अन्य अंग काट दिए गए..ये सारे जख्म उनके शरीर पर मौत से पहले के थे ,यह युद्धबंदियों के साथ वियना सम्मेलन की शर्तों का खुला उल्लंघन था , लेकिन टेढ़ी पूंछ वाले पाकिस्तान को मानवाधिकार या अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की कब परवाह रही , भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री जसवंत सिंह ने जब पाकिस्तान के विदेशमंत्री सरताज अजीज के सामने अपने वीर योद्धाओं के साथ ऐसा सलूक करने वालों को कड़ी सजा देने की भारतवासियों की मांग रखी तो बेशर्मी से उन्होंने तर्क दिया कि उनको पाक सेना ने नहीं खराब मौसम ने मारा..पूरे देश में पाकिस्तान की इस कायराना और घटिया हरकत के प्रति प्रचंण्ड रोष बढ़ा और पाकिस्तान को यादगार पाठ पढ़ाकर अपने बहादुर सैनिकों का बदला लेने का एक स्वर बुलंद हो उठा जिसने आगे कारगिल युद्ध का बड़ा रूप लिया..
 

 
 
माँ भारती के सच्चे सपूत सौरभ कालिया का जन्म 29 जून, 1976 को रणबांकुरों की धरती पंजाब के अमृतसर में डॉ. एनके कालिया और श्रीमती विजया के घर हुआ था, हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्कूल से दसवीं पास की तो 1997 में बीएससी, सीडीएस की प्रतियोगी परीक्षा देकर 12 दिसंबर 1998 को सेना में कमीशन प्राप्त कर यह प्रतिभाशाली नौजवान कम उम्र में ही से.लेफ्टिनेंट बन गया..चुनौतियों को मात देने वाले इस हरफनमौला अफसर को पहली पोस्टिंग मिली तो वो भी चुनौतीपूर्ण क्षेत्र कारगिल में ,जाट रेजिमेंट की चौथी बटालियन का यह युवा सबकी आँखों का तारा था ,जितना स्मार्ट और फुर्तीला उतना ही सक्रिय और निपुण योद्धा..
 
 

 
आज देश के उस लाडले अमर शहीद को जन-जन याद करता है,उस महायोद्धा के साथ हुए क्रूर अत्याचार के दोषियों को सख्त सजा सब ओर से मिल ही रही है और मिलती रहेगी ,कैप्टेन सौरभ कालिया देश के करोड़ों युवाओं और मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लेने वाले देशभक्तों के लिए सदैव प्रेरणा का केंद्र बने रहेंगे ..वे सदैव अमर हैं और भारतमाता ऐसे वीर सपूत पर हमेशा गर्व की अनुभूति करती रहेगी ,जयहिंद...